नागरिकता कानून को लेकर देश का गृह मंत्री क्रोनॉलोजी समझाते हुए जोर दे कर एक ही बात दोहराता रहता है और प्रधानमंत्री बिल्कुल दूसरी बात कहता है और फिर वही अपने क्षेत्र वाराणसी में सिंहनाद करता है NAA और NRC पर कोई समझौता नहीं हो सकता ! अभी तक कोई नियम प्रक्रिया भी तय नहीं हुई इसकी और बेवजह ततैयों के छत्ते में पत्थर मारने की इन लोगों की इसी आदत की वजह से लोग सड़कों पर भी उतर आए, और जगह जगह शाहीन बाग भी बनने लगे !
ऐसे में किसी की कोई भी बात न सुनने वाले अपनी ही धुन के पक्के आदमी के रूप में अच्छा खासा नाम कमा चुके अपने गृह मंत्री दुनिया के आठवें अजूबे की तरह फिर एक घोषणा करते हैं कि नागरिकता कानून पर बातचीत के लिए उसके दरवाज़े हमेशा खुले हुए हैं ! लेकिन जम्मू कश्मीर के मसले पर केंद्र की एकतरफा कार्रवाई से नाराज हो कर सेवा छोडने वाले पूर्व IAS अधिकारी कन्नन गोपीनाथन 14 तारीख को गृह मंत्री जी से इस पर चर्चा के लिए समय मांगते है ! अफसोस कि वह आज भी 'उस खुले दरवाजे ' पर दस्तक दिए जा रहे हैं जिसके अंदर सिर्फ़ सन्नाटा पसरा हुआ है !
एक बात तो बड़ी साफ है इससे, कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो गड़बड़ जरूर है ! सरकार जो बताना चाहती है 'सदाशयता' की कसम खा कर, वह उसी रूप में जनता तक पहुंच क्यों नहीं पा रहा जबकि सारा मीडिया तो नारायण, नारायण करते नारद मुनि की तरह रात दिन उसकी सेवा में तत्पर खड़ा रहता है एक पांव पर !!
दूसरी बात यह कि NRC की जांच की प्रक्रिया लागू करने के लिए कोई विशेष प्राधिकरण बनाया जाएगा या फिर स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों को ही यह जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। स्थानीय प्राधिकारियों की कार्यक्षमता का एक नमूना कल ही एक पोस्ट में देखने को मिला जहां मत्यु प्रमाणपत्र जारी करते हुए मृतक के सुखद भविष्य की कामना भी की गई थी ! इसलिए हमारा यह डर बेबुनियाद भी नहीं है क्योंकि स्थानीय अधिकारियों के पास जरूरी वैधानिक और न्यायिक समझ नहीं होती। नागरिकता साबित करने का सवाल तो वैधानिक प्रवृत्ति का है। इसलिए इस जैसा अहम मसला नौकरशाहों के हवाले नहीं किया जा सकता जिन्हें अक्सर कानून की कोई समझ नहीं होती।
इसके अलावा जब 'बॉस इज़ राइट' की संस्कृति में पले बढ़े अधिकारियों को बॉस की मंशा का अंदाजा हो तो उनसे आप अपनी विवेक बुद्धि के इस्तेमाल की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ? हाल ही में हैदराबाद में सामने आया एक मसला ( नोटिस की तस्वीर नीचे दी गई है) हमारे अंदेशे की पुष्टि करता है !
NRC में आधार को नागरिकता का सबूत नहीं माना गया है ! इसके बावजूद हैदराबाद का आधार अधिकारी एक व्यक्ति (मुस्लिम पढ़ा जाए) को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहता है ! क्या आधार प्राधिकारी को नागरिकता प्राधिकरण NRC मान लिया गया है ? सरकार तो बार बार यही यही कहे जा रही है कि आधार नागरिकता का सबूत नहीं है ! तो फिर किसने अधिकार दिया आधार अधिकारियों को नागरिकता का सबूत मांगने का ? तो क्या चोर दरवाजे से उन्हें ऐसा करने का अधिकार तो नहीं दे दिया गया ? इसका मतलब यह हुआ कि कोई भी, कभी भी किसी व्यक्ति को गैर कानूनी नागरिक या घुसपैठिया करार कर सकता है ! बहुत ही खतरनाक संकेत है यह जिसे समय रहते समझ लेना चाहिए।
अभी तक सरकार ने इसकी शर्तें तय नहीं की हैं और यही डर की असल वजह है कि NRC-NRIC में जो भी शर्तें होंगी, प्रशासन उनका गलत इस्तेमाल कर सकता है। कुछ दिन पहले ही स्थानीय अधिकारियों ने एक मामले में हरियाणा की दो बहनों को पासपोर्ट देने से इंकार कर दिया था। अधिकारी ने लड़कियों को देखते हुए कह दिया था कि वे नेपाल की रहने वाली हैं। उधर सुदूर दक्षिण में बेंगलुरू के अधिकारियों ने महज़ एक अफवाह के आधार पर 100 घरों को तुड़वा दिया था कि इन घरों में अवैध बांग्लादेशी रहते हैं। बिना किसी तय प्रक्रिया के यह कार्रवाई एक स्थानीय बीजेपी विधायक द्वारा शेयर किए गए एक वीडियो को आधार पर की गई थी। इन दोनों मामलों में सरकारी अधिकारियों ने पूर्वाग्रह और गलत जानकारी के साथ काम किया और मनमाने तरीके से लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया।
पूत के पांव तो पालने में ही पहचाने जाते हैं। इन तीन मामलों से वह तस्वीर बड़ी साफ उभर कर सामने आ रही है कि NPR और NRIC से क्या उथल-पुथल मचने वाला है!
गुरु चरण सिंह