“क्या सुशांत सिंह राजपूत का मामला वास्तव में इतना प्रासंगिक है?

                      सुशांत को न्याय दिलाने की होड़ में मीडिया देश की असल समस्या को छिपाने में लगी है।


बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले को लेकर बिहार और मुंबई पुलिस के बीच तनातनी के बाद अब मामला सीबीआई यानी 'सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन' को सौंप दिया गया है सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई ने जांच तेज कर दी है। सीबीआई पूरी मुस्तैदी से जांच में जुटी है। अब तक इस मामले में कई बड़े खुलासे हो चुके हैं। जांच ने रफ्तार पकड़ ली है। .


अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत और रिया चक्रवर्ती की ज़िंदगी एक टेलीविज़न धारावाहिक की तरह आज कल न्यूज़ चैनल्स पर दिखाई जा रही है. 14 जून को सुशांत सिंह राजपूत को उनके फ्लैट में मृत पाए जाने के बाद, एक लंबे समय तक इसकी वजह बॉलीवुड का भाई-भतीजावाद बताया गया. फ़िल्म इंडस्ट्री से सवाल पूछे गए, टीवी स्टूडियो में बहस छिड़ी.. ये उसी सुशांत सिंह राजपूत के लिए कहा जा रहा था, जिन्होंने पिछले साल जलालुद्दीन रूमी का लिखा, "जैसे एक परछाई, जो मैं हूं भी और नहीं भी", ट्वीट किया था.


सुशांत सिंह राजपूत की मौत ख़ुदकुशी से हुई या उनकी हत्या की गई? और अगर इसके पीछे कोई साज़िश थी तो वो किसने रची और किस मक़सद से? इन सवालों के जवाब ढूंढने की राह में राजनीति भी है, निजी स्वार्थ भी और इस सबके बीच में कहीं दबी सच्चाई. पूरे देश में संविधान और कानून के शासन का सरकारी एजेंसियां डंके की चोट पर मखौल उड़ा रही हैं। बिहार पुलिस दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की नई परिभाषा लिख रही है। सुशांत सिंह राजपूत की 14 जून को सुसाइड से मौत हुई इसके बाद से मुंबई पुलिस प्रोफेशनल दुश्मनी से लेकर क्लिनिकल डिप्रेशन के एंगल की जांच कर रही है। सुशांत की मौत के बाद सोशल मीडिया पर नेपोटिज्म को लेकर बड़ी बहस छिड़ी है जाहिर है जिस तरह से बिहार सरकार में शामिल भाजपा के दर्जनों विधायकों, मंत्रियों और उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी, बीजेपी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष, सांसद ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की, उससे यह मामला किसी और ही दिशा में बढ़ता दिखाई दे रहा है। कई केंद्रीय मंत्री भी सीबीआई से जांच की मांग कर रहे थे । इसे देखते हुए यह सवाल उठना लाजिमी है कि इस आत्महत्या की जांच को क्या राजनीतिक रंग दिया जा रहा है?दरअसल बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होना है और कोई भी दल विशेष रूप से एनडीए में शामिल भाजपा राजपूत वोट बैंक को नाराज़ नहीं करना चाहती। इसलिए बढ़ चढ़ कर इस मुद्दे को तूल दिया जा रहा है।


सत्ता का चरित्र कुछ ऐसा है की वह स्थायी बने  रहने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है चाहे  वह किसी भी रूप मे हो  यहाँ तक की किसी की मौत को राजनीति की चाशनी में डुबाकर सत्ता हिचकोले लेती हुई उस  मुद्दे को भुनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखती यह राजनीति का सबसे निम्नतम स्तर है जिसे आजकल बहुत तेजी से अपनाया जा रहा है


 उम्मीद यह भी की जाने लगी है कि सीबीआई को मामला सौंपे जाने के बाद अब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनको अब भी शक है कि सीबीआई सही रूप से जाँच कर पाएगी भी या नहीं.लेकिन समय के साथ-साथ सीबीआई पर आरोप लगने लगे कि सीबीआई  "पिंजरे में बंद तोता" है, जो अपने मालिक की बोली बोलता है सीबीआई को एक निष्पक्ष संस्था के रूप में ही जाना जाता रहा है. परन्तु कई ऐसे मामले आए, जिसको लेकर संस्था की स्वायत्तता पर आरोप लगने लगे और माना जाने लगा कि इसकी डोर सत्ता में बैठे लोगों के हाथों में जाती रही. , इन आरोपों से देश की इस प्रमुख एजेंसी की साख़ पर असर भी पड़ा.


कई ऐसे बड़े मामले हैं, जिनको लेकर सीबीआई की जाँच पर सवाल उठते रहे.


1-सात साल पहले सामाजिक कार्यकर्ता और डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर की हत्या महाराष्ट्र के पुणे में हुई थी. ये मामला भी सीबीआई को सौंपा गया और जाँच में जिस अभियुक्त का नाम सामने आया, उनके तार बेंगलुरु की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या से भी जुड़े बताए जाते हैं. मामला अभी तक अपने अंजाम तक नहीं पहुँच पाया है.


2- इसमें 2जी स्पेक्ट्रम का मामला भी है. इस मामले में सभी अभियुक्तों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था. विशेष सीबीआई अदालत के जज ओपी सैनी वर्ष 2011 से ही इस मामले की सुनवाई कर रहे थे.लेकिन जब उन्होंने फ़ैसला सुनाया तो उन्होंने सीबीआई की जाँच की बहुत आलोचना की थी.


3- एक और मामला JNU के छात्र नजीब अहमद जो कैम्पस से 15 अक्तूबर 2016 को रहस्यमय तरीक़े से लापता हो गए थे. ये मामला भी सीबीआई जाँच के लिए सौंपा गया. लेकिन अभी तक सीबीआई को इसमें कोई सफलता नहीं मिल पाई है.


4-रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी को हरियाणा के मानेसर में किए गए ज़मीन आबंटन का मामला भी सीबीआई को सौंपा गया. लेकिन इसकी जाँच भी ढीली रही और बहुत कुछ इसमें सामने नहीं आ पाया.


5-मध्य प्रदेश में हुए व्यापम घोटाले की जाँच का ज़िम्मा भी सीबीआई को सौंपा गया जब एक-एक कर गवाह और अभियुक्तों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के मामले सामने आने लगे. इस बहुचर्चित मामले की जाँच में भी बहुत कुछ सामने नहीं आ पाया, जबकि ये मामला भी सीबीआई को दिया गया था.


6-पश्चिम बंगाल में साल 2013 में हुए बहुचर्चित शारदा चिट फ़ंड घोटाले के मामले में भी 200 के क़रीब लोगों पर आरोप लगे थे. इसमें राज्य और केंद्र के प्रमुख राजनेताओं के अलावा पूँजीपतियों के भी नाम सामने आए थे. ये निवेशकों के साथ की गई धोखाधड़ी का मामला था, जो सीबीआई को सौंपा गया था.इस मामले के संबंध में सीबीआई ने आरोप पत्र भी दायर किया था. लेकिन जिन पर आरोप लगे थे, उनके ख़िलाफ़ कितने ठोस प्रमाण सामने आ पाए, ये पता नहीं चल पाया.


7-सात साल पहले 18 सितंबर 2013 को बिहार सरकार ने मुज़फ़्फ़रपुर के चर्चित नवरुणा कांड की जांच सीबीआई से कराने की सिफ़ारिश की थी. लेकिन जाँच अभी भी जारी है.


8-सीबीआई इसके अलावा बिहार के चर्चित ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड की जाँच भी 18 जुलाई 2013 से कर रही है, लेकिन अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाई है.


9-सिवान के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के मामले की जाँच भी सीबीआई 2016 से ही कर रही है. लेकिन फ़िलहाल इस मामले में अभियोजन पक्ष से गवाही ही ली जा रही है. आख़िर इतने दिन बीत जाने के बाद भी सीबीआई इन मामलों की जाँच पूरी क्यों नहीं कर पाई?


10-आठ साल से (18 सितंबर 2012 को) लापता अपनी बेटी के लिए न्याय की आस लगाई बैठीं नवरूणा की मां मैत्री चक्रवर्ती कहती हैं, "जांच चाहे कोई भी कर ले लेकिन अगर मामला बिहार का है तो देरी होनी तय है. यहाँ पुलिस, राजनेताओं और माफ़ियाओं के बीच एक नेक्सस है, जो हमेशा गुनहगारों को बचाने का काम करता है. सीबीआई से जाँच करा लेने और न्याय मिलने में बहुत अंतर है." सीबीआई ने अभी तक घटना की चार्जशीट भी दायर नहीं की है."


11-रणवीर सेना के संस्थापक और तत्कालीन राजनीतिक तबके में बड़ा नाम रहे ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या को भी आठ साल (एक जून 2012) बीत चुके हैं. सीबीआई इस मामले की जाँच 2013 से कर रही है. लेकिन अभी तक हत्यारों का सुराग नहीं मिल पाया है.


व्यापम से लेकर अगस्ता-वेस्टलैंड मामले की भी जाँच ठन्डे बस्ते मे पड़ी है सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में जिस तरह बिहार पुलिस मुखर हो रही है, इसके पहले कभी ऐसे मामले में मुखर होते नहीं देखा गया.विपक्ष के आरोपों पर सरकार का जवाब चाहे नवरुणा का मामला हो या ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या या फिर पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड, सरकार ने हर बार सीबीआई जांच की सिफारिश तो कर दी, लेकिन उसके बाद इन मामलों में उसकी कोई खास रुचि नहीं दिखी. शायद यही कारण है कि ये जाँचें आज तक पूरी नहीं हो सकीं.. आज जब सुशांत की आत्महत्या पर तमाम टीवी चैनल डिबेट कर रहे हैं तो कुछ ही साल पहले दो और महत्वपूर्ण संदिग्ध मौतें हुयी थीं जिन पर देश में काफी हंगामा हो चुका है, वे थीं मुम्बई में नियुक्त, सीबीआई जज बृजमोहन लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत और अरुणाचल के कलिखो पुल की आत्महत्या। जांच तो लोया और कलिखो पुल की मृत्यु के संदर्भ में भी की जानी चाहिए?


अब अगर कोई लोया और कलिखो पुल की संदिग्ध मृत्यु की जांच की मांग के साथ खड़ा नहीं है तो उसे सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या की जांच की मांग करने का कोई नैतिक हक़ नहीं है। अगर जांच का उद्देश्य अपराध का अन्वेषण, अनुसंधान और अपराधी की गिरेबान तक पहुंचना है तो यह तीनों ही मौतें संदिग्ध हैं और इनके नेपथ्य में असरदार लोग हैं। इन तीनों ही मौतों के असल सूत्रधार तक जांच एजेंसियों को पहुंचना चाहिए लोया मामले में अगर कोई कहता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे संदिग्ध मौत नहीं माना है तो सीधा सवाल यह उठता है, बिना किसी भी छानबीन, पूछताछ और गवाही, बयानी के सुप्रीम कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कैसे कि यह संदिग्ध मौत नहीं है ? यह शायद दुनिया की लीगल हिस्ट्री का एक नायाब मामला होगा जिसमें एक संदिग्ध मौत की कोई जांच ही न हो, इसलिए सरकार ने हर संभव कोशिश की, जबकि राज्य का यह दायित्व है कि वह हर अपराध की छानबीन कराये।


 संभवतः यह देश का पहला ऐसा मामला है जिसकी जांच न हो सके इसलिए सुप्रीम कोर्ट तक राज्य की फडणवीस सरकार अड़ी रही, और सुप्रीम कोर्ट ने भी, बिना किसी पुलिस जांच के ही, यह कह दिया कि मृत्यु का कारण संदिग्ध नहीं है। न एफआईआर, न तफ्तीश, न पुलिस द्वारा मौका मुआयना, न फोरेंसिक जांच, न पूछताछ, न चार्जशीट और न फाइनल रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया। अदालत का, जांच और विवेचना के कानूनी मार्ग से अलग हट कर सीधे इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि, कोई अपराध नहीं हुआ हैरान करता है। बिना जांच के कोई भी अदालत इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंच सकती है कि कोई अपराध ही नहीं हुआ है देश के आपराधिक न्याय तंत्र में केवल न्यायपालिका ही नहीं आती है, बल्कि पुलिस भी इसका एक महत्वपूर्ण अंग है


दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले दिनों टिप्पणी की थी कि पुलिस जनता की राय बनाने के लिए मीडिया का सहारा नहीं ले सकती है। अनजाने में ही दिल्ली हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी से पुलिस ही नहीं बल्कि सीबीआई और एनआईए जैसी जांच एजेंसियों की जांच की कार्यप्रणाली की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। अब सुशांत सिंह मामले में सीबीआई ने यह खेल फिर शुरू किया है ताकि देश भर को लगे कि हत्यारा या आत्महत्या के लिए उकसाने वाला बस पकड़ में आने ही वाला है। सीबीआई जांच शुरू होते ही 22 अगस्त को मीडिया में खबर प्लांट हुई है कि सुशांत केस में सीबीआई को शक है कि पोस्टमॉर्टम या तो सही तरीके से नहीं हुआ, या रिपोर्ट गड़बड़ है वास्तविकता में सुशांत सिंह जैसे मामले में सीबीआई क्या सुशांत सिंह के परिजनों के मनोनुकूल रिपोर्ट दे पाएगी इस पर बहुत बड़ा प्रश्नचिंह है ?


इन सबके चलते सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने हाल ही में एक ट्वीट कर कहा था कि वह टीवी चैनलों पर सुशांत सिंह राजपूत का नाम सुन-सुन कर पक गए हैं। अब गरीबी और भुखमरी की समस्या नहीं बची है। सिर्फ सुशांत सिंह राजपूत की समस्या है।उन्होंने कहा कि “क्या सुशांत सिंह राजपूत का मामला वास्तव में इतना प्रासंगिक है? मार्च से लेकर अब तक 20 मिलियन भारतीय अपनी नौकरियां हो चुके हैं लेकिन इसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा” गौरतलब है कि इस वक्त टीवी चैनलों पर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या मामले में तरह-तरह की कहानियां बनाकर दिखाई जा रही है। लेकिन देश में बढ़ रही गरीबी और भुखमरी की वजह से हर रोज लोग मर रहे हैं।नौकरियां छूट जाने की वजह से हाल ही में आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। कोरोना महासंकट में प्रवासी तबके से लेकर बड़ी कंपनियों में काम करने वाले रोज़गारों की भी मुसीबत बढ़ गई है। लेकिन गोदी मीडिया टीवी चैनलों पर सरकार की सच्चाई दिखाने की जगह सुशांत मामले में सुलगाने में लगी है। सुशांत को न्याय दिलाने की होड़ में मीडिया देश की असल समस्या को छिपाने में लगी है। यह मौजूदा सत्ता का चरित्र और संस्थाओं कि कार्यप्रणाली को उजागर कर यह प्रमाणित करता है कि राजनीतीबाज सत्ता पाने के लिए किस स्तर तक चले जायेंगे यह विचारणीय प्रश्न है ? फिर भी देखते रहिये धारावाहिक अभी जारी है. मीडिया की अदालत में हर दूसरे दिन नई जानकारी पेश की जा रही है. परिवार, दोस्त, जानने वालों के बयान सामने आ रहे हैं.


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


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