एकल ध्रुवीय विश्व और संयुक्त राष्ट्र संघ

संयुक्त राष्ट्रदिवस 24 अक्टूबर

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एकल ध्रुवीय विश्व और संयुक्त राष्ट्र संघ

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प्रथम विश्वयुद्ध (1914 -1918) के बाद युद्धो का भय समाप्त करने के लिये 1919 मे पेरिस समझौते के आधार पर लीग आफ नेशंस का गठन किया गया था, जिसकी पृष्ठ्भूमि 1907 के हेग सम्मेलन ने तैय्यार की थी. जर्मन तानाशाह हिटलर व उसके साथियो ने 1939 मे द्वितीय महायुद्ध छेड्कर इस संस्था का अस्तित्व समाप्त कर दिया था. 1945 मे दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति पर अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर अणुबम हमले व उसके परिणामो ने दुनिया को यह सोचने के लिये बाध्य किया कि इसी तरह युद्ध होते रहे तो मानवता का भविष्य सुरक्षित नही रह पाएगा. सन्युक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन डी रूजवेल्ट, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल व सोवियत राष्ट्रपति स्टालिन ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा हेतु प्रारम्भिक रूप मे कुछ प्रस्ताव रखे जिन्हे एट्लांटिक चार्टर कहा जाता है. 1 जनवरी 1942 को 26 राष्ट्रो ने इन प्रस्तावो को समर्थन देते हुए सन्युक्त राष्ट्र की घोषणा पर हस्ताक्षर किये थे. काफी विचार-विमर्श के बाद 25 जून 1945 को अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर सन्युक्त राष्ट्र सम्मेलन मे सेन फ्रांसिसको मे 50 देशो के प्रतिनिधियो ने सन्युक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे. सन्युक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, सोवियत संघ व चीन द्वारा चार्टर के अनुमोदन के बाद अंतत: 24 अक्टूबर 1945 को विधिवत रूप से सन्युक्त राष्ट्र संघ अस्तित्व मे आया था. आज 195 राष्ट्र इसके सदस्य है. साधारण सभा, सुरक्षा परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, अन्न व कृषि संगठन, अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवम विकास बैंक, विश्व स्वास्थ संगठन, सन्युक्त राष्ट्र आर्थिक, सामाजिक एवम सांस्कृतिक संगठन आदि इसकी कई उप-संस्थाए है. साधारण सभा सर्वाधिक महत्वपूर्ण व सर्वोच्च संस्था है. इसका अध्यक्ष प्रतिवर्ष अलग-अलग राष्ट्रो के प्रतिनिधि को चुना जाता है. प्रत्येक समस्या का अंतिम समाधान यह सभा करती है, दो तिहाई बहुमत वाले इसके निर्णय सर्वमान्य होते है. सुरक्षा परिषद के पांच सदस्य- अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन व चीन विशेषाधिकार (वीटो पावर) प्राप्त सदस्य है जबकि 6 देशो के निर्वाचित प्रतिनिधि भी इसके सदस्य रहते है.

सन्युक्त राष्ट्र का मूल ध्येय अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा इसके लिए जन्हा कन्ही भी सशस्त्र आक्रमण हो वन्हा सुरक्षा के लिए सामूहिक कार्यवाई करना है. मध्यस्थता प्रयासो से कुछ युद्ध की सम्भावनाओ को टालने, तनाव कम करने व क्षेत्रीय संघर्षो के शांतिपूर्ण निदान के समझौतो को सन्युक्त राष्ट्र के शांति प्रयासो की उपलब्धी माना जाता है. अंतर्राष्ट्रीय विवादो को उग्र होने से रोकने मे सेफ्टी वाल्व का काम करने व तृतीय विश्वयुद्ध की सम्भावनाओ को क्षीण करने मे भी सन्युक्त राष्ट्र की भूमिका रही है तो 1960 की सन्युक्त राष्ट्र की उपनिवेशवाद विघटन घोषणा से 50 राष्ट्रो को स्वाधीनता प्राप्त होना महत्वपूर्ण उपलब्धी है. प्राकृतिक आपदाओ जैसे बाढ, भूकम्प, अकाल तथा महामारी मे सन्युक्त राष्ट्र संघ की संस्थाए अपना योगदान देती रही है.

रूजवेल्ट की मृत्यु उपरांत ही सन्युक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ मे शीतयुद्ध प्रारम्भ हो गया था. सोवियत संघ ने साम्यवाद के प्रसार के प्रयास किये तो अमेरिका ने इसे रोकने के लिये बहुत से देशो को विपुल सैनिक सहायता दी तथा विश्व दो ध्रुवो पर केंद्रित हो गया था.

साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद से मुक्ति पाने वाले देशो को इन शक्तिशाली गुटो से अलग रखकर उनकी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने की अवधारणा से गुटनिरपेक्षता का विचार सामने आया था तथा भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मिस्त्र के राष्ट्रपति नासिर व यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने तीसरी शक्ति की धारणा को मूर्तरूप देने मे अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया था, 1961 के बेलग्रेड सम्मेलन के 25 सदस्यो से बढकर आज इसकी सदस्य संख्या 115 हो गई है. सदस्य देश स्वतंत्र नीति पर चलता हो, उपनिवेशवाद का विरोध करता हो, किसी सैनिक गुट का सदस्य न हो, किसी बडी ताकत के साथ समझौता न किया हो व किसी बडी ताकत को अपने क्षेत्र मे सैनिक अड्डा बनाने की इजाजत न देता हो, ये गुटनिरपेक्षता के पांच सिद्धांत रहे है, खेद है कि सदस्य देश ही इन सिद्धांतो पर नही चल रहे है तथा गुटनिरपेक्ष आंदोलन अपनी चमक व प्रभावशीलता खो रहा है.

1990-91 मे सोवियत संघ के विघटन के बाद शीतयुद्ध समाप्त हुआ तथा विश्व मे एकलध्रुवीय व्यवस्था कायम हुई है. आर्थिक भूमंडलीकरण के दौर मे व्यवसायिक, सामरिक व क्षेत्रीय सहयोग के यूरोपीयन यूनियन, दक्षेस, आसियान, जी–7, जी–20, ब्रिक्स, बिम्सटेक जैसे कई समूह गठित हुए है परंतु आर्थिक विषमता की खाई बढती ही जा रही है, जिससे हताशा व आक्रोश मे वृद्धि हुई है. 1 प्रतिशत बनाम 99 प्रतिशत, आक्यूपाई वाल स्ट्रीट, विश्व सामाजिक मंच, वंचितो, श्रमिको, युवाओ, महिलाओ व पर्यावरण कार्यकर्ताओ के विश्वभर के प्रतिरोधो मे इसको देखा जा सकता है. आणविक, जैविक, रासायनिक समेत अत्याधुनिक हथियारो के जखिरे, दुनियाभर मे फैले सैनिक अड्डो, नाटो जैसे गठजोड तथा आतंकवाद ने समूची मानवता के लिए गम्भीर खतरे पैदा कर दिए है ऐसे मे सन्युक्त राष्ट्र संघ की सफलताओ व विफलताओ का आकलन कर इसे एक तटस्थ, निष्पक्ष, मजबूत, विश्वसनीय विश्व संस्था बनाने के लिए सार्थक पहल जरूरी है.

सन्युक्त राष्ट्र संघ का इतिहास विफलताओ से भरा हुआ है. वह अपने 4 प्रमुख उद्देश्य - विश्व मे शांति, राष्ट्रो के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बंध, राष्ट्रो को साथ काम करते हुए लोगो के जीवन स्तर सुधारने, भूख, बिमारी व निरक्षरता पर विजय प्राप्त करने तथा एक दूसरे के अधिकार व स्वतंत्रता के सम्मान को बढावा देने मे मदद करने मे भी विफल रहा है. अभी तक आतंकवाद की परिभाषा तय नही कर पाया है न इसके विरूद्ध कोई नीति बना पाया है. वीटो अधिकार प्राप्त राष्ट्र इस अधिकार का दुरूपयोग आतंक जैसे मुद्दे पर भी कर रहे है. सन्युक्त राष्ट्र की असफलता का एक बडा कारण अमेरिका के निहित स्वार्थ है, जिसने सोवियत संघ के विघटन के बाद इस विश्व संस्था को अपना ‘जेबी’ संगठन बना लिया है. नस्लीय राष्ट्रवादिता, धार्मिक कट्टरपन, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, उच्च्शक्ति वाले हल्के हथियारो के फैलाव, नशीली दवाओ की तस्करी व इससे पोषित आतंकवाद से उपजी अशांति और असुरक्षा से लडने मे सन्युक्त राष्ट्र का वर्तमान ढांचा सक्षम व उपयुक्त नही है.

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन की नीतियो से विकासशील देशो के नागरिको के हित मे स्वतंत्र, प्रगतिशील आर्थिक विकास नीति निर्धारित करने मे रूकावटे पैदा की जा रही है. इन देशो की आत्मनिर्भर आर्थिक व्यवस्था समाप्त होकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियो का शिकन्जा बढता जा रहा है.

वैश्विक शांति, समता और सुरक्षा से ही मानव का सर्वांगिण विकास सम्भव है और इसके लिए सन्युक्त राष्ट्रसंघ की खोई हुई प्रतिष्ठा व गरिमा को पुनर्स्थापित करना आवश्यक है. सुरक्षा परिषद का विस्तार, स्थायी सदस्यो का विटो पावर समाप्त, सभी सदस्यो को समान अधिकार, सन्युक्त राष्ट्र की वित्तीय स्थिति को मजबूत करके ही सन्युक्त राष्ट्र संघ को सच्चे अर्थो मे विश्व संस्था का गौरवमय दर्जा दिया जा सकता है l




Suresh Upadhyay