भारत की वीनस के नाम से विख्यात अभिनेत्री मधुबाला होश संभालने के बाद मेरी पहली वैलेंटाइन थी। सिनेमा के परदे पर इस कदर स्वप्निल सौन्दर्य, ऐसी दिलफ़रेब अदाएं, इतनी उन्मुक्त हंसी हिंदी सिनेमा में उनके बाद फिर नहीं देखी गई। मैंने शायद ही कभी उनकी कोई फिल्म मिस की हो। फिल्म चाहे जैसी हो, परदे पर उनकी उपस्थिति का जादू सिनेमा हॉल तक खींच ले जाता था। उनकी कोई फिल्म एक-दो बार ही देख पाता था, लेकिन पोस्टरों में उनका चेहरा देखने के लिए सिनेमा हॉल के अनगिनत चक्कर हो जाते थे। तब वे मेरे ख्यालों में भी आती थीं और सपनों में भी। उनकी शादी और असमय मौत की ख़बर सुनकर व्यथित भी हुआ था। उनका उदास, अकेला, रहस्यमय जीवन आज भी तिलिस्म की तरह मुझे खींचता है।
मधुबाला का जन्म प्रेम का उत्सव माने जाने वाले वैलेंटाइन डे को हुआ था, लेकिन सच्चे प्यार के लिए वे तमाम उम्र तरसती रहीं। उन्हें प्यार मिला तो सही, लेकिन आधा-अधूरा जिनके टूटने का दर्द उन्हें जीवन भर महसूस करना था। मधुबाला का पहला प्यार थे उस दौर के एक्शन फिल्मों के अभिनेता प्रेमनाथ। यह रिश्ता एक साल से भी कम चला। शादी के लिए उनके पिता अताउल्लाह खां ने प्रेमनाथ के आगे इस्लाम कबूल करने की शर्त रखी जिसे प्रेमनाथ ने ठुकरा दिया। प्रेमनाथ के बाद मधुबाला की जिन्दगी में आए ट्रेजेडी किंग कहे जाने वाले महानायक दिलीप कुमार। फिल्मी दुनिया की यह सबसे चर्चित प्रेमकहानी लंबे अरसे तक चली। इस रिश्ते में धर्म का कोई बंधन नहीं था, लेकिन इस प्रेम कहानी में भी खलनायक एक बार फिर मधुबाला के पिता ही बने। दोनों की नजदीकियों को भांपने के बाद फिल्मों के सेट पर रोमांटिक दृश्यों की शूटिंग के दौरान वे निर्देशकों के काम में दखलंदाज़ी करने लगे जिससे निर्देशक ही नहीं, खुद दिलीप कुमार भी खींझ जाया करते थे। अंततः दिलीप कुमार ने मधुबाला के सामने इस शर्त पर शादी का प्रस्ताव रखा कि शादी के बाद वे पिता से रिश्ते तोड़ लेगी। मधुबाला के लिए यह शर्त मानना आसान नहीं था। इसके बाद उन दोनों के बीच आए दिन झगड़े होने लगे। इस रिश्ते के टूटने का निर्णायक कारण बनी निर्देशक बी.आर चोपड़ा की फिल्म 'नया दौर'। अताउल्लाह अपनी बेटी को दिलीप कुमार के साथ किसी कीमत पर आउटडोर शूटिंग में बाहर भेजने को तैयार नही थे। मामला अदालत तक पहुंचा जिसमें दिलीप साहब ने चोपड़ा का पक्ष लिया। दो पठानों की इस लड़ाई में मधुबाला और दिलीप कुमार की मोहब्बत बलि चढ़ गई।
गायक एवं अभिनेता किशोर कुमार मधुबाला के जीवन में तीसरे मर्द थे। दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया था। 'चलती का नाम गाडी' के एक गीत 'एक लड़की भींगी भागी सी' की शूटिंग के समय मधुबाला के दिल में उनके लिए जगह बनी। किशोर तलाकशुदा थे और मधुबाला टूटी हुई। मधुबाला को हंसना पसंद था और किशोर दा हंसाने के फन में माहिर। अताउल्लाह की शर्त के मुताबिक़ धर्म परिवर्तन कर किशोर दा ने मधुबाला से शादी कर ली। मधुबाला के दिल की बीमारी का किशोर दा को पता था। शादी के तुरंत बाद वे मधुबाला को लेकर लंदन गए जहां पता चला कि दिल में छेद के कारण उनकी जिन्दगी दो साल से ज्यादा शेष नहीं हैं। इस खुलासे के बाद मधुबाला ने बिस्तर पकड़ ली। पेशेगत व्यस्तता की वजह से किशोर कुमार उनका बहुत दिनों तक ख्याल नहीं रख सके। मायके में बीते उनके आखिरी दिनों मधुबाला की जानलेवा तनहाई का इलाज़ किसी के पास नहीं था। इसी तनहाई में वे चल बसीं।
अपने बेपनाह सौंदर्य, ग्लैमर, शोहरत और तीन प्रेम संबंधों के बावजूद बेहद अकेली और उदास मधुबाला का व्यक्तित्व उस एक रहस्यमय परछाई की तरह था जो वक़्त की खिड़की पर कुछ उदास धब्बे छोड़ सहसा अनुपस्थित हो गया। प्रेम की शाश्वत प्यास की प्रतीक हिंदी सिनेमा की वैलेंटाइन गर्ल, मेरी पहली क्रश मधुबाला के यौमे पैदाईश पर खिराज़-ए-अक़ीदत !
ध्रुव गुप्त