दलितों, पिछड़ों और वंचितों के मसीहा कहे जाने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और बिहार में समाजवाद के सबसे मजबूत स्तम्भ स्व. कर्पूरी ठाकुर ने बगैर किसी तामझाम और प्रचार के बिहार की राजनीति में पारदर्शिता, ईमानदारी और जन-भागीदारी के जो प्रतिमान उपस्थित किए, उसके आसपास भी पहुंचना उनके बाद के किसी राजनेता के लिए संभव नहीं हुआ। एक गरीब नाई परिवार से आए कर्पूरी जी सत्ता के तमाम प्रलोभन और आकर्षण के बीच भी जीवन भर सादगी और निश्छलता की प्रतिमूर्ति बने रहे। ईमानदारी ऐसी कि अपने लंबे मुख्यमंत्रित्व-काल में उन्होंने सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल कभी अपने व्यक्तिगत कार्यों के लिए नहीं किया। उनके परवर्ती मुख्यमंत्रियों के घरों में कीमती गाड़ियों का काफ़िला देखने के आदी लोगों को शायद विश्वास नहीं होगा कि कर्पूरी जी ने अपने परिवार के लोगों को कभी सरकारी गाडी के इस्तेमाल की इज़ाज़त नहीं दी। एक बार तो उन्होंने अपनी बेहद बीमार पत्नी को रिक्शे से अस्पताल भेजा था ।
कर्पुरी ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था l कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गाँव पितौंझिया, जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, में हुआ था। भारत छोड़ो आन्दोलन के समय उन्होंने 26 महीने जेल में बिताए थे। वह 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे। सरल और सरस ह्र्दय के राजनेता माने जाते थे। सामाजिक रुप से पिछडी किन्तु सेवा भाव के महान लक्ष्य को चरितार्थ करती नाई जाति में जन्म लेने वाले इस महानायक ने राजनीति को भी जन सेवा की भावना के साथ जिया। उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जन नायक कहा जाता था, वह सदा गरीबों के हक़ के लिए लड़ते रहें| मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया| उनका जीवन लोगों के लिया आदर्श से कम नहीं|
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 -एवं निधन 18 फरवरी 1988 को हुआ l
'गुदड़ी के लाल' और 'बिहार के भूमिपुत्र' कर्पूरी जी की जयंती पर शत-शत नमन !
Dhruv Gupt