ययाति के शुक्रापशिष्ट और गार्गी की मानसियाँ

 


महाभारत का पात्र ययाति अपनी यौनेच्छा से इस तरह लाचार होता है कि वृद्धावस्था में अपने बेटे से यौवन उधार मांगता है। भारत के औसत पुरुषों की फंतासी ययाति बनने की ही होती है।


आधुनिक साहित्य (घासलेटी और अन्यथा दोनों), हर तरह का विज़ुअल माध्यम और वीभत्स-यौन चित्रण का व्यापार, यह सब जाने-अनजाने स्त्री-देह को एक साथ कौतूहल और कौतुक की वस्तु बनाने में अपना योगदान देता रहता है।


इससे युवाओं और प्रौढ़ों का एक बड़ा हिस्सा ययाति के शुक्रापशिष्ट से पैदा हुए लाचार जीवों की तरह व्यवहार करते रहते हैं। समयानुरूप किसी पंथविशेष, विचारधाराविशेष या राजनीतिविशेष का जामा पहनाकर वे अपनी कुंठा को बाहर निकालने के मौके ढूंढ़ते रहते हैं।


भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में यौन-हिंसा के आरोपितों की प्रोफाइलिंग करेंगे, तो पाएंगे कि इनमें केवल कथित ‘गुंडे’ और ‘असामाजिक तत्व’ ही शामिल नहीं हैं। यह किसी खास आय वर्ग, आयु वर्ग, पेशा, क्षेत्र या शिक्षित-अशिक्षित होने तक सीमित नहीं रहा है।


धर्म के नाम पर पाखंड करनेवाले बाबा, पुलिसकर्मी, वकील, जज, मंत्री, शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, उच्चाधिकारी, राजनेता, नामी-गिरामी और लोकप्रिय फिल्म अभिनेता और निर्देशक, सामाजिक कार्यकर्ता और नामचीन पत्रकार तक ऐसी यौन-हिंसाओं के आरोपित और सजायाफ्ता रहे हैं।


निकट के परिजन, दोस्त, प्रेमी और जानकार से लेकर पिता, भाई और पति तक ऐसी हिंसा में लिप्त पाए गए हैं। ऐसे में क्या कहा जाए?


अब वे आक्रामक राजनीति की पीठ पर सवार होकर भीड़ की शक्ल में आ रहे हों भले, लेकिन मूल में ययाति-वृत्ति ही है। इसे एक सभ्यतामूलक समस्या, एक मनोवैज्ञानिक संकट मानना ही ठीक रहेगा। तभी हम इसके समाधान की ओर सही दिशा में बढ़ पाएंगे।


यौनिकता को बिल्कुल जीव-वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर समझने-समझाने की जरूरत आन पड़ी है।


यौन इच्छा, यौन संपर्क और प्रजनन की प्रक्रिया को जब एकदम वैज्ञानिक और मानवीय तरीके समझने-समझाने का प्रयास होगा, तभी उसकी रहस्यात्मकता, कौतूहलता और उससे जुड़ी आक्रामकता का शमन हो सकेगा।


बृहदारण्यक उपनिषद् में गार्गी की भूमिका एक निर्णायक के रूप में थी। उसे याज्ञवल्क्य का मूल्यांकन कर उसकी योग्यता का फैसला करना था।


आज उसी गार्गी सा मानस-स्तर हासिल करने की इच्छुक बेटियों को यह फैसला करना होगा कि पुरुष-जाति का यौन-संबंधी प्रबोधन किस अवस्था में और किस तरह से किया जाए?


निरे पशुबल को विवेक बल और करुणा से अनुशासित, परिष्कृत और संस्कारित करने का तरीका क्या हो? आक्रमण की स्थिति में उसके दर्प का प्रतिकार किस रूप में किया जाए?


गार्गियों फैसला करो ! फैसला करो कि स्खलन के बाद निढाल पड़ चुके, लुढक कर हाँफ रहे, कमजोर, नग्न, लाचार और लिजलिजे कृमियों के साथ क्या किया जाना चाहिए!


क्या उपचार अब भी एक संभावना है, या कि उन्मूलन ही एकमात्र रास्ता है? 


यह निर्णय तुम्हें कई रूपों में और कई स्तरों पर करना होगा। मित्र, प्रेमिका, पत्नी, माँ, बहन, बेटी और केवल एक निरपेक्ष और चैतन्य आत्मतत्व के रूप में भी तुम्हें ही यह फैसला करना है।


किसी भुलावे में मत रहो। यह किसी राजनीति, कोर्ट-कचहरी या पुलिस वगैरह के बस की बात नहीं है।


मत भूलो कि सत्ता और शासन का यह सारा प्रपंच ही अमर्यादित भोग, आक्रमण और शोषण के लिए रचा जाता रहा है।


Avyakta