संत रविदास को याद करते हुए


आज दुनिया जिस चौराहे पर खड़ी है, वहाँ जातिभेद, रंगभेद, धर्मगत भेद एवं ऊंच-नीच की वैचारिकी का बोलबाला है। संत रविदास ने आज से लगभग 600 वर्ष पूर्व ही ऐसी वैचारिकी को भाप लिया था। संत रविदास का मानना था कि बेगमपुरा शहर स्थापित करके हम इन सब पापों से मुक्ति पा सकते हैं और सही मायने में मानवता की स्थापना कर सकते हैं। संत रविदास का बेगमपुरा शहर रंगभेद, ऊँच-नीच के भेद, पराधीनता एवं बेगार जैसी वैचारिकी के साथ-साथ सांसारिक बन्धनों से मुक्त था। 
 संत रविदास अपने बेगमपुरा वतन में स्वीकार करते हैं कि बेगमपुरा शहर हर प्राणी को सामाजिक समानता,  राजनैतिक,  सांस्कृतिक,  आध्यात्मिक,  मानवीय अधिकार प्राप्त होंगे। इस तरह हम देखें तो संत रविदास ने 14 शताब्दी में पहली बार कल्याणकारी, लोकतांत्रिक एवं समाजवादी व्यवस्था की नींव रखी। यदि हम भारतीय संविधान को देखें तो भारतीय संविधान की प्रस्तावना पूरी तरह संत रविदास की वैचारिकी पर खड़ी है। जहाँ संत रविदास कहते हैं-
 ऐसा चाहूं राज मैं जहां मिलै सबन को  अन्न।
 छोट बड़ों सब सम बसै रविदास रहें प्रसन्न।।
अर्थात रविदास एक ऐसे राज्य की स्थापना पर बल देते हैं, जहाँ सबको भरपेट भोजन मिले। कोई भूखा न सोए, सभी लोग एक दूसरे के साथ मिलकर प्रेमपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करें। यदि यह स्थिति क्रियान्वित होती है तो रविदास को प्रसन्नता मिलेगी। संत रविदास अपने बेगमपुरा वतन के संदर्भ में कहते हैं कि- 
‘‘मैं जिस बेगमपुरा शहर में रहता हूँ, वह बेगमपुरा शहर गमों से मुक्त है, वहां दुख, चिंता तथा भय का कोई स्थान नहीं है और ना ही यहां प्रभु के नाम का व्यापार करने के बदले कोई टैक्स देना पड़ता है।’’
 बेगमपुरा शहर को न नाउ। 
 दुखु अंदोहु नहीं तिहि ठाउ।।
   भारतीय संविधान की पूरी प्रस्तावना संत रैदास के एक पद में समाहित है। भारतीय संविधान में समस्त जनमानस को चाहे वह किसी भी जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय का हो, वहाँ सबके बीच समता की बात करता है। सभी लोगों के अधिकारों की रक्षा की बात करता है। प्रेम एवं बंधुत्व के साथ-साथ सभी के लिए रोटी,  कपड़ा और मकान सुनिश्चित करने की बात करता है। यदि इस पक्ष को हम देखें तो इस पक्ष की वकालत संत रैदास ने 15वीं शताब्दी में ही कर डाला था। अर्थात् आज के परिप्रेक्ष्य में भारतीय संविधान को बीते कल के परिप्रेक्ष्य में ‘बेगमपुरा शहर’ का नाम दिया। 
 संत रविदास ने अपने बेगमपुरा शहर में राजनीतिक एवं सामाजिक गुलामी का कोई स्थान नहीं दिया और स्वतंत्रता की मुखालत की। परतंत्रता (गुलामी) को उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। उनका मानना था कि यदि व्यक्ति मन की स्वतंत्रता, चित की स्वतंत्रता पर यदि किसी दूसरे का अधिकार है तो वह लोकजन स्वतंत्र होकर भी परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ा है। संत रविदास परतन्त्रता से बेहतर मृत्यु को प्राप्त करना बेहतर समझते थे। इस संदर्भ में वे अपने पदों में कहते हैं कि -
 रविदास मनुष करि बसन कूं सुख कर हैं दुइ ठांव। 
 इक सुख है स्वराज मंहि दूसर मरघट गांव।।
 संत रविदास के इस पद को विश्लेषित किया जाए तो संत रविदास ने लोकजन को स्वराज्य ही रहने के लिए उचित स्थान बताया है। वैसे देखा जाए तो स्वाधीनता मानव जाति का अनिवार्य गुण है, परतंत्रता की जंजीरों को तोड़ने के लिए मानव सदैव प्रत्यत्नशील एवं संघर्षरत रहा है।
संत रविदास ने पराधीनता को पाप की श्रेणी में रखा है और उन्होंने कहा कि पराधीन व्यक्ति समाज की सबसे कमजोर कड़ी के रूप में होता है, उसे कोई अपना सम्बन्धी नहीं बनाता है, उससे कोई प्रेम नहीं करता है। इसी कमजोर कड़ी को वे समानता एवं समान भागीदारी के पद पर लाना चाहते थे। उनका संघर्ष थोड़े बहुत अन्तर के उनकी वैचारिकी के रूप में लोकजन द्वारा आज भी जारी है। इस तरह देखा जाए तो संत रविदास ने सही मायने में समाजवाद की कल्पनालोक में आधारशीला रखी। वह आधारशीला आज संवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से क्रियान्वित की जा रही है।
 आज जिस पवित्र धर्मस्थल मक्का की हम बात करते हैं, जहाँ करोड़ों की संख्या में दुनियां भर से लोग मत्था टेकने जाते हैं। उस मक्का का नाम रविदास ने बेगमपुरा दिया है। मक्का में पहुंचने से जनमानस सभी दुख-दर्द एव गम से मुक्त हो जाता है, वहीं बेगमपुरा रूपी शहर में प्रवेश करने पर भी व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। 
   सभी धर्मावलंबियों की आपसी एकता ही देश को सुख,शांति और संमृद्धि प्रदान कर सकती है ऐसा रविदास ने उस समय ही महसूस कर लिया था---
मुसलमान से कर दोस्ती,हिंदुअन से कर प्रीत/
रविदास सब ज्योति राम की,सभी है अपने मीत//


 इस तरह हम देखें तो संत रविदास ऐसे वतन की कल्पना करते हैं, जो वस्तुतः समता, समानता, प्रेम, बंधुत्व एवं न्याय पर आधारित है। आज जिस चौराहे पर दुनियां खड़ी है, अगर हमें इससे छुटकारा पाना है और बेहतर समाज बनाना है तो उसके लिए पुनः एक बार आवश्यक है कि संत रविदास के बेगमपुरा शहर को बसाने की, तभी शायद हम स्वयं अपने को एवं आने वाली संततियों को बचा सकेंगे।


मोहम्मद आरिफ