बुद्धमाता महामाया के अलग अलग नाम










महामाया बालक सिद्धार्थ को दूध पिलाते हुए भरहुत स्तूप की शिल्पकला मे दिखाया गया है। महामाया को सिरी महामाया भी कहा गया है। ह्रिस डेव्हिड्स ने कहा है की कुषाण काल में महामाया की सिरि माता के रुप में पूजा बहुत प्रचलित हो चुकी थी। (Buddhist India, p.401) तब से मातृपूजा की परंपरा भारत में अस्तित्व में आ गई थी। मिस्टर ग्रियर्सन ने कहा है कि, नवजात बच्चे को दुध पिलाती माता की यह प्रतिमा बाद में "हारिति माता" के रूप में प्रचलित हुई। (Ref. the beginnings of Buddhist art, Foucher)



इससे सिद्ध होता है कि, महामाया ही हारिति माता है।



डा. मैकनिकोल ने कहा है कि, सन 639 में एक नेस्टोरियन मिशन भारत आया था। उन्होंने महामाया को पश्चिम में "मदर मेरी" के रूप में प्रचलित किया था। (Piper on indian antiquity, p.47)



भागवत धर्मी बौद्धों ने यह कल्पना बालक कृष्ण के लिए गुप्त काल में इस्तेमाल करना शुरू कर दी थी। (Ref. History of fine arts in India and Ceylon by Vincent Smith) दूध पिते सिद्धार्थ को ही बाद में दुध पिते कृष्ण और ख्रीस्त कहा जाने लगा था। (Dr. Keith- J. R. A. S., p.401)



प्रो. मैकडोनेल ने कहा है कि, रामायण में बालक राम का वर्णन भी इसी तरह दूध पिते हुए बालक के रूप में किया गया है। (Sanskrit literature, p. 307-310), Indian antiquity, p.21)



एलोरा की शिल्पकला में सप्तमातृकाओं की शिल्प है, जिसमें तीसरी माता वराही बच्चे को दूध पिलाती हुई दिखाई है। (prof. Kennedy)



इससे स्पष्ट होता है कि, महाराष्ट्र में सप्तमातृकाओं की परंपरा भी बुद्धमाता महायाया से प्रेरित हुई है। मरियम को ही दक्षिण भारत में मरिअम्मा, मरिमा, मरिमाय कहा गया है।



- डा. प्रताप चाटसे (बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क)