न जन्मदिन,न ही पुण्यतिथि..तो भी
ऐ कर्पूरी ठाकुर!
बहुत याद आने लगे हो तुम!
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चारों ओर हाहाकार..
कारू चोर...कलश चोर..लोटा चोर
कबूतर चोर...बाज चोर
दादा चोर..पोता चोर
पंडत चोर...पिंजड़े का तोता चोर..हा ..हा!!
यह अट्टहास का हा हा नही भद्र,
हाहाकार का हाहा है!
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यकीन करेगा कोई कि
तुम
दो बार बिहार के सीएम
एक बार डिप्युटी सीएम रहे...
1952 से मर जाने तक विधानसभा का कोई चुनाव नही हारे...
विपक्ष के नेता रहे।एम पी भी रहे। संसोपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे...
और मरने के समय
तुम्हारा अपना एक #पासबुक नहीं था
या मोटर गाड़ी,
जिसे तुम अपना कहते!
तुम्हारे पास वही एक झुग्गी नुमा फूस की छत थी
अपने पैतृक गांव पितौझिया में
जिसमे तुम पैदा हुए थे जो तुम्हारे नाई पिता की उस्तरे की कमाई की कुल पूंजी थी और तुमने उसमे एक ईंट म्ही जोड़ी थी।
●![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfjwuLsjBvhG3I9sYHS17QRZXZ2-Lv9sFumxdV85eYPXZtD6YEUjikSG3avSwI1qmpQMDmT2Y_XZSLtg6WrvW-hIIdHkN4S7aCqJRB9eVZ2rUerD9IQ6Pk2kijxClPz4t9DT4Z0FUthXY/)
कर्पूरी ठाकुर,
बाहर मत आना अपने मसान से
भष्म हो जाएंगे कितने नामवर..बौने हो जाएंगे कई कदवाले...
अच्छा हुआ,
तुम्हारी मृत्यु पर..तुम्हारी गरीबी देखकर
हेमवतीनंदन बहुगुणा रोये...
देवीलाल रोये...
शंकरदयाल सिंह रोये...
आंसुओ में बहता रहा था बिहार अरसे तक..
और यह भी अच्छा हुआ
कि
आईंस्टीन ने तुम्हे धरती पर चलते-फिरते नही देखा!
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आलेख : Shankar Pralami ji
प्रस्तुति : Santosh Kumar Jha ji