विजयादशमी : RSS स्थापना दिवस





मोदी के हस्तिनापुर से बंधा है संघ

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पंडित नेहरू और सरदार पटेल कांग्रेस में एक ही कद के समकालीन नेता थे l उन दोनों में से किसी एक को प्रधानमंत्री मंत्री बनना ही था l अंत में सभी पहलुओं को देखते हुए नेहरू जी प्रधानमंत्री बने और सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने l यह कांग्रेस का अंदरूनी मामला था इसलिए उस समय के विपक्षी दल और नेताओं ने इस पर सवाल नहीं उठाया l लेकिन संघी बिरादरी इस बात को कानों कान कुछ इस तरह फैलाती रही मानो सरदार के साथ अन्याय हुआ है और जब से वे नेहरू जी के खिलाफ पटेल को एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते रहें है l संघी ऐसे दुख प्रकट करते है जैसे सरदार पटेल उनकी पार्टी जनसंघ या भाजपा के नेता रहे हो l ये बात उल्लेखनीय है कि सरदार पटेल अंतिम समय तक कांग्रेस के मज़बूत स्तम्भ रहे l उन्होंने ही महात्मा गांधी की हत्या के बाद आज़ाद भारत मे पहली बार आर एस एस पर प्रतिबंध लगाया था l उस दौरान पटेल और गोलवलकर ,डॉ मुखर्जी के बीच हुए पत्र व्यवहार इस बात के सुबूत है कि संघियों की साम्प्रादायिक नीति के बारे में क्या सोचते थे l



अब कोई इन संघियों से पूछे भाई नेहरू पटेल तो छोड़ो आप तो ये बताओ ये आडवाणी और मोदी का क्या पेंच था ? आडवाणी जी जनसंघ के जमाने से राष्ट्रीय कद काठी के व्यक्ति है और नरेंद्र दामोदर मोदी 2012 तक मात्र एक सूबे के मुख्यमंत्री थे उनकी राष्ट्रीय स्तर पर कोई पहचान भी नहीं थी l आडवाणी ने रामरथ यात्रा निकालकर पूरे भारत में जो साम्प्रदयिक वातावरण बनाया वही देश में भाजपा की प्रगति का प्रमुख कारण बना l बरसों से कांग्रेसी रहे बहुत से ऊंची जाति के लोग राम के नाम की भावना के कारण भाजपा में समा गए और भाजपा का विस्तार होता गया l जब केंद्र में पहली बार भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला तो आडवाणी जी ने सहर्ष अटल जी का नाम प्रस्तावित किया जबकि दोनो एक ही कद के नेता थे दोनो बारी बारी से जनसंघ के और फिर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे ,दोनो सदन में विपक्ष के नेता रहे l



लोकसभा चुनाव 2014 में जब आडवाणी प्रधानमंत्री पद के भाजपा में स्वाभाविक दावेदार थे तब बीच में नरेंद्र मोदी कहाँ से टपक आये ? दरअसल मोदी ने अम्बानी और अडानी जैसे गुजराती धनपतियों को साथ लेकर 2012 से ही अपनी ब्रांडिंग शुरू कर दी थी ,सोशल मीडिया और मीडिया को साध कर उन्होंने पार्टी पर नहीं संघ पर इतना दबाव बनाया कि अंत में संघ को मोदी की शरण मे आना पड़ा और आडवाणी को लाल झंडी दिखानी पड़ी l संघियों ने अपने वरिष्ठ स्वयंसेवक के साथ जो व्यवहार किया है वह इतिहास में दर्ज हो चुका है l



अब संघ भाजपा को नही भाजपा संघ को संचालित कर रही है l सरसंघसंचालक ऐसी कोई बात नहीं बोलते जो मोटा भाई और उसके नाना भाई ( रंगा बिल्ला ) को बुरी लगे l मोदी ने सरकार सम्हालते ही आज़ाद भारत में बिना किसी सुरक्षा के स्वतंत्र ढंग से विचरण करने वाले सरसंघसंचालक को विशेष सुरक्षा दी l जिस संघ प्रमुख का कांग्रेसी राज में बालबांका नहीं हुआ उसे अचानक अपनी जान की रक्षा के लिए सुरक्षा की क्या ज़रूरत पढ़ी l यह बात इतनी आसान नही है जितनी समझी जा रही है l मोदी बहुत होशियार आदमी है उन्होंने ये सोच कर सुरक्षा प्रदान की है कि संघ प्रमुख कहाँ कहाँ जाते है ,किस किस से मिलते है कौन उनसे मिलने आते है यह सारी सूचनाएं उन्हें सुरक्षा एजेंसियों के माध्यम से मिलती रहेगी ,अगर कुछ गड़बड़ हुई तो तोगड़िया की तरह देवता ठंडा कर देंगे l इसलिए आपने देखा होगा कि यह तथाकथित सांस्कृतिक संगठन का संघ प्रमुख हर मामले में मुंह खोलता है लेकिन किसानों की आत्महत्या पर कुछ नहीं कहता जबकि मरने वाले अधिकांश किसान हिन्दू ही है , व्यापम हो राफेल हो हर मुद्दे पर इनकी जीभ तालू में चिपक जाती है l जनता का अरबों रुपया समेट कर विदेश भाग जाने भगौड़ों के लिए इन्होंने एक शब्द नही कहा l राम रहीम ,और रामपाल के तांडव पर कुछ नही बोले l महिलाओं पर हो रहे बलात्कार और अत्याचार मौन रहे l मतलब सब अनर्थ अनाचार सामने होता रहेगा लेकिन संघ प्रमुख मुंह नहीं खोलेगा क्योंकि वो मोदी के हस्तिनापुर से बंधा हुआ है

( गोपाल राठी )