बॉस्टन के साथी कह रहे थे " कई सालों से हार्वर्ड को देख रहे हैं। पर पहली बार आदिवासी, दलित, मुस्लिम समाज के मुद्दों पर "हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस" को बात करते सुन रहे हैं।
" उद्धघाटन सत्र से लेकर अधिकांश सत्र में आदिवासी, दलित और मुस्लिम समाज के मुद्दों को लोग समझने की लोग कोशिश कर रहे थे। कविताओं से लोग जुड़ रहे थे। जल, जंगल, ज़मीन का संघर्ष आदिवासियों का नहीं बल्कि सबका संघर्ष है, इस पर एक मत हो रहे थे।
इस दौरान मिड अटलांटिक रीजन में स्थित राज्य वर्जिनिया से आए लोगों ने कहा " हम इतनी दूर से आए मगर हमारा आना शार्थक हुआ। हम आदिवासियों के जीवन और उनके संघर्ष को निकट से महसूस कर पा रहे हैं। हम उनके साथ खड़े हैं। हमारी दुआएं उन तक पहुंचे।" रांची और बैंगलोर से जुड़े और अमेरिका में बस गए लोग मिलने आए और पहल किया कि सुदूर गांव की लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए वे किस तरह सहयोग कर सकते हैं।
इस बीच सीएए, एनपीआर, एनआरसी का ना सिर्फ़ मुस्लिम समाज लेकिन दलित और आदिवासी समाज पर भी पड़ने वाले प्रभाव पर लोगों ने चर्चाएं की। किस तरह यह मनुष्यता के खिलाफ है और इसपर साथ खड़े होने की जिम्मेदारी सिर्फ़ भारत के लोगों की नहीं पूरी दुनिया की है, बहुसंख्यकों की भी है, यह लोगों ने स्वीकार किया। कल हार्वर्ड से बाहर इन विषयों पर विस्तृत चर्चा, शहर के लोगों ने रखी है।
लोग कह रहे हैं " हार्वर्ड बदल रहा है....।"
हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस 2020
हार्वर्ड केनेडी स्कूल
बॉस्टन ( यू.एस)
Jacinta kerketta