गलत निर्णय-
हमारे देश में पिछड़ा,दबा-कुचला,कामगार वर्ग,ऊँचे लोगों की परपंरागत नक़लें ख़ूब करता है,जिसकी उसे जरूरत नहीं है । उनके पिछड़े,दबे रहने के पीछे यह भी एक महत्वपूर्ण वजह है ।
बंगाल में,ज्यादा नहीं,कोई पचीस सालों पहले तक भी ग़रीब,यहाँ के मुख्य त्यौहार-दुर्गा पूजा में भी निर्लिप्त-सा रहता था,उनमें से कुछ लोग ही मिलते थे,जो नवमी-दशमी के दिन तक सस्ते से कपड़े बनवा पाते,या बनवाते थे । धीरे-धीरे वे पूरी शिद्दत से इसमें शामिल हो गये हैं,किसी निम्नवित्त,मध्यवित्त की तरह ही वे पूजा के पहले से सारी तैय्यारियां करने लगते है-अपनी औक़ात से बाहर,और वैसा-ही उत्साह अनुभव करने लगते हैं ; हमारे बंगाल में तो कुछ लोगों का पंद्रह दिनों से महिने भर उत्साहित रहना और काम पर नहीं जाना,आम बात है ।
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यह बतलाता है कि वामपंथी आंदोलनों ने इस वर्ग में,धार्मिक पाखंड और रिवाजों के प्रति कोई जागरूकता नहीं पैदा की है और यह वर्ग अपनी सोच में और भी पिछड़ता जा रहा है ।
इसका दूसरा कारण यह भी है,कि मार्क्स ने धर्म को अफ़ीम कहा था,तब ज़मींदारों,जारों का प्रभुत्व था,लेकिन,औद्योगिक क्रांति से संदर्भ बदला ही है,और भारत के संदर्भ में,जहाँ,लोग नींद से,हाथ जोड़ते हुए उठते हैं,अफसोस-हे भगवान कह कर करते हैं,वहाँ यह सिद्धांत मान कर चलना भारी भूल रही !
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सोचने-समझने का समय है ॥