मनरेगा चढी भृष्टाचार की भैट, सरकार ने बजट घटाया,  प्रदेश में किसान घटे ,खेत मजदूर बढे ; जसविंदरसिंह                                         


                                      
बिहरा रीवा -- मध्य प्रदेश किसान सभा की #तीन_दिवसीय_कार्यशाला में  महात्मा गांधी  रोजगार गारंटी योजना के बारे में बोलते हुए  मध्यप्रदेश किसान सभा के प्रांतीय उपाध्यक्ष जसविंदर सिंह ने याद दिलाया कि यह योजना बामपंथ के दबाव में यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2006 में लागू की गयी थी। शुरुआत में इसका प्रभाव आदिवासी क्षेत्रों में व अन्य क्षेत्रों में भी दिखा , कुछ विकास भी देखने को मिला, ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन भी रुका । परन्तु अब इस योजना से केन्द्र सरकार पल्ला झाड़ रही है। पिछले केन्द्रीय बजट में मनरेगा का आवंटन 71000 करोड था, वर्तमान बजट में इसे घटाकर 61500 करोड कर दिया है। स्पष्ट है कि केंद्र सरकार ग्रामीण गरीबी और बदहाली को थामने की बजाय उसे बढ़ाने के रास्ते  पर चल रही है।
उन्होंने कहा कि कोई भी कानून बनने से ही लागू नहीं हो जाता है। उसे लागू कराना होता है। मनरेगा को भी सही तरह से लागू कराना होगा।  इसके लिए जन हस्तक्षेप बढ़ाना होगा - जिसमे संगठित किसान आंदोलन की भूमिका अहम हो जाती है।  
            प्रदेश की स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंनें कहा कि 2001 में प्रदेश में किसानों की संख्या एक करो ड दस लाख थी, वर्तमान में उनकी संख्या  घट कर लगभग 74 लाख रह गयी है। दूसरी ओर खेतमजदूर जो 74 लाख थे, वे बढकर लगभग 1 करोड  हो गये है। परन्तु उनके लिए भी रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है। बल्कि खेतमजदूरों के कार्य दिवस भी कम हुए है। ऐसे में मनरेगा को प्रभावी तरीके से लागू किये जाने की महती आवश्यकता है,
उन्होंने कहा कि नौकरशाही और राजनेताओं की जकड में फंसकर यह योजना वर्तमान में संस्थागत भृष्टाचार की भेंट चढ़ रही है। योजना कागजों में ही चलायी जा रही है। इसके सुधार के लिए सिर्फ शिकायत काफी नहीं मैदानी हस्तक्षेप भी जरूरी है । इस योजना को  कमसेकम 200  दिन काम दिए जाने तथा  मजदूरी 500 रुपया प्रतिदिन किये जाने की मांग के लिए भी संघर्ष को आगे बढाना होगा। 
     उन्होंने कहा कि मनरेगा की मजदूरी से आमदनी बढ़ेगी तभी देश को आर्थिक मंदी की जकड़न से बाहर निकाला जा सकता है।