अपनी काठ की कुर्सी बचाने के लिए किसी लड़की की आबरू तक को लबे सड़क नीलाम करदे ?

अकेली नही हो रिया । तुम्हे तो इतिहास ने आहिस्ता से अपने पास बिठा लिया है , एक महफूज मखमली पन्ने पर । वक्त बे वक्त यह सवाल उठता रहेगा कि क्या कोई निजाम इतना भी क्रूर और बेहूदा हो सकता कि इस सवाल पर तुम नजीर बनोगी और हुकूमत की पालकी ढोनेवाले कारकून , उनके पीछे चीखते चिल्लाते सोहर गाते करेंगे घूर पर फेंके गए जूठे पत्तलों को चाटते दिखेंगे , बस वक्त की बात है , और वक्त करवट ले रहा है ।