#सिकुड़ती_#सिकुड़ती_अर्थव्यवस्था_फैलता_एकाधिकार:#भाग_एकअर्थव्यवस्था_फैलता_एकाधिकार:#भाग_एक

सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू
आकाश के तारे न देख !' - दुष्यंत कुमार


'पानी में मीन प्यासी रे, मोहि सुनि सुनि आवत हासी रे' जैसी उलटबांसी नाथयोगियों की चमत्कारी साधना से‌ प्रभावित कबीर जैसा सीधा-साधा मेहनतकश आदमी जब करता है तो‌ दिमाग को द्रविड़ प्राणायाम करना पड़ जाता है ! बिल्कुल ऐसा ही तब करना पड़ता है जब सरकारी अर्थशास्त्री नोटबंदी, जीएसटी, एफडीआई की व्याख्या करते हैं।


लाख माथापच्ची करिए, समझ में फिर भी कुछ नहीं आएगा। हमें तो‌ शक होने लगा है हमें अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले सारे के सारे प्रोफेसर कहीं 'आरक्षण का अनुचित' लाभ पाकर तो‌ सेवा में नहीं आए थे !! तभी न जब भी सरकार और गुरुस्वामी जैसे अर्थशास्त्री कोरस में गाते हैं कि नोटबंदी और GST को भारी कामयाबी मिली है, तो हम जैसे मंदबुद्धि वालों को कामयाबी कहीं दिखाई क्यों नहीं देती। चाहें तो कह सकते हैं हम देखना ही नहीं चाहते क्योंकि हमारी सोच में कोई लोचा है यानी हमारी सोच ही निगेटिव है। लेकिन भैया यदि दुनिया भर का मीडिया,अर्थशास्त्री भी ऐसा ही कुछ सोचेंं तो आप आप क्या कहेंगे? लोचा हमारे दिमाग में है या 'किन्हीं अनजान वजहों' से सरकार का समर्थन करने वाले भक्तजनों के ?


'सीएनएन' के पहले पेज पर ‘भारतीय अर्थव्यवस्था रिकॉर्ड रूप से सबसे तेज़ी से सिकुड़ी’ की ख़बर लगी है ! उसके मुताबिक इससे अधिक बेरोज़गारी, कंपनियों की लगातार नाकामी और अधिक बिगड़ा हुआ बैंकिंग सेक्टर सामने आएगा !


अमरीकी अख़बार 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने भी इस ख़बर को प्रमुखता से छापा है !


जापान के एक बिजनेस अख़बार निकेई एशियन रिव्यू में भारतीय वित्त आयोग के पूर्व सहायक निदेशक रितेश कुमार सिंह ने एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है, ‘नरेंद्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को जर्जर बनाया’ शीर्षक से एक लंबा लेख लिखा है !


फ़ाइनेंशियल टाइम्स का भी मुख्य समाचार है ‘भारतीय अर्थव्यवस्था एक तिमाही के बराबर सिकुड़ी!’


इन सब अखबारों के ऐसी खबरें छापने की वजह है सोमवार को जारी जीएसटी के करीब 24 फीसदी निगेटिव हो जाने की खबर ! कभी नोटबंदी और जीएसटी को सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया गया था ! नोटबंदी ने छोटे और मंझले उद्योग खत्म कर दिए, निर्माण की प्रक्रिया रुक गई क्योंकि असंगठित लोग काम करते थे उसमें ! लेकिन मेरे लिए उससे भी बड़ी खबर है केंद्र सरकार का जीएसटी संबंधी राज्यों के साथ किए अपने करार से मुकर जाना ! जब कोई आदमी बहुत ज्यादा कर्ज़ में डूब जाता है तो दो ही विकल्प होते हैं उसके सामने ; या तो समस्या से भाग कर खुदकशी कर ले या फिर अपना दिवाला निकाल जाने की बात सबके सामने मान ले ! सरकार ने इसी दूसरे रास्ते को चुना है ! इस वादे के मुताबिक करीब एक लाख करोड़ रू.की देनदारी बनती है केंद्र सरकार की जिसे देने की हालत में वह है ही नहीं ! घर सामान धड़धड़ बेचने के बावजूद उसकी फिजूलखर्ची ने खजाने खाली जो कर दिए हैं !


एक लोक कथा याद आ रही है मुझे ! चमगादड़ों के यहां कुछ मेहमान आए तो देखा घर में तो कुछ है ही नहीं !
पूछा, 'भाई जी सोएंगे कहां?' चमगादड़ों के सरदार ने उत्तर दिया, #जहां_हम_लटके_वहां_तुम_लटके !


सरकार ने भी सलाह दे दी है राज्यों को हम भी रिजर्व बैंक से कर्ज ले रहे हैं, आप भी ले लो ! जरूर ले लेंगे वे कर्ज वहां से लेकिन उसे चुकाएंगे कैसे ? राजस्व के सभी रास्ते तो आपने बंद कर दिए हैं इसी जीएसटी के चलते ! और कौन से टैक्स लगाएं वो ? क्या पहले के टैक्स पर सेस बढ़ाना होगा उन्हें ? लेकिन क्या जनता उन्हें चुकाने की हालत में है ? लेकिन न तो उसके तन पर कपड़े बचे हैं और न ही पेट में भोजन ! किस हालत में लाकर खड़ा कर दिया है इस राष्ट्रवादी सरकार ने ? मेरी एक पुरानी गज़ल का शे'र है :


यों चलते ही रहने में नशा है ये न बतलाओ,
कहो साफ कि मंजिल का इमकान नहीं है !


साफ साफ बोल दीजिए कि एक बड़े जनादेश का अपमान किया है आपने, उनकी उम्मीद को मिट्टी में मिला दिया है, आप फेल हो गए हैं !


gurucharan singh