आजादी के बाद शिक्षा के क्षेत्र में जिन चंद लोगों का बेहद बुनियादी योगदान है, प्रोफेसर यशपाल उनमें शीर्ष के लोगों में शामिल हैं.आम आदमी की भाषा में विज्ञान को समझने, समझाने के लिएप्रोफेसर यशपाल को सही मायने में जन वैज्ञानिक कहा जाता है.वह विज्ञान अधूरा है जिस विज्ञान को आम लोगों को नहीं समझाया जा सकता हा..ये उनका मानना था.वे समाज की कूप मंडूकता के भी विरोधी थे और लगातारअंधविश्वासों, तंत्र -मंत्र के खिलाफ संघर्ष करते रहे.दूरदर्शन पर वर्षों तक चलने वाला उनकाकार्यक्रम‘टर्निंग प्वांइट'बहुत लोकप्रिय हुआ.उनका मानना था किअगर स्कूलों में बच्चों को विज्ञान की रोशनी में इस सहज ज्ञान को समझाया जाए तो शिक्षा का कायाकल्प हो सकता है.
वह बार बार कहते थे कि बच्चे केवल ज्ञान के ग्राहक ही नहीं हैं, वे उसे समृद्ध भी करते हैं.उनका मानना था कि पाठ्यक्रम में परमपरागत ज्ञान और किताबी ज्ञान दोनों में![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimMhOce-XczyZJHIrjWh03NvbpeGgDkBeK3OYPfBhIcDVBfszVMRbF7pQXtitTVWc-xCl_aJHpJ4tr7w4CBLe_G1qs5agXK0LbYZFkr5__3_RJVoGiXwTLWACmWIZjv7cUjKTz3fOWOvw/)
सामंजस्य, संतुलन होना चाहिए.स्कूल की दीवारों के भीतर और उसके बाहर के परिवेशमेंजितना कम फासला होगा, शिक्षा उतनी ही बेहतर, सहज और रुचिकर होगी.
एक वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, विज्ञान संपादकऔर प्रशासक के रूप में उन्होंने काम किया.यशपाल का जन्म मौजूदा पाकिस्तान के झंग में हुआ था.पंजाब यूनिवर्सिटी से भौतिकी में स्नातकोत्तर के बाद आगे की पढाई के लिए वे एमआईटी, अमेरिका गए.विज्ञान के साथ-साथ शिक्षा में उनका मौलिक योगदान रहा है.1992 में ‘बस्ते का बोझ' शीर्षक से उनकी रिपोर्ट पर्याप्त चर्चा में रही. वे कोचिंग और ट्यूशन के घोर विरोधी थे.कोचिंग के बूते आईआईटी में चुने जाने के भी वे पक्ष में नहीं थे.पाठयक्रम, शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात, नर्सरी के दाखिले में टेस्ट के लिए मां-बाप के इंटरव्यू को बंद करना-इन बातों को उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर उठाया और समझाने की कोशिश की.
उनकी अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा कार्यक्रम- 2005 एक एतिहासिक दस्तावेज है.ग्रेड प्रणाली, परीक्षा को तनाव–मुक्त करने की उनकी सिफारिशों का दूरगामी महत्व है.कॉमन स्कूल व्यवस्था की बात कोठारी आयोग ने 1966 में की थी, यशपाल भी उसके पूरे समर्थन में थे.
उन्हें पद्मभूषण, पद्मविभूषण, कलिंग पुरस्कार जैसे सर्वोच्च सम्मानों से नवाजा गया, उनकी शिक्षा संबंधी सिफारिशों की चर्चा भी देश भर में होती है, लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि ऐसे वैज्ञानिक के होते हुए भी वैज्ञानिक सोच के पैमाने पर देश काफी पीछे है.
इसके अलावा कॉस्मिक किरणों केअध्ययन ,शिक्षा संस्था निर्माण और उल्लेखनीय प्रशासक केतौरपरउनके विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें याद किया जाएगा.
By -
Sunil Singh