अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने आज हिंदू अखबार में छपी उस रिपोर्ट पर गहरी चिंता जताई है जिसमें बताया गया है कि सीबीआई ने अपनी वेबसाइट से हाथरस मामले की एफआईआर को हटा दिया है। वेबसाइट पर पहले नोएडा शाखा द्वारा एफआईआर को यह बताते हुए प्रदर्शित किया था कि सामूहिक बलात्कार और हत्या के लिए धारा 376D और धारा 302 आदि के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अब एफआईआर को हटा दिया गया लगता है। वेबसाइट अब दिखाती है कि सीबीआई हाथरस पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर अपनी जांच करेगी जिसमें बलात्कार और हत्या शामिल नहीं है।
जनवादी महिला समिति मांग करती है कि हाथरस मामले की जाँच सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की देखरेख में एक जाँच एजेंसी द्वारा की जाए। यूपी पुलिस ने जाँच पूरी तरह से विफल कर दी है और इसके बजाय एक काउंटर कथा को फैलाने की कोशिश की है कि बलात्कार हुआ ही नहीं है। प्राथमिकी समय पर दर्ज नहीं की गई थी और पीड़ित को समय पर सहायता प्रदान नहीं की गई थी। अस्पताल के अधिकारियों ने पीड़ित की 22 सितंबर को यानि घटना के 8 दिन बाद जांच करवाई। हैरानी की बात यह है कि फोरेंसिक जांच के लिए परीक्षण 24 सितंबर को भेजें गए। यह सर्वविदित है कि इतने दिनों के बाद वीर्य पीड़िता के शरीर पर नहीं पाया जा सकता है। पीड़िता के शरीर को साफ करने और धोने से वीर्य के सबूत भी मिट जाते हैं। इसके बावजूद, उत्तर प्रदेश के एडीजे द्वारा यह घोषणा कि कोई बलात्कार नहीं हुआ था, उत्तर प्रदेश सरकार के उन पूर्वाग्रहों को जाहिर करती है जिन पर एक दलित लड़की के साथ ऊंची ठाकुर जाति के 4 लड़कों द्वारा बलात्कार के इस मामले में भाजपा सरकार चल रही है। लड़की ने अस्पताल में पुलिस को दिए बयान में बताया है कि वह बलात्कार का शिकार हुई थी और उसने 4 लड़कों का नाम भी लिया है और यह उसका मरने से पहले का बयान है और कानून के अनुसार सही माना जाना चाहिए। हम मांग करते हैं कि किसी भी जांच को सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मृत लड़की के शव का उसके माता पिता व भाई की अनुपस्थिति में मध्यरात्रि में चुपके से व जल्दबाजी में अंतिम संस्कार कर दिया गया।
सीबीआई जांच अगर जारी रहती है तो यह न्यायाधीश की निगरानी में होनी चाहिए।
मालिनी भट्टाचार्य,अध्यक्ष
मरियम धवले, महासचिव
कीर्ति सिंह, कानूनी सलाहकार