देश के मेहनतकशों के इस जबरदस्त शानदार प्रतिरोध की कोई 250-300 तस्वीरें और अनेक खबरें देखी । सुबह अंडमान के पोर्ट ब्लेयर में मजदूर, कर्मचारियों और आइलैंडर्स के कोई 1000 की भागीदारी वाले धरने की शुरुआत, दोपहर हड़ताली जलूसों की भरमार वाले चेन्नई में हुई । शाम पॉन्डिचेरी पहुंचे तो शहर दिन भर के बन्द के बाद आंखें खोल रहा था ।
● कल के सबक तीन हैं ।
#एक ; देश भर की कार्यवाहियों में महिलायें सबसे ज्यादा तादाद में थीं, आगे आगे चलती, अगुआई करती । और यह सिर्फ तुलनात्मक रूप से विकसित चेतना के प्रदेशों की ही कहानी नहीं थी, गौ-माता परिसर, काऊ बैल्ट प्रदेशो का भी यही नजारा । अकेले ये विजुअल्स ही काफी हैं उस मन्थन, बदलाव की चर्निंग को रेखांकित करने के लिये जो भारत की विराट आबादी के बीच जारी है । औरतें उठेंगी तो अच्छे अच्छों की खटिया खड़ी कर देंगी ।
● सलाम इन्हें और सलाम उन मजदूर किसानों को जिन्होंने 8 जनवरी को ठगराज का मुखौटा नोंच फेंका ।
#दो इस आमहड़ताल के मुद्दे कार्पोरेटी नीतियों के तिरस्कार और उनके वफ़ादार चाकरों के धिक्कार के मुद्दे थे । यह भारतीय जनता के विराट बहुमत की #ना थी । नो मीन्स नो ।
#तीन मगर सत्तासीन क्या कर रहे थे । ठीक इसी दिन कैबिनेट की मीटिंग में कोयला उद्योग में 100 फीसदी विदेशी निवेश का निर्णय लेकर भारत को लूटने के लिए दुनिया भर के मगरमच्छों को न्यौत रही थी । इस तरह मोदी-शाह के नेतृत्व वाली कारपोरेट की हिन्दुत्वी सरकार ने इस जनमत के विस्फोट का जो जवाब दिया है वह इनकी अपराधी, देश विरोधी , पूंजी गुलाम मानसिकता का ही उदाहरण है ।
#जाहिर_है_अभी_लड़ाई_जारी_है
बादल सरोज