फिर बी टी बैंगन का ट्रायल


जैसा कि आपको कहा था कोरोना काल का फायदा उठाकर जीएम फसलो को अनुमति देने का खेल शुरू हो जाएगा !...वही हुआ है ..…बीटी बैंगन की दो किस्मों को जीईएसी (जेनेटीक इंजीनिअरिंग अप्रूवल कमेटी) की मई 2020 को हुई बैठक में फील्ड ट्रायल के लिये अनुमति देने का निर्णय लिया गया है।.......अब मोदी सरकार सिर्फ एक नोटिफिकेशन दूर है


आप कहेंगे कि क्या आप GM फसलो पर पोस्ट करते हैं ? कृषि पर पोस्ट करते हैं ? जबकि देश की मुख्य समस्या सुशान्त की आत्महत्या है......रिया की गिरफ्तारी पर लिखिए !..... TRP मिलती है पर हम तो ओल्ड फैशन्ड आदमी है मुझे याद है UPA सरकार ने 2010 में जब बीटी बैंगन को अनुमति देने की कोशिश की थी तब क्या हंगामा बरपा था !......


2010 के शुरुआती महीनों में जैसे पूरा देश की बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती के विरोध में उठ खड़ा तब भी ऐसे ही अक्टूबर 2009 में जीन इंजीनियरी अनुमोदन समिति ने बीटी बैंगन की खेती के लिये मंजूरी दी थी और भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग तथा कृषि मंत्रालय ने भी इसे हरी झंडी दिखा दी थी। लेकिन वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अंतिम फैसला लेने से पहले इस पर देश के सात शहरों में सार्वजनिक चर्चा कराकर आम राय मांगी। एक राष्ट्रीय बहस शुरू हो गई। इस राष्ट्रीय बहस में बीटी बैंगन को लेकर ऐसा लगा कि देश साफ-साफ दो फाड़ हो गया है। इसके विरोध में थे कृषक संगठन, उपभोक्ता समूह, एनजीओ, विज्ञानी, कृषि विशेषज्ञ और 11 राज्यों की सरकारें और समर्थन में थी पूरी बायोटेक लॉबी ओर कुछ विज्ञान की जय जयकार करने वाले


सब्जियों का राजा बैंगन राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन गया था....


चौतरफा विरोध को देखते हुए अंतत: केबिनेट मन्त्री जयराम रमेश ने 10 फरवरी 2010 को बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती को अनिश्चत काल के लिये स्थगित कर दिया


यह उस वक्त राष्ट्रीय महत्त्व का मुद्दा था और आज कोरोना काल मे राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा सुशान्त केस है मुझे इसलिए इतनी बुरी नही अखरी क्योंकि उसने इस हद तक हमारे दिमाग पर कंट्रोल करने की कोशिश नही की थी खैर.......


बीटी बैंगन एक GM फसल है। इसमें मिट्टी के एक जीवाणु, बैसिलस थुरीजिएंसिस का बीटी जीन बायो इंजीनियरिंग के जरिए बीज में डाल दिया गया है। इसके कारण बैंगन का पौधा ही एक कीटनाशक प्रोटीन क्राइ-1 एसी का निर्माण करने लगता है। यह प्रोटीन एक जहर है जो बैंगन को नुकसान पहुँचाने वाले उपरोक्त कीड़ों को मार डालता है। कहा जाता है कि इससे बैंगन की खेती में कीटनाशकों का अलग से इस्तेमाल करना नहीं पड़ेगा और खर्च बचेगा।


दरअसल सब्जियों में बैगन सबसे अधिक कीटनाशक को अवशोषित करने वाला फसल है। विशेषज्ञ कहते हैं कि बैगन की खेती के एक सीजन में ही किसान 25 से अधिक बार कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं।


अमरीकी कृषि बायोटेक कम्पनी मोनसेंटो को ‘ट्रिप्स’ के तहत बीटी जीन पर पेटेंट प्राप्त है। अत: सभी बीटी बैंगन की किस्मों पर मालिकाना हक मोनसेंटो का ही है अब मोनसेंटो क्या है यह किसी ओर पोस्ट में विस्तार से लिखूंगा


अब आप कहँगे कि जीएम से आखिर नुकसान क्या है बीटी का कॉन्सेप्ट ठीक ही तो है ?


दरअसल GM फसलों में कैंसर पैदा करने वाले रसायन कार्सिनोजेंस और जन्मजात बीमारियों के लिये उत्तरदायी रसायन टेरैटोजेंस पैदा करने का गुण होता है। इसके अतिरिक्त उनमें घातक रसायनों के निर्माण की एक अनियंत्रित प्रक्रिया होती है जिसके परिणाम भयावह हो सकते हैं। जीएम खाद्यों के बारे में यहसिद्ध हो चुका है कि इनसे चूहों में कैंसर होता है।


भारत दुनिया के चंद देशों में है जहां जैव-विविधता इतने बड़े पैमाने पर पर पाई जाती है यहाँ फसलों और वनस्पतियों की इतनी विविधता है, कि GM फसलों की आवश्यकता ही नहीं है। एम. एस. स्वामीनाथन, जिन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है, वो भी GM फसलों पर चिंता जता चुके हैं। इससे जो खतरा पर्यावरण में फैलेंगा उस पर हमारा नियंत्रण नहीं रह जाएगा व दुष्परिणाम सामने आने पर भी हम कुछ नहीं कर पाएंगे।


बीटी बैंगन तो एक बहाना है सिर्फ दिखाने का दाँत है इसके पीछे करीब-करीब सभी प्रमुख खाद्यान्न और सब्जियों की फौज अनुमति के इंतजार में खड़ी है सरकार पिछले साल 19 जुलाई को संसद में कह चुकी है कि इस बात का कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है कि ये फसलें मानव उपभोग के लिए ठीक नहीं हैं.


जीएम फसलों को इन मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा इस उद्देश्य से भारत मे धकेला जा रहा है ताकि वे अपना एकाधिकार विकसित कर के खतरनाक बीजों एवं विषैले रसायनों, दोनों के प्रयोग से मुनाफा कूट सकें, ताकि किसान की अपने विवेक से चुनने की स्वतन्त्रता खत्म हो जाए........


अफसोस !....कोरोना काल में तो भारत के लोगो सोचने समझने की शक्ति खत्म सी हो गयी है वे कोरोना के पीछे चल रहे मल्टीनेशनल कंपनियों के इतने बड़े षडयंत्र को नही देख पा रहे है !.........


Nilesh Desai