महात्मा गांधी और बल्लभ भाई पटेल

वल्लभभाई पटेल जुलाई 1910 में इंग्लैंड चले गए। लंदन लॉ कॉलेज के मिडल टेंपल में लॉ में एडमिशन लिया। यहीं से महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, विट्ठल भाई पटेल ने इस या किसी दूसरे इन् में पढ़ाई की थी और 1910 में ही  जवाहरलाल नेहरू ने भी यहीं के इनर टेंपल में बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया।
हालांकि पढ़ाई के दौरान नेहरू और पटेल कभी एक दूसरे से मिले हों, इसका उल्लेख नहीं मिलता।
दिसम्बर 1912 में टॉप करने के साथ अपनी बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की और 13 फरवरी 1913 को वह बम्बई आ गए, जहां वह अपने बड़े भाई विट्ठलभाई की निगरानी अपने साढ़े पांच साल के बेटे डाहया और 7 साल की बेटी मणिबेन को बोर्डिंग स्कूल में छोड़कर पढ़ाई करने गए थे।
विट्ठल बॉम्बे काउंसिल के मेम्बर बन चुके थे। तय हुआ कि विट्ठल समाजसेवा करेंगे और वल्लभ घर चलाएंगे। 
1916 तक वल्लभ अहमदाबाद के सबसे महंगे वकील बन गए। उन्हें ब्रिज खेलने का शौक ही नहीं था, बल्कि इस खेल में चैम्पियन हो गए थे। मेसर्स वाडिया ने उनसे बाजी लगाई और पटेल ने 2 दिन में उनसे 50 पाउंड जीत लिए। मिसेज वाडिया के अनुरोध पर पटेल माने और खेल रोका गया।
अमदाबाद के कलेक्टर गोडफ्रे डेविस पटेल के मिडल टेंपल के मित्र थे। उस समय पटेल क्रिमिनल केसेज के जाने माने वकील थे जिन्हें गोल्फ खेलना, केस लड़ना, गुजरात क्लब में इलीट तबके के साथ बैठकें करना,सूट बूट पहनना, नेक टाई बांधना पसन्द था।
इसी बीच अहमदाबाद की जमीन पर 1915 में एक और बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी उतरे, जो 22 साल दक्षिण अफ्रीका में बिता चुके थे। कुछ महीने में ही जब गांधी को महात्मा कहा जाने लगा तो पटेल की प्रतिक्रिया थी, "वी आलरेडी हैव टू मेनी महात्माज।"
गांधी के सत्याग्रह का भी पटेल ने मजाक उड़ाया। एक दिन पटेल अपने साथी बैरिस्टर जीवी मावलंकर के साथ गुजरात क्लब में ब्रिज टेबल पर थे। 
 उसी समय गांधी गुजरात क्लब आए और मावलंकर ब्रिज छोड़कर गांधी की तरफ बढ़े। पटेल ने कहा कि कहां जा रहे हो, हमारा खेल देखोगे तो ज्यादा कुछ सीख जाओगे। मैं बताता हूँ कि वह क्या कहेगा। वह कहेगा कि अगर तुम जानते हो कि गेहूं से कंकड़ को कैसे शिफ्ट किया जा सकता है, इससे स्वतंत्रता मिल जाएगी!


यह गांधी पटेल का शुरुआती मिलन था और उसके बाद तो पटेल ऐसे गांधीवादी बने कि लोग यह भी भूल गए कि पटेल पढ़े लिखे हैं या उन्होंने धोती कुर्ता के अलावा भी कुछ पहना है!


सत्येंद्र पीएस की फेसबुक वॉल से