सत्ता के करीब रह कर भी जनता की बात करने वाले साहसी कवि-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) की आज पुण्यतिथि है। दिनकर (Dinkar) का निधन 24 अप्रैल, 1974 को हुआ था। दिनकर उन कवियों में शुमार हैं जिनकी कविताएं आम आदमी से लेकर बड़े-बड़े विद्वान पसंद करते हैं।


देश की हार-जीत और हर कठिन परिस्थिति को दिनकर ने अपनी कविताओं में उतारा है। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति। दिनकर की कविताओं का जादू आज भी उतना ही कायम है।



सदियों की बुझी ठंडी राख सुगबुगा उठी,


मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,


दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,


सिंहासन खाली करो कि जनता आती है,


फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं,


धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है,


दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,


सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।