फ़ासिस्ट ताकतें समाज में महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों और ग़रीब आबादी के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने का काम करती हैं

नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन, स्त्री मुक्ति लीग, स्त्री मज़दूर संगठन और अखिल भारतीय जाति विरोधी मंच की ओर आज देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के दौरान उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के बालसन चौराहा, गोरखपुर के बिछिया (रामलीला मैदान), अम्बेडकरनगर के साबितपुर, सिद्धनाथ, सिंघलपट्टी और हंशू का पुरवा में, चित्रकूट के रामनगर और महराजगंज के चौतरवां चौराहे पर प्रदर्शन किए गये और जगह-जगह योगी सरकार, पूँजीवादी पितृसत्ता और जातिवाद का पुतला दहन किया गया। हाथरस में पिछले दिनों एक दलित लड़की पाशविक तत्वों के बर्बर उत्पीड़न का शिकार बनी। इसके कुछ ही दिनों के भीतर बलरामपुर व आज़मगढ़ में ऐसी घटनाएँ दुहराई गयीं। देश में स्त्री उत्पीड़न की ये घटनाएँ दिन दूनी-रात चौगुनी की गति से बढ़ रही हैं। प्रशासन व सरकार के रवैये को हाथरस की घटना से ही समझा जा सकता है, जहाँ पुलिस प्रशासन ने आनन-फ़ानन में शवों को जलाकर सारे सबूतों को मिटाने और अपराधियों को बचाने की हर सम्भव कोशिश की। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कुछ अधिकारियों को बर्खास्त करके अपनी नाक बचाने में लगी हुई है, लेकिन दूसरी ओर संघ परिवार और उसका आईटी सेल सोशल मीडिया और जगह-जगह घूमकर परिवार को बदनाम करने और जातिगत आधार पर लोगों को आरोपियों के पक्ष में गोलबंद करने में जुटा हुआ है। फ़ासिस्ट ताकतें समाज में महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों और ग़रीब आबादी के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने का काम करती हैं। यही वज़ह है कि आज केन्द्र में मोदी सरकार और प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में बैठने के बाद स्त्री विरोधी अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। स्त्री उत्पीड़ने के मामलों में बड़ी संख्या जातिगत उत्पीड़न से जुड़े मामलों की है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार साल 2019 से अब तक दर्ज मामलों के मुताबिक भारत में औसतन रोज़ाना 87 रेप के मामले सामने आ रहे हैं। इस साल के शुरुआती नौ महीनों में महिला विरोधी अपराधों के अब तक कुल 4,05,861 मामले दर्ज हो चुके हैं। यह 2018 की तुलना में सात फीसदी ज्यादा है। यह केवल दर्ज मामलों के आँकड़े हैं। "भारत में अपराध -2019" की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध पिछले साल के मुकाबले 7.3 प्रतिशत बढ़ गये हैं जिसमें अधिकतर मामले जातिगत उत्पीड़न से जुड़े हुए भी हैं। साल 2018 में देश में रेप के कुल 33,356 मामले दर्ज हुए हैं। 2017 में यह संख्या 32,559 थी। ये वो मामले हैं जिनकी शिकायत दर्ज़ हो पायी है, अधिकतर मामलों में हम देखते हैं कि ऐसी घटनाओं की शिकायत दर्ज़ ही नहीं हो पाती। एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक पाँच साल में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के दागी 327 को टिकट मिला और 118 नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। देश के 33 फ़ीसदी सांसदों-विधायकों के ख़िलाफ़ आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं। इनमें भाजपा ही नहीं, विपक्ष में बैठी तमाम पार्टियों के नेता भी शामिल हैं। ऐसे में इन अपराधों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द करते समय हमें एक मिनट के लिए भी अन्य चुनावाबाज मदारियों के भ्रम में नहीं आना चाहिए बल्कि अपनी आवाज़ संगठित करनी चाहिए।