पेरियार ई. वी. रामासामी नायकर स्मृति दिवस : 24 दिसंब
(17.9.1879-24.12.1973)
जन्म
पेरियार इरोड वेंकट रामासामी नायकर का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के ईरोड में एक कन्नड़ परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम माननीय वेंकट नायकर और माता का नाम माननीया चिन्ना थायम्मा है।
काशी की यात्रा-प्रथम धक्का
पेरियार ने 1904 में वाराणसी की एक धर्मशाला में पाया कि सिर्फ ब्राह्मणों को ही भोजन परोसा जा रहा था। कई दिन भूखे रहने के बाद पेरियार ने जनेऊ पहनकर ब्राह्मण के रूप में धर्मशाला में प्रवेश किया। पर गेटकीपर ने उन्हें धक्के मारकर बाहर कर दिया। अंत में धर्मशाला में खाने वाले ब्राह्मणों के फेंके गए पत्तल में छूटा भोजन ग्रहणकर उन्हें अपनी भूख मिटाने पड़ी। भोजन ग्रहण करते हुए उनका ध्यान धर्मशाला के भवन पर खुदे हुए अक्षरों पर गया तो उन्होंने पाया कि यह धर्मशाला तो अमीर द्रविड़ व्यापारी द्वारा निर्मित है। अब उनके दिमाग में यह प्रश्न आया की द्रविड़ व्यापारी द्वारा निर्मित धर्मशाला में भी द्रविड़ जाति को ही भोजन क्यों नहीं? ब्राह्मण जाति इतनी दयाहीन क्यों? जातिवाद को लागू करने के लिए क्या ब्राह्मण जाति इतनी गिर जाती है! यहाँ से पेरियार को बड़ा धक्का लगा और उन्होंने ब्राह्मणी व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। काशी एक पवित्र शहर के रूप में प्रसिद्ध था पर उन्होंने यहाँ अनैतिक गतिविधियों का भद्दा रूप देखा, वेश्यावर्ती, लूट धोखेबाजी, भिक्षावृत्ति, नदियों में बहते मृत शरीर देखकर उनका मन भर गया।
स्वतंत्रता आंदोलन में प्रवेश
1919 में पेरियार, सी.राजगोपालाचारी के कहने पर कांग्रेस पार्टी के सदस्य बने। 1920 में गांधीजी के नेतृत्व में हुए असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। 1922 में पेरियार तमिलनाडु कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए।
पेरियार ने कांग्रेस प्रांतीय अधिवेशन तिरुनवेली (1920), तिरुपुर (1922), सलेम (1923) में द्रविड़ जाति के अछूतों को मंदिर प्रवेश, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में कम्युनल रिजर्वेशन नीति लागू करने का प्रस्ताव रखा, परंतु कांग्रेस कमेटी में ब्राह्मणों की बहुलता के कारण यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया। सलेम में हुई पब्लिक मीटिंग में पेरियार ने कहा कि नॉन-ब्राह्मण के प्रतिनिधित्व के लिए रिजर्वेशन ब्रिटिश भारत में अंग्रेजों के शासन लागू नहीं हो पाया तो ब्राह्मणों का वर्चस्व समाप्त नहीं होगा और गैर-ब्राहमण जातियां अत्याचार की शिकार होती रहेगी।
1923 में जस्टिस पार्टी की राजा पानागल के नेतृत्व वाली सरकार ने जब विधान परिषद में ब्राह्मण पुजारियों का शोषण समाप्त करने के लिए हिंदू रिलीजियस एंडोमेंट बिल लाया तो पेरियार ने कांग्रेस में रहते हुए भी बिल का समर्थन किया। इसके अलावा जस्टिस पार्टी की सरकार ने जब शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में रिजर्वेशन नीति लागू की। तब भी पेरियार ने इसके लिए जस्टिस पार्टी की प्रशंसा की।
वायकोम सत्याग्रह (1924)
वायकोम मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पर अवर्ण हिंदुओं को जाने की मनाही थी, जिसके विरुद्ध सत्याग्रह हुआ। पेरियार ने सत्याग्रह में भाग लिया और जेल भी गए। वायकोम सत्याग्रह आंदोलन के तहत अछूत जाति के लोगों को भी सार्वजनिक स्थानों पर लाने की मांग थी जिन्हें समाज में उच्च वर्ण के लोगों के सामने आने की अनुमति नहीं थी। ब्राह्मणों ने घोर विरोध किया। लेकिन बहुमत के कारण सरकार ने मंदिर वाली सड़क अवर्णों के लिए खोल दी।
कांग्रेस से मोहभंग और स्वाभिमान आंदोलन की स्थापना
1925 में कांग्रेस का प्रांतीय अधिवेशन कांचीपुरम में हुआ। पुनः पेरियार ने गैर-ब्राह्मणों के लिए शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में कम्युनल रिजर्वेशन नीति लागू करने का प्रस्ताव रखा परंतु पहले की तरह कांग्रेस कमेटी में ब्राह्मणों की बहुलता के कारण यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया। प्रस्ताव गिरने से पेरियार को लगा कांग्रेस पार्टी को सुधारा नहीं जा सकता इसलिए कांग्रेस पार्टी हमेशा के लिए छोड़ दी और प्रण लिया कि अब एक ही उद्देश्य होगा ब्राह्मणवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना।
गांधी से मुलाकात 1927
पेरियार ने गांधी से कहा कि आजादी की लड़ाई से पहले तीन बुराइयां समाप्त होनी चाहिए-
1.कांग्रेस पार्टी के भीतर ब्राह्मण पदाधिकारियों का वर्चस्व समाप्त होना चाहिए।
2.जाति प्रणाली समाप्त कर दी जानी चाहिए।
3.समाज में ब्राह्मणों का वर्चस्व समाप्त होना चाहिए।
मूर्ति पूजा की निंदा
मूर्ति पूजा की निंदा करने और मूर्तियों में कोई दिव्य शक्ति नहीं है, यह दुनिया को दिखाने के लिए उन्होंने 1953 में एक अभियान का आयोजन किया। अनुयायियों के साथ मिलकर सार्वजनिक स्थानों पर मूर्तियों को तोड़ दिया।
राजगोपालाचारी (राजाजी) 1952 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने शिक्षा सुधार कार्यक्रम लाया कि सभी छात्र अपने माता-पिता का पेशा ही स्कूल में सीखे। पेरियार ने तीव्र-विरोध किया। विरोध की तीव्रता इतनी भयंकर थी कि राजाजी को पद छोड़ना पड़ा।
पेरियार आजीवन ब्राह्मणवाद (गैरबराबरी की भावना), जातिवाद, अंधविश्वास, मूर्ति पूजा के विरुद्ध विद्रोह करते रहे और तर्क के आधार पर समतामूलक समाज के स्थापना के लिए संघर्ष करते रहे। उनका परिनिर्वाण 24.12.1973 को हुआ।
आओ हम उनके मिशन को मंजिल तक पहुंचाने की प्रतिज्ञा करें।