रिटायर होने से पहले जस्टिस मिश्रा ने प्रशांत को दिया 1 रुपये का दंड और अडानी समूह को 5,000 करोड़ का ईनाम!

जाते-जाते जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारत के दूसरे सबसे अमीर उद्योगपति गौतम अडानी के स्वामित्व वाले अडानी पावर राजस्थान लिमिटेड (एपीआरएल) के पक्ष में फैसला सुनाकर कंपनी को 5,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का फ़ायदा करा दिया। राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों और अडानी समूह की एक बिजली उत्पादन कंपनी के बीच सात साल से चल रहे लंबे विवाद पर उच्चतम न्यायालय ने 31 अगस्त को फ़ैसला सुना दिया।


जस्टिस अरुण मिश्रा, विनीत सरन और एमआर शाह की पीठ ने यह फ़ैसला अडानी समूह की कंपनी के पक्ष में सुनाया है, जिससे अडानी समूह की कंपनी को 5,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का फ़ायदा मिल सकता है। पीठ ने 29 जुलाई को मामले पर सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस अरुण मिश्र 2 सितम्बर को अवकाश ग्रहण कर रहे हैं।


अडानी पावर राजस्थान लिमिटेड (एपीआरएल) को एक बड़ी राहत देते हुए पीठ ने सोमवार को एपीआरएल के लिए प्रतिपूरक टैरिफ की मंजूरी के खिलाफ राजस्थान से बिजली वितरण कंपनियों के समूह द्वारा की गई चुनौती को रद्द कर दिया। जस्टिस अरुण मिश्रा, विनीत सरन और एमआर शाह की खंडपीठ ने राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग और विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (एपीटीईएल) द्वारा दिए गए आदेशों को सही ठहराया है कि एपीआरएल पावर पॉवर पर्चेज एग्रीमेंट (पीपीए) के संबंध में राजस्थान वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के साथ प्रतिपूरक टैरिफ का हकदार है। एपीआरएल ने जमीन पर प्रतिपूरक टैरिफ के लिए दावा किया कि उसे घरेलू कोयले की अनुपलब्धता के कारण बिजली उत्पादन के लिए विदेश से कोयला आयात करना था। एक रिपोर्ट के अनुसार, निर्णय में एपीआरएल को 5000 करोड़ रुपये का फायदा मिलने का अनुमान है।


गौरतलब है कि इसके पहले पिछले छह फ़ैसले भारत के दूसरे सबसे अमीर शख़्स, गौतम अडानी के स्वामित्व वाले कॉर्पोरेट समूह के पक्ष में गये हैं। ऐसा न्यूज़क्लिक डिजिटल वेबसाइट पर प्रकाशित एक खबर में दावा किया गया है।न्यूज़क्लिक इस बारे में पहले ही लिख चुका है कि जनवरी 2019 के बाद अडानी समूह से जुड़ा यह सातवां ऐसा मामला होगा, जिसमें न्यायमूर्ति मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ फ़ैसला सुनायेगी।


न्यूज़क्लिक के अनुसार 2013 में शुरू हुए इस विवाद को समझने के लिए ज़रूरी है कि 2006 और 2009 के बीच की उस अवधि में वापस चला जाये, जब अडानी समूह की कंपनियों ने राजस्थान सरकार द्वारा कोयला खदान और उस थर्मल पॉवर प्लांट को विकसित किये जाने के लिए दिये गये अनुबंधों को हासिल किया था, जो राज्य के उपभोक्ता को बिजली की आपूर्ति करेगी।


अक्टूबर 2006 में राज्य सरकार के स्वामित्व वाली बिजली उत्पादन कंपनी, राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) को सूचित किया कि उसे अपने संयुक्त उद्यम भागीदार के रूप में चुना गया है। राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने कहा कि प्रस्तावित संयुक्त उद्यम की व्यावसायिक गतिविधियां राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के स्वामित्व वाले मौजूदा और नये थर्मल पॉवर स्टेशनों की ज़रूरतों के साथ-साथ राज्य में नये थर्मल पॉवर परियोजनाओं के लिए आवंटित कोयला ब्लॉकों से खनन और कोयले की आपूर्ति तक सीमित रहेंगी। अगस्त 2007 में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा उत्तरी छत्तीसगढ़ में स्थित पारसा ईस्ट एंड कांटे बसन कोयला ब्लॉक को विकसित करने के लिए आशय पत्र जारी किया गया था।


इस आशय पत्र में कहा गया था कि कोयले का इस्तेमाल नयी आने वाली थर्मल पॉवर परियोजनाओं के लिए राजस्थान सरकार के विवेक से किया जा सकता है।मार्च 2008 में राजस्थान के बारां जिले के कवाई में कोयला आधारित ताप विद्युत उत्पादन परियोजना स्थापित करने के लिए राजस्थान सरकार और अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गये। इस समझौता ज्ञापन में कहा गया था कि राज्य सरकार ने कोयला लिंकेज के आवंटन को सुनिश्चित करने में इस परियोजना को अपना समर्थन देने का आश्वासन दिया है।


मई और जून 2008 के बीच, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड ने राजस्थान सरकार को अनुरोध करते हुए छह बार लिखा कि वह पारसा ईस्ट एंड कांटे बसन कोयला खदान से कोयले के आवंटन पर विचार करे, जो पहले से ही संयुक्त उद्यम कंपनी द्वारा विकसित किया जा रहा है। अगस्त 2008 के अंत में ऐसा कोई आवंटन नहीं होते देख अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड ने राज्य सरकार से कोयला ब्लॉक के लिए केंद्रीय कोयला मंत्रालय को एक कैप्टिव कोल ब्लॉक (जिस कोल ब्लॉक कोयला में मालिकों को पूरी तरह से उसके ख़ुद के उपयोग के लिए उत्पादन की अनुमति सरकार द्वारी दी जाती है,उसे “कैप्टिव कोल ब्लॉक कहा जाता है) के विकास को लेकर कावई परियोजना को आवंटित किये जाने के लिए आवेदन करने का अनुरोध किया।


जिस दरम्यान अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के ये प्रयास चल रहे थे, राजस्थान सरकार ने निजी उत्पादकों से बिजली ख़रीदने के लिए नीलामी करने की तैयारी कर ली। अक्टूबर और दिसंबर 2008 के बीच राज्य सरकार ने राज्य डिस्कॉम द्वारा बिजली की ख़रीद को मंजूरी दे दी। यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली राज्य सरकार का आख़िरी बड़ा फैसला था। इसके बाद राजे सरकार विधानसभा चुनाव हार गयी और अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार बनी। राजे सरकार के तहत ही पारसा ईस्ट एंड कांटे बसन (PEKB) ब्लॉक में कोयला खनन करने और कावई में एक थर्मल पावर प्लांट बनाने का ठेका अडानी समूह की कंपनियों को दिया गया था। हालांकि तब कोयला लिंकेज लागू नहीं था।


इस बीच बिजली खरीद प्रक्रिया पहले ही चालू हो चुकी थी। 2009 में राजस्थान डिस्कॉम ने उस मूल्य को निर्धारित करने के लिए एक नीलामी को अंजाम दिया, जिस पर वह बिजली ख़रीद सकता था। फ़रवरी 2009 में बिजली की ख़रीद के लिए एक प्रस्ताव निवेदन (RfP) के ज़रिये एक नीलामी की घोषणा की गयी। उस समय कवाई बिजली परियोजना का विकास कर रही एपीआरएल ने राजस्थान सरकार से एक कोयला लिंकेज के लिए एक प्रतिबद्धता की मांग की।


जून 2009 में अपनी बोली की तैयारी करते हुए अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड ने राजस्थान सरकार को एक कोयला लिंकेज हासिल करने के लिए समझौता ज्ञापन की शर्तों के तहत अपना समर्थन देने के लिए लिखा, जिसमें या तो पीईकेबी खदान सहित राज्य के स्वामित्व वाली मौजूदा कोयला खदानों से अतिरिक्त कोयले के आवंटन या फिर केंद्र सरकार को एक कैप्टिव कोल ब्लॉक के आवंटन के लिए अपने आवेदन का समर्थन करने को लेकर अनुरोध किया गया था। एपीआरएल ने इस बात की भी मांग की थी कि मार्च 2009 में समाप्त होने वाली कावई परियोजना पर समझौता ज्ञापन को एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया जाये।


अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड की बोली सबसे कम थी और इसने अपने 1,320 मेगावॉट क्षमता के कावई पॉवर प्रोजेक्ट से राज्य के डिस्कॉम को बिजली की आपूर्ति करने का अनुबंध हासिल कर लिया। जनवरी 2010 में अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड और राजस्थान सरकार के स्वामित्व वाली डिस्कॉम के बीच एक पीपीए (ऊर्जा ख़रीद क़रार) पर हस्ताक्षर किये गये।


फ़रवरी 2013 में, अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड ने डिस्कॉम को यह कहते हुए पत्र लिखा कि घरेलू कोल लिंकेज को हासिल करने के राजस्थान सरकार की तरफ़ से की गयी निरंतर कोशिश नाकाम हो गयी थी और चूंकि यह संयंत्र इंडोनेशियाई कोयले के सहारे चल रहा था, जिसकी कीमत इंडोनेशियाई सरकार के नये क़ानून के लागू होने के बाद बढ़ गयी थी, इसलिए आयातित कोयले के इस्तेमाल के चलते इसकी उच्च लागतों के लिए निजी कंपनी को क्षतिपूर्ति के लिए टैरिफ़ में संशोधन की ज़रूरत होगी। अगस्त 2013 में घरेलू कोल लिंकेज के साथ बिजली की निर्धारित आपूर्ति शुरू होने के कारण अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड ने राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण से 2010 में प्रतिस्पर्धी नीलामी में बोली के आधार पर बिजली दरों में बढ़ोतरी की मांग वाली याचिका के साथ संपर्क किया।


इसके बाद यह मामला विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण में चला गया। जिन डिस्कॉम को 5,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा के पिछले भुगतान का सामना करना पड़ा था, उन्होंने विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण के सामने राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण के आदेश को लेकर अपील की। सितंबर 2018 में विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण ने  एक अंतरिम आदेश में डिस्कॉम को निर्देश दिया कि वह अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड को अपने बक़ाये का 70 फीसद या 3,591 करोड़ रुपये का भुगतान करे। विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण ने सितंबर 2019 में राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण के आदेश को बरक़रार रखते हुए इस मामले पर अपना फ़ैसला सुना दिया।


विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण से इस बात लेकर सहमत है कि अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड की बोली घरेलू कोयले पर आधारित थी और इसके लिए राजस्थान सरकार की नाकामी के चलते कोयला आवंटन को हासिल करने के लिए ही क़ानून में बदलाव किया गया था। जारी आदेश में डिस्कॉम को शेष 50 फीसद टैरिफिक टैरिफ़ का भुगतान करने का आदेश दिया गया।


डिस्कॉम ने उच्चतम न्यायालय के सामने विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश को लेकर अपील की है। इसके अलावा दो अन्य अपीलें भी इसके साथ सम्बद्ध थीं।


गौरतलब है कि अगस्त 2019 में, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने भारत के चीफ जस्टिस को एक पत्र लिखा था जिसमें जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अडानी समूह के चार मामलों को सूचीबद्ध करने में अनियमितता का आरोप लगाया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि इनमें से कुछ मामलों की आउट ऑफ़ टर्न सुनवाई  की गयी और उन्हें रोस्टर का उल्लंघन करते हुए सौंपा गया। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह मामलों में निर्णयों की मेरिट पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन केवल जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ में प्रक्रियागत अनियमितताओं की ओर इशारा कर रहे हैं।


(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)



source-janchowk