फजिया केफी को सलाम !

आज सच में मुस्कुराने की वजह है। अफ़ग़ानिस्तान की संसद की पहली महिला उपसभापति और दोहा में तालिबान के साथ वार्ताकारों की टीम की सदस्य, फ़ज़िया क़ोफी का नाम इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार के लिये पंसददीदा नामों की सूची में शामिल किया गया है।उल्लेखनीय है कि फ़ज़िया क़ोफी पर दो-दो जानलेवा हमले हो चुके हैं। एक हमला तो अभी दो महीने पहले ही ठीक वार्ता शुरु होने से पहले ही हुआ था।



उल्लेखनीय है कि इससे पहले इराक़ की नादिया मुराद को डेनिस मुकवेगे के साथ यह पुरस्कार मिला था।मुराद को आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने उन्हें 2014 में अगवा कर लिया था। आतंकवादियों के चंगुल से फरार होने से पहले तीन महीने तक इन्हें यौन दासी बना कर रखा गया था।



फ़ौज़िया क़ोफी को हमारी शुभकामनाएँ। आतंकवाद मुर्दाबाद ! शाति, स्वतंत्रता, समानाधिकार ज़िंदाबाद !



बर्बादी की कहानी



मेरा नाम अस्मा

दुआ, रेहाना, तसलीमा

कुछ भी हो सकता है



मैं !

कहीं भी हो सकती हूँ

कहीं भी ... ...

सत्ता, धर्म-मज़हब का जुनून

मिलकर लिख सकते हैं

मेरी बर्बादी की कहानी



रातों-रात

किसी दु:स्वप्न की तरह

मेरी जिंदगी

की कहानी



सुनो ! कैसे

जब आँख खुली

बदला गया था सब

छीन लिया गया मुझसे

मेरा परिवार, मेरा शहर, मेरे सभी अपने



छीन ली गयी

मेरी स्कूल, मेरी किताबें, मेरे कपड़े



किसी पालतू जानवर की तरह

बंद कर दिया गया मुझे दड़बे में

एक काली पोटली में बंधी

अब मैं कोई इंसान नहीं

सिर्फ ग़ुलाम हूँ



वे जैसा चाहें

कर सकते हैं सलूक मेरे साथ

बीबी या रखैल

या मंडी का माल

कुछ भी !



अगर किसी ने

मेरी ख़ूबसूरती के मोह में

बीबी बना भी लिया तो

कभी माँ नहीं बनने देंगे



क्योंकि वे डरते हैं

कि

अपने बच्चे की शक्ल में

कोई बाप न दिखाई पड़ जाय

बाप का मोह

आत्मघाती बनने से रोक न दे



क्योंकि

बाप तो बाप नहीं संगठन है !



ऐसे शौहर को पूरी आज़ादी है

कि

बीबी को बिना बताये

घर से दो, पाँच, दस दिन बाहर रहे

कि

एक दिन उसका कोई दोस्त बताने आये कि

"शौहर तो आत्मघाती बनकर शहीद हो चुका है"

और फिर अचानक एक दिन

बम की तरह सुनाई पड़े

"तुम्हें इस तरह अकेली रहने की अनुमति नहीं है ।"

संगठन की बीबी !

माने अब मेरी बीबी !



मैं डरती हूँ

ये कैसे बंदे हैं

ये तो खुदा का राज क़ायम करना चाहते हैं

उसीके लिये कर रहे जिहाद



क्या इन्हें नहीं मालूम

इस्लाम में इद्दत है

शौहर की मौत के बाद

इंतज़ार का वक़्त



मेरे याद दिलाने पर

ग़ुस्से से फट पड़ता है वो...

तुम साधारण विधवा नहीं हो

तुम एक शहीद की विधवा हो

शहीद आदमी नहीं

सिर्फ संगठन होता है

संगठन जब मौजूद है

तब विधवा कैसी !



तुम्हें कोई

हक़ नहीं शोक मनाने का

तुम्हें कोई हक़ नहीं

शहादत के अपमान का !



मतलब, एक और

निकाह !

एक और शौहर की

शहादत का निकाह



फिर-फिर निकाह

फिर-फिर शहादत ...



अकेले

बंद कमरे की खिड़की

अचानक जब खुलती है तो

नजर आते हैं चौराहे पर

लटके हुए कटे सिर, कटे हुए शरीर



भेड़-बकरियों की तरह

जिब्ह करने के लिये

लायी जा रही मासूम बच्चियाँ

उनकी चीख़ें-चिल्लाहटें



लो सुनो !

यही है हमारी कहानी

खून से लिखी जा रही

तुम्हारे पागलपन की ज़ुबानी !



तुम्हारे इस पागलखाने से भागना चाहती हूँ मैं ।



-सरला माहेश्वरी