आसाम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाने के दौरान नागरिकों को हुई परेशानी और संसाधनों का व्यय देखते हुए व नागरिकता संसोधन बिल संविधान विरोधी होने के कारण इन दोनों प्रक्रियाओं को तुरंत रोक लगाई जाये | देश के सामने जो अन्य जरूरी समस्या हैं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, किसानों की आत्म हत्या, बच्चों का कुपोषण, महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के समाधान को सरकार को प्राथमिकता देना चाहिए | सोशलिस्ट युवजन सभा राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर व नागरिकता संसोधन विधेयक का जोरदार विरोध करती हैं तथा इसपर सक्रिय आंदोलन करेगी और नागरिकों से सविनया अवज्ञा आंदोलन का आह्वान करती हैं |
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा किया था की गैर कानूनी ढंग से एक भी विदेशी को भारत में नहीं रहने देंगे | इसलिए सबसे पहले असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर अमित शाह ने की | असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की कवायद में 19 लाख लोग गैरकानूनी रूप से असम में रह रहे हैं ऐसा पाया गया | गृह मंत्री अमित साह ने उतेजीत होकर यह भी कह दिया है की इस तरह की कारवाई हर राज्य में की जाएगी । आगे चलकर यह भी कह दिया है की आफ़गनिस्तान, पाकिस्तान तथा बांगलादेश से जो आगंतुक आये होंगे उनमें से हिन्दू, सीख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई मजहब के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाय ऐसा संशोधन नागरिकता कानून 1955 में किया जाएगा । इसका साफ अर्थ हैं की मुस्लिम तथा अन्य मजहब के अनुयायियों को नागरिकता नहीं दी जाएगी । यह रवैया भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ है । संविधान की धारा 6 तथा 7 में प्रावधान है की, जो व्यक्ति या जिसके माता-पिता भारत सरकार कानून 1934 के राज्यक्षेत्र में जन्में है उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा तथा धार 326 में लिखा है की मतदाता सूची बनाते समय किसी को भी जाती, धर्म, वंश तथा भाषा आदि कारण से वंचित नहीं रखा जाएगा । भारत के चतुसीमा के अंदर जन्में सब स्त्री पुरुष भारत के नागरिक है । यह स्पष्ट भूमिका संविधान में प्रकट की है उसे खत्म करने वाला रवैया अमित शाह तथा उनकी पार्टी भाजपा अपना रही है । सोशलिस्ट युवजन सभा इसका पुरजोर विरोध करती है ।
असम जैसी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की कवायद अब किसी राज्य में करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि गत 50 वर्षों में किसी भी देश से लोग बड़े समूह में नहीं आये हैं । कोई एक या दो व्यक्ति गैरकानूनी ढंग से आता है तो उसे रोकने के लिए आज के कानून पूर्णतया सक्षम है । कोई नया कानून बनाने की जरूरत नहीं । गत 4-5 दशक में मतदाता सूची, हर परिवार को राशन कार्ड तथा उसकी सूची, जन्म का पंजीकरण, आधारकार्ड तथा पैनकार्ड आदि तरीकों से नागरिकों का रजिस्टर उपलब्ध हो गया है । नया राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की जरूरत नहीं । खासकर केवल मुस्लिम और ज्यु मजहब के लोगों को टालने वाला संशोधन करना अपराध है ।
असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर लागू करने में नौ वर्ष, 5 हजार से अधिक न्यायाधिकरण लगातार काम करते रहे । सरकारी खर्च 8 हजार करोड़ हुआ । 48 लाख स्त्री-पुरुष तथा बच्चों को सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाने पड़े । कागजात जुटाने के लिए उनका बहुत पैसा तथा समय बर्बाद हुआ । इतना सब होने के बाद असम सरकार ने दिया की वह राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर रद्द कर रहे हैं ।
देश भर में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर लागू होने पर 32 करोड़ स्त्री-पुरुष बच्चों को सरकारी दफ्तर के चक्कर काटने पड़ेंगे । उनके बाप-दादा-परदादा भारत में रहते थे इसके कागजात जुटाने होंगे जो बहुतांश लोगों के लिए असंभव है । किसान, वृद्ध महिलाओं व छात्र/छात्राओं के लिए चल रहा समजकल्याण योजना खटाई में पड़ेगी । सरकार का डेढ़ लाख करोड़ से अधिक खर्च होगा तथा गैरकानूनी आगंतुकों इस प्रक्रिया से एक भी पकड़ा नहीं जाएगा ।
सोशलिस्ट युवजन सभा की राय में कि यह विधेयक धर्म-आधारित राष्ट्र के सिद्धांत को मजबूत करने वाला है और आरएसएस की मान्यता के अनुरूप भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की सोच पर आधारित है। जबकि संविधान निर्माताओं ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र स्वीकृत किया है। सोशलिस्ट युवजन सभा चाहती है कि इस समस्या का समाधान भारत-पाक और बांग्लादेश का महासंघ बनाने के व्यापक विचार में है। क्योंकि यह उपमहाव्दीप धार्मिक आधार पर भौगोलिक रूप से बांट तो दिया गया, लेकिन उसका इतिहास, संस्कृति और अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इसलिए उसे धार्मिक आधार पर बांटने की कोशिश नई-नई समस्या पैदा कर रही है।