अभी एक विवादास्पद विज्ञापन के बहाने देश में लव जिहाद फिर चर्चा में है। वैसे अपने देश में होने वाले अंतर्धार्मिक विवाहों पर ग़ौर करिए तो उनमें प्रेम कम, कुछ दूसरी चीज़ें ज्यादा दिखती हैं। कहते हैं कि प्रेम का कोई मज़हब नहीं होता। प्रेम अपने आप में एक मज़हब है। अलग-अलग मज़हब के प्रेमियों के बीच प्रेम और विवाह कोई असामान्य घटना नहीं। हर युग में ऐसा होता आया है और आगे भी होता रहेगा। ऐसी शादियों में अगर पति-पत्नी किसी का धर्म-परिवर्तन कराए बगैर अपनी-अपनी आस्थाओं और पूजा-पद्धतियों के साथ एक छत के नीचे रह सकें तो ही इसे प्रेम-विवाह माना जाना चाहिए। उनके बच्चे बालिग़ होने के बाद अपना धर्म चुन सकते हैं। ऐसी शादियों में अगर किसी भी रूप में मज़हब का दखल है तो ये शादियां अनैतिक हैं! अगर पति और पत्नी में कोई एक विवाह के एवज में दूसरे से धर्म-परिवर्तन की मांग करे तो यह प्रेम-विवाह नहीं, भावनात्मक ब्लैकमेलिंग है। ऐसी शादियों के पीछे आम तौर पर प्रेम की आड़ में मज़हबी एजेंडा ही ज्यादा होता है। इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़ दें तो हमारे यहां बगैर किसी एक का धर्म परिवर्तन कराए अंतर्धार्मिक शादियां नहीं होतीं। यह धर्म परिवर्तन भी पुरुष कम करते हैं।इस पुरूषवादी समाज में आमतौर पर यह कुर्बानी स्त्रियों को ही देनी होती है !
आप हिन्दू हों या मुसलमान,यदि आपका धर्म बिना धर्म बदले शादियों की इजाज़त नहीं देता तो आप अपने धर्म के साथ ख़ुश रहिए। प्रेम तक तो ठीक है, अंतर्धार्मिक विवाह आपके लिए नहीं है।
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