हाथरस को बदायूं बनाने की कोशिश





आपको मई 2014 का बदायूं रेप याद ही होगा, हाथरस को भी बदायूं बनाने की कोशिश की जा रही है, बल्कि कई मायनों में उससे भी ज्यादा निर्लज्जता दिखा रही है सरकार। सरकार, पुलिस, प्रशासन पूरी तरह से ठाकुर जाति के आरोपियों के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। हो सकता है कुछ ही दिन में सरकार ये "साबित" भी कर दे कि "रेप और हत्या हुई ही नहीं है, ये लड़की के परिवार वालों की साजिश है।" सरकारी बयानों ने भ्रम की स्थिति बनानी शुरू कर दी है। लेकिन ऐसे कई बिंदु हैं, जिनसे उनके फैलाए भ्रम से निकल कर सच्चाई तक पहुंचा जा सकता है।



1- सबसे पहले तो यही कि पुलिस ने लड़की की लाश को गुपचुप तरीके से जल्द से जल्द रात में ही क्यों जला दिया?

इतना बड़ा गैर कानूनी काम बगैर सरकार की जानकारी और और आदेश के नहीं हो सकता। हिन्दू धर्म के नाम पर राजनीति करने वाली सरकार ने आखिर किस कारण से अपने ही धार्मिक संस्कारों की अवहेलना करके इस काम को अंजाम दिया। आखिर क्या कारण थे कि पुलिस जल्द से जल्द लाश को जलाकर सारे सबूत मिटा देना चाहती थी।

किसी के मृत शरीर का अपमान करने के साथ पुलिस पर साक्ष्यों को मिटाने का मुकदमा भी क्यों नहीं दर्ज होना चाहिए?

2- आखिर क्या वजह है कि आरोपियों की धरपकड़ की जगह पुलिस ने लड़की के घर वालों को नजरबंद करके रखा है। पुलिस ने एक तरह से घर वालों को ही कैद कर लिया है।

3- क्या वजह है कि आरोपियों के पक्ष में कई गावों के ठाकुरों की जातिवादी खाप सभा आराम से होने दी गई, जबकि यह असंवैधानिक है।

4- ठाकुरों की सभा में ही पीड़ित परिवार के नार्को टेस्ट की मांग रखी गई और सरकार द्वारा यह मांग उसी दिन मान ली गई। जबकि पीड़ित मृतक लड़की अपना बयान देकर मरी है, तो नार्को टेस्ट की ज़रूरत सरकार को क्यों लगी, इसके पीछे उसकी क्या मंशा है?

नार्को टेस्ट की सच्चाई के लिए अब्दुल वाहिद शेख की डायरी "बेगुनाह कैदी" और अरुण फरेरा की जेल डायरी "कलर ऑफ द केज" पढ़ीं जा सकती है।

दूसरी बात यह कि इस सरकारी कदम के बाद भला कौन पीड़ित परिवार आगे से ऐसे मामलों में रिपोर्ट करने थाने जाएगा, जिसे खुद "घर कैद" और नार्को टेस्ट से गुजरना होगा?

मुख्यमंत्री अजय बिष्ट का आज खुद को भगवान का अवतार बनाकर "दोषियों का समूल नाश" करने वाला बयान भी पीड़ित परिवार को ही धमकाने के लिए है, क्योंकि जांच की सुई धीरे धीरे उनकी ओर ही घुमाई जा रही है।

सरकार को किसी मामले का निपटारा इस प्रकार करना चाहिए कि उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत करने के लिए लोगों में हिम्मत बढ़े, लेकिन यहां तो सिर्फ इसी मामले में नहीं आने वाले दलित और महिला हिंसा के मामलों में उत्पीड़ित पक्ष को एक धमकी है।

4- सवाल यह भी है कि बाकी अनेकों मामलों में SIT गठन की मांग को न मानने वाली सरकार ने इस मामले में अचानक बिना मांग के SIT गठन कर उसे जांच के लिए भेज भी दिया, और उसकी जांच का बहाना लेकर पीड़ितों का टोला सील कर दिया गया।

उम्मीद है यह जांच टीम जल्द से जल्द सरकार का मनचाहा यही सवर्णों के पक्ष में रिपोर्ट भी दे देगी, और इस तरह ही इस पूरी घटना को बदायूं रेप की घटना में तब्दील कर दिया जाएगा।

इसलिए सरकारी भ्रम में न पड़ें, पूरे मामले पर नजर रखें और हाथरस को बदायूं बनने से रोकें। और हाथरस न हो इसकी ज़मीन तैयार करें।

 

-सीमा आज़ाद

पोस्टर Vishwa Vijai