मध्यप्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को सोचे समझे ढंग से बर्बाद करने की मुहिम जारी रही है। सरकार किस की है इससे ज़्यादा फर्क नहीं पढ़ता क्योंकि सबकी नीतियां एक सी हैं l इसी दौर में प्रदेश में निजी शिक्षण संस्थान तेजी से फले फूले। छात्रों और माँ-बाप को मजबूर किया गया कि वे निजी शिक्षण संस्थानों के चंगुल में फंसें।
इसके लिये सबसे पहले स्थाई और नियमित शिक्षकों की भर्ती पर सरकारी नीतियों के जरिये रोक दी गई। इसके बाद शिक्षकों की जगह शिक्षा कर्मी, संविदा शिक्षक, गुरुजी, अध्यापक जैसी अस्थाई-ठेकाकरण वाली- सामाजिक सुरक्षा और अंधेरे भविष्य वाले मामूली वेतन वाले शिक्षा के मजदूरों ने ले लीं। यही नहीं सरकार और शिक्षा विभाग ने इन शिक्षा देने वालों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया l पेंशन की पात्रता खत्म करके सामाजिक सुरक्षा से मुंह मोड़ लिया l
सोशल मीडिया पर एक जोक चल रहा है , वह जोक से ज्यादा और बड़े सवाल सरकार जी के सामने खड़ा कर रहा है-
आज पुलिस थाने में गिरफ्तार एक अध्यापक ने एक पुलिस कर्मी से पूछा भाई आपका विभाग कोनसा है ?
जवाब मिला -पुलीस गृह विभाग ।।।
पुलिस ने पूछा आपका विभाग ??
पहला अध्यापक- पंचायत विभाग
दूसरा अध्यापक - नगरीय प्रशासन विभाग
तीसरा अध्यापक - आदिवासी विकास विभाग
चौथा अध्यापक- शिक्षा विभाग
पांचवा अध्यापक - भाई यही तो पता नहीं , सरकार बता ही नहीं रही ????
gopal rathi