गाँधी स्मृति, जनता की या सरकार की, यह तय होना जरूरी है  30 जनवरी को सुबह 10 बजे आप गाँधी स्मृति में सादर आमंत्रित हैं 


क्या आप जानते हैं कि गाँधी स्मृति, 30 जनवरी मार्ग, पर जहां बिरला हाउस में गाँधी जी की हत्या की गई थी वहां गांधी जी को श्रद्धांजली देने 29 जनवरी 12 बजे दोपहर से 30 जनवरी शाम पांच बजे तक कोई नहीं जा सकता। यह वही "गांधी जी" हैं जिन्हें देश ने राष्ट्र पिता माना है तथा जिन्होंने पूरा जीवन देश की आजादी के लिये और आम जन के लिये समर्पित किया था।


भारत जोड़ो-संविधान बचाओ, समाजवादी विचार यात्रा हम 30 जनवरी को सुबह 10 बजे गांधी स्मृति से शुरू करेंगे। पिछले एक महीने से समाजवादी समागम की ओर से यात्रा संयोजक अरूण श्रीवास्तव जी द्वारा एसपीजी, दिल्ली पुलिस, चुनाव आयोग, गांधी स्मृति के डायरेक्टर से कई बार बातचीत की गई। अंततः 28 जनवरी को हमें 10 से 12 के बीच की लिखित अनुमति दिल्ली पुलिस ने दी। परंतु आज जब मैं अनुमति के कागज लेकर गांधी स्मृति के डायरेक्टर से मिला तो उन्होंने कहा कि यात्रा के कार्यक्रम के बारे में वे कोई चर्चा नहीं कर सकते क्योंकि परिसर सुरक्षा ऐजंसियों ने अपने कब्जे में ले लिया है। 


इसी बीच मुझे प्रधानमंत्री सुरक्षा से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि आपकी अनुमति का कोई मतलब नहीं है क्योंकि आज 12 बजे से यह परिसर हमारे कब्जे में है। उनकी सलाह पर मैं प्रधानमंत्री सुरक्षा से जुड़े कार्यालय में गया जहां कार्यक्रम सेल के अधिकारी ने कहा कि आप या कोई भी अन्य व्यक्ति 30 जनवरी के 5 बजे के पहले गेट के अंदर दाखिल नहीं हो सकता। सड़क पर आप क्या करते हैं इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है हम गाँधी स्मृति परिसर में किसी को दाखिल नहीं होने देंगे।


मैंने जब उनसे यह सवाल किया कि क्या शरद यादव जी, शरद पवार जी, गणेश देवी जी, सीताराम येचुरी जी, डी. राजा जी, योगेन्द्र यादव जी को पुष्पांजली देने गेट के अंदर नहीं जाने दिया जायेगा? तब उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। 


प्रश्न यह नहीं है कि समाजवादी विचार यात्रा के यात्री गांधी जी को 30 जनवरी यानि कल पुष्पांजली दे पायेंगे या नहीं?  मुद्दा यह है कि गांधी जी की हत्या से जुड़े सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान पर राज्य (सरकार) का कब्जा रहेगा या वह स्थान सार्वजानिक होगा जो जहाँ कोई भी आ-जा सकेगा?  गांधी जी किसी सरकार की निजी संपत्ति नहीं हो सकते। सुरक्षा कारणों से गांधी जी को जनता से अलग नहीं किया जा सकता। यह गांधी जी का अपमान है। 


देश का सबसे बड़ा जन आन्दोलन 1942 में गाँधी जी के अंग्रेजो भारत छोडो के नाम से जाना जाता है यह आंदोलन मुंबई के ग्वालियरा टैंक मैदान, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान कहा जाता है वहां हुआ था| उस मैदान पर भी इसी तरह से सरकार का कब्जा था। समाजवादियों ने यही सवाल तब खड़ा किया था कि अगस्त क्रांति मैदान किसका है?  जनता का या सरकार का? जब मृणाल गोरे जी ने यह सवाल खड़ा किया तब लाठी चार्ज किया गया। उसके बाद से मैदान जनता के लिये खोल दिया गया। तब  से लेकर अब तक हर वर्ष 9 अगस्त के दिन देश भर के राजनैतिक दल और विभिन्न संगठन अपना कार्यक्रम उसी मैदान में आयोजित करते हैं तथा मुख्यमंत्री भी इन्हीं सब कार्यक्रमों के बीच शहीदों को फूल चढ़ाकर हर वर्ष जाते हैं| ऐसा मैंने खुद दस वर्ष पहले 9 अगस्त 2009 में सप्त क्रांति विचार यात्रा के आरंभ होते समय स्वयं देखा था इसलिये मुझे लगता है कि गाँधी स्मृति को भी सरकार से मुक्त कराने के लिये गाँधी को मानने वाले सभी लोगों को आगे आना चाहिये| गाँधी जी जनता के थे, हैं और रहेंगे| 


हमारी प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से अपील है कि वे गाँधी जी को मुक्त करने की कल ही घोषणा करें तथा यात्रियों के साथ-साथ आम लोगों को भी गाँधी जी को पुष्पांजलि अर्पित करने का अवसर प्रदान करें| प्रधानमंत्री का कार्यक्रम 4 बजे से शुरू होता है तथा 5 बजे तक चलता है यानी 1 घंटे के अलावा गाँधी स्मृति जनता के लिए खोला जाना चाहिये|  


यह जानकारी मैंने आपसे साँझा करना आवश्य समझा क्योंकि देश की जनता को यह जानकारी शायद नहीं है| 


आपसे अनुरोध है कि  सुबह 10 बजे तक गाँधी स्मृति, 30 जनवरी मार्ग अवश्य पहुंचे| 
डॉ. सुनीलम