देश ही नहीं रेल भी भगवान भरोसे


एक ट्रेन में भगवान बैठे, देश की बाकी रेलगाडिय़ों में भी तब्दीली की जरूरत


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र बनारस से काशी महाकाल नाम की एक मुसाफिर ट्रेन शुरू हुई है जो कि इंदौर तक जाएगी। स्थानीय सांसद होने के नाते मोदी ने इसे झंडी दिखाई, और भीतर एसी-3 के एक डिब्बे में एक बर्थ स्थाई रूप से भगवान शंकर को अलॉट करके वहां मंदिर बना दिया गया है, और ट्रेन में धार्मिक संगीत बजेगा, उसकी सजावट धर्म के हिसाब से होगी। अब यह एक नया सिलसिला सरकार ने एक फैसले के तहत लिया है जो कि मुम्बई जैसे शहर में लोकल ट्रेन में मुसाफिरों की बहुतायत पहले से बलपूर्वक लागू करते आई है। वहां लोकल में गणेशोत्सव के समय रोज के मुसाफिर एक डिब्बे में गणेश प्रतिमा बिठाते हैं, पूजा-आरती करते हैं, और ढोल-मंजीरे संग संगीत भी करते हैं। अब इस ट्रेन के साथ यह काम सरकारी स्तर पर शुरू कर दिया गया है, जिसका अंत पता नहीं कहां जाकर होगा।


अब केन्द्र की मोदी सरकार के सबसे मजबूत भागीदार, अकाली दल के सामने यह चुनौती होगी कि अमृतसर तक जाने वाली मुसाफिर रेलगाडिय़ों में वह स्वर्ण मंदिर के तीर्थयात्रियों के हिसाब से कैसी सजावट करवाए, और कैसा संगीत बजवाए। हिन्दुस्तान में अकेले अमृतसर में शुरू से ही आकाशवाणी से स्वर्ण मंदिर की सुबह की  गुरूवाणी का जीवंत प्रसारण होते आया है। इसके बाद नीतीश कुमार भी एनडीए के एक बड़े भागीदार हैं, और बिहार में इसी बरस चुनाव भी है, ऐसे में नीतीश कुमार की यह जिम्मेदारी हो जाती है कि उनके राज्य के बोधगया के हिसाब से उन्हें कुछ रेलगाडिय़ों को बुद्ध को समर्पित करवाना चाहिए, और आसपास से निकलने वाली ट्रेनों में एसी-3 नहीं, बल्कि एसी-1 में बुद्ध को बर्थ दिलवानी चाहिए, और बौद्ध संगीत भी बजना चाहिए। इसके बाद कई बार भाजपा की सरकार बनवाने वाले राजस्थान के अजमेर जाने वाली ट्रेन में वहां की दरगाह के हिसाब से साज-सज्जा होनी चाहिए, और पूरे रास्ते उसमें ख्वाजा की कव्वाली भी बजनी चाहिए। इससे कम में राजस्थान का सम्मान नहीं होगा, और प्रधानमंत्री मोदी के लोग बार-बार देश को याद दिलाते हैं कि वे केवल भाजपा के प्रधानमंत्री नहीं हैं, वे पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं इसलिए अब मौका है कि देश भर के लोग अपने-अपने तीर्थस्थानों के हिसाब से रेलगाडिय़ां बनवा लें। कोलकाता जाने वाली गाडिय़ों में काली मंदिर बनाए जा सकते हैं, और प्रधानमंत्री की निजी आस्था के हिसाब से बेलूर मठ की साज-सज्जा वाली कुछ गाडिय़ां भी बनाई जानी चाहिए। तिरूपति जाने वाली गाडिय़ों की साज-सज्जा कैसी होगी यह एकदम साफ है, और उस ट्रेन में खाने की जगह तिरूपति के प्रसाद के विख्यात लड्डू मिलने चाहिए। मुम्बई की कुछ गाडिय़ां हाजी अली के हिसाब से, कुछ गाडिय़ां पारसियों के अग्नि-मंदिरों के हिसाब से, कुछ गाडिय़ां सिद्धि विनायक के गणेश की साज-सज्जा की होनी चाहिए। शिरडी के सांई बाबा के हिसाब से भी पास के स्टेशन से गुजरने वाली गाड़ी बननी चाहिए, और असम में भाजपा की सरकार है, वहां की कामाख्या के हिसाब से भी गाडिय़ां सजनी चाहिए। 


फिर जब इतनी धार्मिक भावना से सब कुछ हो रहा है, तो इन ट्रेनों में जैमर लगाकर मोबाइल-इंटरनेट बंद करवाने चाहिए, क्योंकि जो ईश्वर की ट्रेन में बैठे हैं, उन्हें इधर-उधर की बात करने, नेट-सर्फिंग करने के बजाय केवल कीर्तन पर ध्यान देना चाहिए। यह भी याद रखना होगा कि जिस ट्रेन में खुद ईश्वर को बर्थ अलॉट की गई है, उसमें से शौचालयों को तो हटाना ही होगा क्योंकि ईश्वर के आसपास ऐसा रहना ठीक नहीं है। बल्कि बेहतर तो यह होगा कि जिन पटरियों से यह ट्रेन गुजरेगी, वहां पूरे रास्ते लोगों को पखाने से रोकना होगा, ठीक उसी तरह जिस तरह आज गुजरात के अहमदाबाद में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की नजरों से झोपडिय़ों को रोकने के लिए ऊंची दीवार बनाई जा रही है। अभी तक तो ईश्वर मंदिर-मस्जिद या चर्च-गुरूद्वारे में रहते थे, इसलिए केवल उन जगहों को शौचालय-मुक्त कर देना काफी रहता था, लेकिन अब महाकाल काशी से इंदौर जाएंगे, और उनके गुजरते हुए पटरियों के किनारे शौच से धार्मिक भावनाएं बहुत बुरी तरह आहत होंगी। इसलिए पटरियों से पांच सौ मीटर दूर ही ऐसे गंदे काम की इजाजत देनी चाहिए जिस तरह कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईवे से पांच सौ मीटर दूर शराबखानों को इजाजत दी थी। 


भारत चूंकि एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और यहां पर सर्वधर्म समभाव की बात कही जाती है, इसलिए देश की बाकी ट्रेनों को भी उनकी मंजिलों के तीर्थस्थानों के हिसाब से ढालने की जरूरत है, क्योंकि आज देश के बहुत से लोगों को यह लग रहा है कि इस देश का अब भगवान ही मालिक है। लेकिन चूंकि देश धर्मनिरपेक्ष है और भगवान शब्द केवल हिन्दुओं के हिसाब से रहता है, इसलिए बाकी धर्मों को भी बराबरी का सम्मान देते हुए इस नौबत को बदलना चाहिए, ताकि लोगों को लगे कि इस देश का अब ईश्वर ही मालिक है, ईश्वर शब्द में सभी धर्म आ जाते हैं। रेलगाडिय़ां पूरे भारत की एकता का सबसे बड़ा प्रतीक है, और उसे ही सभी लोगों की भावनाओं का, खासकर धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने में जोता जा सकता है, इसलिए देश के बाकी तीर्थस्थानों के लिए भी गाडिय़ों को चलाया जाए, वर्तमान गाडिय़ों को बदला जाए, और देश में आस्था के एक नए युग को शुरू किया जाए। ईश्वर के आशीर्वाद से ही यह देश पटरी पर लौट सकता है, और लौटेगा। देश की मोबाइल कंपनियां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वैसे भी दुकानें बंद कर सकती हैं, ऐसे में लंबे-लंबे सफर में कीर्तन, कव्वाली, और दूसरे धर्मों की आराधना का बड़ा सहारा रहेगा। 


@ Sunil Kumar