"मुलाकरम" मुझे पूरी उम्मीद है आप इस शब्द से अवगत होंगे ही,ये कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में त्रावणकोर के राजा का साम्राज्य था।
उस समय समाज में जातिवाद की जड़े इतनी गहरी पैठ बना ली थी कि आप किसी के पहनावें देखकर ही बता सकते थे कि वो किस जाति से संबंध रखता है।यहां तक कि इस समय इनके शाषन काल में दलित महिलायों को अपने तन तक ढ़कने की मनाही थी,अगर कोई दलित महिला इसके खिलाफ जाकर अपना तन यानी अपना ब्रेस्ट ढक लेती थी तो उसे मुलाकरम यानी ब्रेस्ट टैक्स देना पड़ता था और ये टैक्स उस महिला के ब्रेस्ट के आकार एवमं वजन देखकर तय किया जाता था।जिस महिला के ब्रेस्ट का आकार एवमं वजन जितना ज्यादा होता था उसे उतना ही ज्यादा टैक्स देना पड़ता था।
ये लगभग 1800 ईस्वी की बात है,जहां एक दलित महिला जिसका नाम नागेली था।उसके द्वारा मुलाकरम की राशि चुका सकने में नाकाम होने के कारण उसने अपने दोनों ब्रेस्टों को काटकर मुलाकरम की रकम के रूप में सामज के उच्च जाति के लोगों के सामने रख दिया था और दर्द से कराहती हुई तड़प तड़प कर अपनी जान दे दी थी।ये बहुत ही शर्मनाक घटना है।
जिसने मुझे पूरी तरह झकझोड़ दिया,लेकिन मैं नागेली के द्वारा उस समय किए गए साहस,जज्बात एवमं बलिदान को सलाम करता हूँ क्योंकि उस समय इस परिवेश में किसी दलित महिला के द्वारा इस घिनौने कृत्य के खिलाफ आवाज उठाना तो दूर बल्कि इसे अपनी लाचारी एवमं दलित समाज में पैदा होने के बोझ समझकर इसे पूरी तरह अपने में समाहित कर लिया जाता था।
आज नागेली के बलिदान की ही देन है कि आज समाज इस तरह के टैक्स से छुटकारा पा सका है और आज भी हमें समाज में फैले जातिवाद एवमं जाती प्रथा को मिलकर समाप्त करना होगा।
इस घटना से आप अनुमान लगा सकते है कि उस समय किसी दलित समुदाय में पैदा होना किसी अभिशाप से कम नहीं था।
अभिषेक रंजन