अन्य दिवसों को पाश्चात्य कहकर उन्हें हिकारत से देखने वाले महिला दिवस बड़ी श्रद्धा और भक्ति से मनाते है l वे कहते है कि
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।
जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
इसलिए महिला दिवस पर कहीं भंडारा हो रहा है ,कहीं भजन संध्या हो रही है तो कहीं फाग उत्सव तो कही कन्या भोजन भी हो रहा है l
जिस समाज में महिलाओं को लेकर इतना सब कुछ कहा जाता है विडम्बना यह है कि वहां स्त्री देवी मानी जाती है और दासी बनकर जीवन गुजारती है l उसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व ही नहीं होता l स्वतंत्र विचार की भी कोई गुंजाइश नहीं होती l उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन मानकर दस दस बच्चे पैदा करने का आव्हान किया जाता है l
कुछ लोग महिला दिवस पर महिलाओं को लेकर हल्के फुल्के चुटकुला लिखकर सुनाकर माहौल का लाइट बना देते है l तो कुछ लोग महिलाओं का इतना महिमामण्डन करते है कि कोई भी महिला उसे सुनकर शर्मा जाए l कुछ सफल और संघर्ष शील महिलाओ के उदाहरण देकर महिलाओं को प्रेरित किया जाता है l अपनी माँ पत्नी ,बहिन बेटी के किस्से और संस्मरण विशेष रूप से लिखे और शेयर किए जाते है l क्योंकि महिलाओं की त्याग तपस्या पर हर आदमी कुछ न कुछ कहने के लिए उतावला रहता है l
भारत मे बलात्कार ,दहेज हत्या , कन्या भ्रूण हत्या ,घरेलू हिंसा में लगातार वृद्धि हो रही है l विश्व में लैंगिक विषमता बांग्लादेश और नेपाल से निचली पायदान पर है हमारा देश l जबकि बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ सहित महिला सशक्तिकरण की अनेक योजनाएं चल रही है l जो कोई विशेष असर नहीं छोड़ पाई है l स्थिति दिनों दिन बदतर होती जा रही है l
महिला दिवस महिलाओं की पूजा अर्चना वंदना के लिए नहीं अपितु उनकी मुक्ति ,सशक्तिकरण और बराबरी का दिवस है l पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के प्रति पुरुष का नज़रिया बदलने का दिवस है l औरत को भी एक जीवित इंसान माना जाए इस जिद्द का दिवस है l
मर्द - औरत के बीच हर किस्म की गैरबराबरी खत्म करने का दिवस है l
गोपाल राठी