जब भी वह रात 8 बजे टीवी चैनलों पर आते हैं, पैनिक ही बढ़ाते हैं।

कोरोना को लेकर प्रधानमंत्री जी की चिंता वाजिब है। वाकई अगले 21 दिन नहीं संभले तो 21 साल पीछे चले जाएंगे। हमने और हमारे परिवार ने तो चार दिन पहले से ही अपने को घर में 'लाक डाउन' कर लिया है। काश कि प्रधानमंत्री का यह चिंतन दो महीने पहले सामने आता। लोग इस महामारी से निबटने की तैयारी कर लेते। लेकिन वह देशवासियों को झटका देने में यकीन करते हैं। जब भी वह रात 8 बजे टीवी चैनलों पर आते हैं, पैनिक ही बढ़ाते हैं। आज भी टीवी चैनलों पर तीन सप्ताह तक सख्त और संपूर्ण लॉकडाउन का उनका संदेश सुनकर बीच में ही लोग टीवी चैनल छोड़ दुकानों की तरफ भागे। देश भर में अफरातफरी मच गई है। मत भूलिए कि अगर ठोस इंतजाम नहीं हुए तो कोरोना के आगे, बड़े पैमाने पर भुखमरी हो सकती है।
बेहतर होता कि वे कोरोना और इससे जनित समस्याओं से निबटने-सब्जी, राशन, दवाइयों की उपलब्धता और जरूरतमंदों तक उनकी पहुंच के तरीकों-उपायों के बारे में सरकारी इंतजाम बताते।


वह कह रहे हैं, 'जहां हैं वहीं रहिए।' ठीक बात है, सोशल डिस्टैंसिंग ही इस महामारी को फैलने से रोकने में कारगर हो सकती है लेकिन कई राज्यों में लोग दूसरे राज्यों के लोगों से अपने गांव घर और राज्य में चले जाने का दबाव कर बना रहे हैं। उन्हें क्या करना चाहिए। सरकार उनके लिए क्या कर रही है। उनके पास बीच सड़क प्लेटफार्म पर मरने के अलावा क्या रास्ता बचा है। और तो और प्रधानमंत्री जी ने जान हथेली पर रखकर कोरोना से लड़ने वाले 'वारियर्स' के सम्मान में ताली-थाली बजवाई। अब लोग इन वारियर्स को अपने घर, अपार्टमेंट से बाहर निकलने का दबाव बना रहे हैं।ये लोग अब कहां रहेंगे! कुछ तो बताया होता! और हां, जनता कर्फ्यू में विजय जुलूस निकालने वाले भक्तों के बारे में भी कुछ कहा होता! 
@ Jaishankar Gupta