कॉन्ट्रैक्ट खेति कारपोरेट खेती का प्रवेश द्वार है।

राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति का निवेदन



डब्ल्यू टी ओ के कृषि समझौते की दिशा में भारत सरकार के खेती किसानी संबंधी तीनों कानूनों के खिलाफ 25 सितंबर को किसानों द्वारा आयोजित भारत बंद को राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति का समर्थन और किसानों को आवाहन



केंद्र सरकार द्वारा खेती किसानी को कारपोरेट्स के हवाले करने के लिये पारित किये तीनों कानूनों का राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति विरोध करती है। किसानों द्वारा 25 सितंबर को आयोजित बंद का समर्थन करती है। और देश के किसानों को आवाहन करती है कि इस बंद को सफल बनाने के लिये अहिंसात्मक तरिके से आंदोलन करे।



किसानों को खेती से बाहर करने और कृषि को कारपोरेट्स के हवाले करने के लिये केंद्र सरकार नीति आयोग के सुझावों पर नीतियों और कानून में लगातार बदलाव कर रही है। यह तीनों कानून को पारित करना इसी कडी का हिस्सा है।



संसद में केंद्र सरकार द्वारा कृषि संबंधी तीनों बिलों को पारित कर खेती किसानी पर दूरगामी असरवाले नये कानून बना दिये गये।

1. कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक

2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक



कॉन्ट्रैक्ट खेती द्वारा दुनिया के बाजार के लिये कृषि उत्पाद पैदा करने, अपने शर्तों पर किसानों से अपने दाम पर सीधे उत्पाद खरिदने और कृषि उत्पाद का मनचाहा भांडारण कर महंगे दामों पर बेचने के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कानूनी संरक्षण देने हेतु केंद्र सरकार ने तीनों कानून बनाये है।



कॉन्ट्रैक्ट खेति कारपोरेट खेती का प्रवेश द्वार है। मंडी व्यवस्था में सुधार करने के लिये सभी प्रकार की आडत और विभिन्न टैक्स की जिम्मेदारी खरीददार या सरकार को लेकर किसानों पर से बोझ हटाने की जरुरत थी। ‘एक देश एक बाजार’ में कृषि व्यापार करनेवाली बडी बडी कारपोरेट कंपनियों को लूट की छूट देने की व्यवस्था की है।



यह तीनों कानून भारत की खेती किसानी को बाजार और कारपोरेट्स के हवाले करने के लिये बनाये गये है। इसके पहले केंद्र सरकार ने पहले दौर में कारपोरेट्स को बीज, खाद, कीटनाशक, मशीने सौपी है और अब उन्हे फसलें, उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन सौप दिया गया। यह सरकार का आत्मनिर्भर भारत अभियान है।



कारपोरेट खेती से देश की खाद्यान्न सुरक्षा पर गंभीर असर पडेगा और देश को भोजन के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनिओं पर निर्भर होना पडेगा। जो किसी भी स्वतंत्र देश के संप्रभुता के लिये बडा खतरा साबित होगा।



केंद्र सरकार द्वारा लाये गये कानूनों के खिलाफ किसानों की उत्स्फुर्त प्रतिसाद को किसानों की स्थाई मुक्ति के रुप में विकसीत किया जाना आवश्यक है। राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति का मानना है कि किसानोंको न्याय के लिये सरकार की नितियों में पूरी तरह से बदलाव आवश्यक है।



सरकार, विपक्षी दलों और कुछ किसान संगठनों द्वारा स्वामीनाथन कमेटी नुसार C2+50 कीमत जैसे आंशिक दृष्टीकोन या सतही मांगो से किसानों की समस्या का समाधान नही होगा।



किसान समस्याओं के सभी पहलूओं पर ध्यान दिया जाना चाहिये। जैसे कि संगठीत क्षेत्र के समान न्यायपूर्ण श्रम मूल्य का निर्धारण, डब्ल्यू टी ओ करार और विभिन्न किसान विरोधी समझौते आदि मुद्दों को हल करने के लिये एक दिर्घकालीन संघर्ष की आवश्यकता है। राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति किसान संघर्ष को व्यापक बनाने के लिये प्रयासरत है।



राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति सरकार के इस कदम को जड से नामंजूर करती है और भारत सरकार को आवाहन करती है कि तीनों कानून को वापस लिये जाये। राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति देश के किसान और किसान संगठनों से एकजूटता की अपील करते हुये भारत बंद का समर्थन करती है और कृषि प्रधान कृषकों के देश की पहचान मिटाने के लिये लाये गये कानूनों का विरोध करने के लिये 25 सितंबर के राष्ट्रव्यापी बंद में पूरी तरह समर्थन करते हुये किसानों को आंदोलन के लिये आवाहन करती है।



राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति