नेहरू और पटेल में एक नहीं कई मुद्दों पर मत विभिन्नता थी लेकिन सरदार साहब ने मरते दम तक ना नेहरूजी का साथ छोड़ा , ना मंत्रिमंडल से स्तीफा दिया , ना कांग्रेस पार्टी से अलग हुए l बुद्धिजीवियों में मत विभिन्नता भी होती है , मतभेद भी, लेकिन संतुलन साधने की कला भी होती है जिससे लोकतंत्र मजबूत होता है l
महाभारत युद्ध को लेकर कृष्ण और बलराम के बीच मतभेद था , बड़े भाई बलराम ने कृष्ण को बहुत रोका कि कौरव और पांडव दोनो हमारे संबंधी है इसलिए इस विवाद में किसी एक का पक्ष लेना ठीक नही है ,लेकिन कृष्ण नहीं माने ,ये अर्जुन के सारथी बनकर युद्ध भूमि में पांडवों के पक्ष में खड़े थे l बलराम ने अपने भाई कृष्ण का साथ नहीं दिया और पूरी तरह तटस्थ बने रहे l लेकिन दोनों भाइयों में प्रेम कभी कम नहीं हुआ l वे हमेशा उनके बड़े भाई बलदाऊ बने रहे l मतभेद भाई भाई में बाप बेटे में और पति पत्नी में भी होता है लेकिन इससे उनके रिश्ते में कोई फर्क नहीं आता l मतभेद होना जीवंतता का प्रमाण है l कृष्ण को बलराम से और पटेल को नेहरू से अलग करने की कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हो सकती क्योंकि उनके आपसी रिश्ते मतभेद से कहीं ज़्यादा बड़े थे l![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhxZw4DW4aVKoRmOyfc0vwNxJAuzoIbUcXKp4cWXBLl94fzL7wvE8YGgEvv_UYBXlvRrvgMMTSokLsiYioWVlxaFv2VWq6XdI4mt29t5OM0XSsKPCtOn_pXdL9_5krXDwiNBvcp5ZcQ0w/)
उक्त दृष्टांत का उद्देश्य यह है कि सरदार पटेल और नेहरू दोनो गांधी जी के शिष्य थे l दोनो भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम के अग्र पंक्ति के सेनानी थे l उनमें बहुत से मामलों में ज़ाहिर तौर पर मतभेद था लेकिन दोनों ने मिलकर भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य का स्वरूप दिया l उनके मतभेद को हथियार बना कर एक को दूसरे के दुश्मन के रूप में पेश करना कुटिलता और बदमाशी है l उस समय के मतभेद का हवाला देकर दोनो में से किसी एक व्यक्ति को नीचा गिराना नीचता है l इतिहास में किसके साथ किसने क्या किया या क्या नहीं किया ये जानकर हम और आपकी ज़िंदगी में क्या फर्क आने वाला है कभी इस पर भी विचार कीजिये l
आज़ादी के आंदोलन में उदासीन और तटस्थ रहने वाले कुंठित संघी स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को एक दूसरे के खिलाफ लड़ाते रहते हैं l गांधी के खिलाफ सुभाष को और नेहरू के खिलाफ सरदार पटेल का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में करते रहे है l कांग्रेसी विचारधारा के दो नेताओ में से एक नेता को नायक और दूसरे नेता को खलनायक बनाने से गोलवलकर ,दीनदयाल या मुखर्जी महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं हो जाएंगे यह बात संघी अच्छी तरह समझ लें l
भक्तों में ये खासियत नहीं होती, वे नागपुर के रिमोट से संचालित होने वाली कठपुतलियां है जिनकी सोचने समझने और विश्लेष्ण करने वाली मशीन निकाल कर गुरूजी ने अपने पास रख ली है l
gopal rathi