'प्रकृति दिवस' का संदेश !

 

हमारी ययह पृथ्वी संभवतः इस ब्रह्मांड की सबसे सुन्दर रचना है। यहां प्रकृति का अथाह सौन्दर्य भी है और जीवन के पैदा और विकसित होने की सर्वाधिक अनुकूल परिस्थितियां भी। अपनी सृष्टि की शुरुआत से प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकर ही हम जीवन के फूलने-फलने के रास्ते तलाशते रहे हैं। आज विज्ञान प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की जितनी भी कोशिशें कर ले, वह पृथ्वी जैसे एक ग्रह की रचना नहीं कर सकेगा। पर्वतों जैसी विशालता, वनों जैसी रहस्यमयता, समुद्र जैसी गंभीरता, नदियों जैसी शीतलता और बादलों-सी करूणा वह कहां से लेकर आएगा ? हम ब्रह्मांड को समझ लेने का जितना भी दंभ भर लें, पेड़ से सुन्दर कोई कविता हम नहीं लिख सकते। पत्तों के बदन पर हवा की सरसराहट जैसा कोई संगीत रचना हमारे बूते की बात नहीं। एक फूल से बेहतर प्रेम पत्र कोई लिख सका है आजतक ? दुनिया भर की बिजली मिलकर भी पूनम का एक चांद नहीं रच सकती। आकाश में उड़ने वाले हजारों विमान एक पक्षी के नन्हे पंखों का मुकाबला नहीं कर सकते। दुनिया की कोई भी मशीन शीतलता का वह एहसास नहीं दे सकती जो बदन पर अचानक गिरी बारिश की बूंदें छोड़ जाती हैं। हमारे सारे धर्म और दर्शन मिलकर एक बच्चे की मासूमियत को जन्म दे पाएंगे ? प्रकृति के रूप में ईश्वर ने ख़ुद को अभिव्यक्त किया है। प्रकृति के विरुद्ध जाकर अबतक हमने जो भी बनाया या बिगाड़ा है वह गंदा, घातक और त्याज्य है। पिछली एक-दो सदियों से प्रकृति के साथ चलने के बज़ाय उसके ख़िलाफ़ खड़े होने का ही नतीजा है कि हमारी जीवनदायिनी पृथ्वी आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से दो-चार है।



आज विश्व प्रकृति दिवस पर मित्रों को शुभकामनाएं ! आईए, अपनी प्रकृति का सम्मान करें ! ईश्वर का सम्मान करें ! जीवन का सम्मान करें !



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Dhruv Gupt