चीनी सेना की इस धमकी का क्या अर्थ है कि कोरोना का फ़ायदा उठा कर अलगाववादी कोशिशें करने वालों को कुचल दिया जाएगा? चीन के हाथ से क्यों निकलते जा रहे हैं अरब देशों के बाज़ार?

चीन इस समय कोरोना वायरस का दंश झेल रहा है जिसने पूरे चीनी समाज को बुरी तरह प्रभावित किया है। मरने वालों और वायरस की चपेट में आने वालों की संख्या लगातार तेज़ी से बढ़ रही है। चीनी प्रशासन को इस बात की अधिक चिंता है कि वायरस के कारण विश्व भर में फैले भय और ख़ौफ़ से उसे अधिक नुक़सान हो रहा है।
कहा जाता है कि अब तक 1153 लोगों का इलाज हो चुका है लेकिन वायरस की चपेट में आने वाले नए लोगों की संख्या अधिक तेज़ी से बढ़ती जा रही है। चीन को इस बड़े संकट से 62 अरब डालर का नुक़सान पहुंचने की बात कही जा रही है जबकि इससे बड़ा नुक़सान यह है कि बड़ी संख्या में कंपनियां चीन से बाहर जा रही हैं और चीन के हाथ से विदेशों के बाज़ार निकल रहे हैं। फ़ार्स खाड़ी के देशों से चीन अपनी ज़रूरत का 60 प्रतिशत तेल और गैस ख़रीदता है। चूंकि चीन में कोरोना वायरस से हर विभाग बुरी तरह प्रभावित है अतः फ़ार्स खाड़ी के देशों से चीन को तेल और गैस की सप्लाई भी प्रभावित हुई है।
इस बीच एक नया संकट बढ़ता दिखाई दे रहा है। चीन ने पहले भी अमरीका पर आरोप लगाया है कि वह जान बूझ कर ख़ौफ़ फैला रहा है और अब चीनी सेना ने कहा है कि यदि कोरोना वायरस से पैदा होने वाली स्थिति का फ़ायदा उठाकर ताइवान ने चीन से अलग होने की कोशिश की तो इस तरह की हर कोशिश को कुचल दिया जाएगा। चीनी प्रशासन की ओर से कहा गया है कि ताइवान कोरोना संकट का दुरुपयोग करने की कोशिश कर रहा है लेकिन इस कोशिश को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। ताइवान ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से मांग की है कि कोरोना से निपटने में उसकी मदद करे। यानी ताइवान ने चीन की ओर से की जा रही कोशिशों को अपर्याप्त माना है जिसे चीनी प्रशासन अलगाववाद की साज़िश समझ रहा है।
ताइवान ने अपने इलाक़े में चीनी नागरिकों के प्रवेश पर रोक लगा दी है और चीनी सरकार की ओर से घोषित उपायों से अलग हटकर बीमारी की रोकथाम के लिए अतिरिक्त उपाय भी किए हैं।
चीन ने ताइवान को यह संदेश दे दिया है कि इस समय भी जब उसकी सेना घातक वायरस से लड़ रही है वह ताइवान की अलगाववाद की कोशिशों को नाकाम बनाने के लिए तैयार है। दरअस्ल चीन की यह धमकी ताइवान नहीं अमरीका के लिए है जो अलगाववादी कोशिशों का समर्थन कर रहा है।
चीन जिस संकट में उलझ गया है उसने बहुत से बाज़ारों को चीन की पहुंच से बाहर कर दिया है। फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों के बाज़ारों का स्वभाव बहुत तेज़ी से बदलता दिखाई दे रहा है। चीनी प्रशासन को तो यही लग रहा है कि इसके पीछे अमरीका का हाथ है और यह भी चीन और अमरीका के बीच जारी व्यापारिक युद्ध का एक भाग है।