गांधी हो या ग़ालिब हो, दोनों का क्या काम यहां

गांधी हो या ग़ालिब हो
ख़त्म हुआ दोनों का जश्न
आओ, इन्हें अब कर दें दफ़्न


वोह बस्ती वोह गावं ही क्या जिसमें हरिजन हो आज़ाद
वोह कस्बा वोह शहर ही क्या जो न बने अहमदाबाद
ख़त्म हुआ दोनों का जश्न
आओ, इन्हें अब कर दें दफ्न


ख़त्म करो तहज़ीब की बात, बंद करो कल्चर का शोर
सत्य, अहिंसा सब बकवास, तुम भी क़ातिल हम भी चोर
ख़त्म हुआ दोनों का जश्न
आओ, इन्हें अब कर दें दफ्न


गांधी हो या ग़ालिब हो, दोनों का क्या काम यहां
अब के बरस क़त्ल हुई, एक की शिक्षा, इक की ज़बां
ख़त्म हुआ दोनों का जश्न
आओ, इन्हें अब कर दें दफ़्न


[साहिर लुधियानवी]