नालन्दा से जे एन यू ; हर शाख पर खिलजी बैठा है !! 


#खिलजी कहीं गया ही नही
● इतिहास के दोहराने को लेकर अनेक मुहावरे और कहावतें हैं । कभी उसके पहले त्रासदी और फिर स्वांग मे दोहराने की बात कही गई है तो कहीं उसके जिम्मे अंतिम फैसला छोड़ देने की सदाशयता व्यक्त की गई है । कभी इतिहास द्वारा किसी को भी न बख्शने का दावा किया जाता है तो अक्सर उससे सबक लेने की बात की जाती है । मगर सबसे बड़ा सवाल,  जिसे प्रायः जितनी जरूरी है उतनी तवज्जोह नहीं दी जाती,  वह यह है कि इतिहास व्यक्तियों और उनके द्वारा किए गए कर्मों का लेखाजोखा भर नहीं होता ; वह कुछ खास प्रवृत्तियों और विशिष्ट नजरियों और कार्यशैलियों का जोड़ होता है । इसलिए व्यक्तियों के कालातीत हो जाने के बाद भी वह हमेशा गुजरा हुआ अतीत नहीं बनता । अक्सर निरंतरित रहता हुआ भी पाया जाता है ।  
● जैसे इतिहास को व्यक्ति और उसकी कारगुजारी तक सीमित रखने से एक बड़ा मुगालता यह पैदा होता है कि अवध का दरोगा और बादशाह ऐबक का सिपहसालार बख्तियार खिलजी 12  वी शताब्दी की शुरुआत मे नालंदा मे बने बुद्ध विहार-सह-विश्वविद्यालय को ध्वस्त और उसकी विराट लाइब्रेरी को फूँक कर चला गया था । जबकि असल मे वह कहीं नहीं गया था । वह यहीं बना रहा और वही करता रहा जो नालंदा मे किया था या नालंदा करने के पहले कभी चार्वाक को उनके ग्रन्थों के साथ सपरिवार फूंकने, एक बौद्द भिक्खु का कटा हुआ सर लाने पर एक सौ स्वर्ण मुद्राएं देने से लेकर कबीर को लांछित, जोतिबा और सावित्री फुले को अपमानित करने के जरिये करता रहा था । खिलजी 1193 की साल मे घोड़ों पर सवार होकर बिहार और पूरब को दखल करने वाला व्यक्ति भर नहीं था वह  इतिहास की उस कलुषित प्रवृत्ति का अपने दौर का वाहक था जो मानव समाज से ज्ञान-अनुसंधान, विचार और अन्वेषण, विमर्श और विश्लेषण को पूरी तरह, हमेशा के लिए बेदखल कर देना चाहती है । वह लगातार बार बार आता रहा - कभी कुस्तुंतुनिया की अल हकम लाइब्रेरी फूंकने आया, कभी बगदाद के हाउस ऑफ विज़डम को धूल मे मिलाने आया, अभी महज 15 साल पहले यह जंगखोर अमरीकी सेना की वर्दी पहने दूर इराक़ के नेशनल म्यूजियम मे रखे मानव सभ्यता के प्राचीनतम ग्रन्थों, शिल्प और कृतियों को लूट खसोट रहा था । अफगानिस्तान मे अपने सहोदरों के वेश मे बामियान मे फिर से बुद्द को ढहाने की कोशिश कर रहा था,  तो ठीक उसी समय इधर पुणे मे, जिनका हिन्दू धर्म या परंपरा से कोई रिश्ता नहीं उन हिन्दुत्वी कट्टरपंथियों का बाना धारे संभाजी ब्रिगेड का नाम रख भंडारकर इंस्टीट्यूट की विश्वप्रसिद्द पुस्तकों के भंडार पर पेट्रोल डाल माचिस दिखा रहा था । कभी वह हैदराबाद विश्वविद्यालय मे अपने तेगे पर रोहित वेमुला की देह को ध्वज बनाए नजर आता है तो कभी उसका मैदान जामिया यूनिवर्सिटी होती है । बारहवीं सदी के खिलजी ने अब अपने फ़लक का विस्तार कर लिया है - अब उसकी जद मे सिर्फ नालंदा जैसे सोचना विचारना सिखाने वाले शिक्षा केंद्र भर नहीं है, सोचने समझने वाले इंसान भी है । हिन्दुत्व के सहस्रभुजा संगठनो का रूप धर कर वह समय समय पर कुलबुर्गी, दाभोलकर, पानसारे, गौरी लंकेश भी करता रहता है तो कभी धमकाकर पेरुमल मुरूगन कर लेता है । 
● व्यक्ति खिलजी की कब्र कहाँ है यह शायद ही किसी को पता हो - मगर प्रवृत्ति के रूप मे खिलजी अभी भी अकल के पीछे घोडा लिए दौड़ रहा है । 
इन दिनो उसके निशाने पर नालंदा के वंशज भारत के सभी विश्वविद्यालय हैं, फिलवक्त उसका हैडक्वार्टर जे एन यू,  दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय  है । खिलजी इस बार कुलपति का वेश धर कर आया है - पेट्रोल और माचिस की जगह नई नई बन्दिशॉ, बढ़ी चढ़ी फ़ीसों के तुगलकी फरमान,  जे एन यू के लोकतन्त्र को कुचलने के हिटलरी अरमान और सी आर पी एफ जैसे बिनबुलाए मेहमान साथ मे लेकर आया है । खिलजी की मौजूदा अवतार खल मंडली को जे एन यू से खास चिढ़ है - यह चिढ़ इसलिए और ज्यादा है कि तिकड़मों - साज़िशों का सारा असलहा खर्चने के बावजूद वह इस आधुनिक नालंदा की एक दीवार तक नहीं हिला पाया, एक ईंट तक नहीं सरका पाया । उल्टे उसकी मान प्रतिष्ठा और बढ़ती गई - दुनियाँ भर मे झंडे गाड़ती रही । जे एन यू इस खिलजी की पराजयों का जीताजागता प्रमाण ही नहीं है वह उसके खिलाफ लड़ाई का एक अनूठा उदाहरण भी बनकर स्थापित हुआ है । 
● मगर बर्बर अंततः बर्बर ही होते हैं - क्यूंकि वे मूलतः बर्बर होते हैं । हर बार वे नित नया हथकंडा लेकर आते हैं । इस बार उन्होने जे एन यू से उसका छात्रसंघ छीनने की कोशिश की ; पहले बोले 'हड़प्पाकालीन' लिंगदोह कमेटी के आधार पर छात्रसंघ चुनाव नही होने देंगे । हाईकोर्ट बोला चुनाव कराओ । चुनाव हो गए । जबरदस्त वोटिंग हुई । फिर बोले ; गिनती नहीं होने देंगे । हाईकोर्ट ने कहा ; काउंटिंग पूरी करो । एस एफ आई, आईसा, एआईएसएफ धमाकेदार बहुमत से जीत गई । फिर बोले ; परिणाम घोषित नही होने देंगे । हाईकोर्ट ने कहा ; नतीजे घोषित करो । जुझारू छात्रनेत्री आइशे घोष की रहनुमाई में नई स्टूडेंट यूनियन निर्वाचित घोषित हो गई । मगर खिलजी इसके बाद भी रुका नहीं - 16 अक्टूबर को पुराने फौजियों की एक पूरी टुकड़ी भेज कर यूनिवर्सिटी के मौजूदा प्रशासन ने धमकी दी कि "छात्रसंघ कार्यालय खाली करो ।" क्यों ? क्योंकि नई निर्वाचित स्टूडेंट्स यूनियन नोटिफाई नहीं हुई है । किसे नोटिफाई करना था ? इसी यूनिवर्सिटी प्रशासन को !!  इसे कहते हैं खंभा नोचती खिसियानी बिल्ली की मूर्खता, धूर्तता के तड़के और तानाशाही की टॉपिंग के साथ । मगर जेएनयू ऐन्वेई जेएनयू नही है । जिन छात्रों ने अपनी स्टूडेंट्स यूनियन चुनी है वे अपने छात्रसंघ कार्यालय में डटे हुए हैं ; 24×7 चौबीसों घण्टे सातों दिन । वही बैठकर पढ़ रहे हैं । क्लास लगा रहे हैं । सांस्कृतिक कार्यक्रम कर रहे हैं, लिख रहे हैं, गा रहे हैं । 
● इसके बाद वह हॉस्टल और मैस की फ़ीसों मे अकल्पनीय बढ़ोत्तरी का फरमान लेकर आया । पढ़ने, लाईब्रेरी मे बैठने से लेकर आने और जाने की समयसीमा के कठोर प्रतिबंधों के साथ जे एन यू को एक जेल मे बदलने के मंसूबों को उजागर करके, उस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोल दिया । डराने और भयभीत करने के लिए सीआरपीएफ की पूरी बटालियन उतार दी । मंशा वही है ; पढ़ाई लिखाई को आम अवाम की पहुँच से बाहर करना - सोचने समझने वाली जमात की बजाय रेजीमेंटेड रंगरूटों और रिमोट-चलित रोबोट्स की कतारें खड़ी करना । इस सरासर बेहूदगी के खिलाफ समूचे जे एन यू ने एक साथ खड़े होकर फिलहाल उसे अपने पाँव पीछे करने के लिए विवश कर दिया है । जे एन यू ने एक और हमला नाकाम किया है - मगर न यह आक्रमण आखिरी है, न उसे नाकाम करने वाला मुक़ाबला ही अंतिम है । अमरीकी प्रतिरोध आंदोलन की कवियित्री माया एंजेलो ने कहा था कि "अत्यंत भीषण दर्द के बावजूद इतिहास को अन-जिया नहीं किया जा सकता, उसे भुलाया नहीं जा सकता - हाँ, अगर साहस के साथ इसका सामना किया जाये तो इसे दोबारा जीने की ज़िल्लत और यातना से बचा जरूर जा सकता है ।" 
● दिल्ली के वसंतकुंज पुलिस स्टेशन मे अपने कुलपति की  गुमशुदगी की रिपोर्ट कराने पहुंचे जे एन यू के छात्र-छात्राओं के हुजूम यही कर रहे थे ; साहस के साथ सामना कर रहे थे । उनका कुलपति सचमुच गुम हो गया है, क्योंकि कुलपति के चैंबर मे खुद खिलजी विराजमान हुआ जो बैठा है  ।


बादल सरोज


लेखक मध्य प्रदेश सीटू के उपाध्यक्ष हैं