शहीद-ए-आजम भगत सिंह






शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जन्मदिवस (28 सितम्बर) पर उनके सपने, शोषणमुक्त समाज की स्थापना की लड़ाई लड़ रहे जनयोद्धाओं को इंकलाबी सलाम।



बिना किसी लय, मात्रा या फिर तुकबंदी के

कुछ पंक्तियां शहीद-ए-आजम के वारिसों के लिए।



जो लड़ रहे हैं दिन-रात

अपने जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए

जो चल रहे हैं आज पथरीली राहों पर

शहीद-ए-आजम के सपनों के लिए

जिन्होंने भर दी है हुंकार

जात-पात के खिलाफ समानता के लिए

जिन्होंने कर दिया है एलान

साम्प्रदायिकता के खिलाफ धर्मनिरपेक्षता के लिए

जो कर रहे हैं बात


अंधराष्ट्रवाद के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीयता के लिए

ये चंद पंक्तियां मैं कर रहा हूं पेश

शहीद-ए-आजम के ऐसे ही वारिसों के लिए।



ना तो भगवाधारी हो सकता है

शहीद-ए-आजम का सच्चा वारिस

और ना ही सुअरबाड़े के जरिए

क्रांति का ख्वाब देखनेवाले

उनके असली वारिस सिर्फ हैं वो ही

जो लड़ रहे हैं एक शोषणमुक्त समाज की लड़ाई

छान रहे हैं जंगलों-पहाड़ों की खाक

दे रहे हैं शहादत पर शहादत

झेल रहे हैं जेल में भी

अपने शरीर पर बर्बर टाॅर्चर।

शहीद-ए-आजम के सच्चे वारिस तुम ही हो बहन

जो झेल रहे हो लगातार

सैन्यबलों के द्वारा बलात्कार पर बलात्कार

फिर भी नहीं हुए हो लाचार

लड़ रहे हो और भी मजबूती से लगातार

और इस लड़ाई में

जो भी हैं तेरे हमकदम

चाहे वो हो छात्र-युवा

या फिर मजदूर-किसान

या हो यहां के दलित-मुसलमान

वही हैं शहीद-ए-आजम के सच्चे वारिस

और मैं करता हूं उनके वारिसों को सलाम।।

................@रूपेश कुमार सिंह



(नोट - यह कविता चार साल पहले की है, लेकिन आज भी प्रासंगिक है।)