कहां तुम चले गए !


आज से हिन्दुओं के पितृपक्ष का आरम्भ हो गया है। पितृ पक्ष यानी दुनियादारी के कामों से थोड़ी सी फ़ुर्सत निकाल कर अपने पूर्वजों और दिवंगत प्रिय लोगों को याद करने का अवसर। विज्ञान कहता है कि मृत्यु के बाद सब कुछ यहीं समाप्त हो जाता है। धर्म और अध्यात्म कहते हैं कि मृत्यु के बाद देह तो मिट्टी में मिल जाती है, लेकिन आत्माएं अजर-अमर हैं। उनमें से जो आत्माएं वीतरागी होती हैं वे संसार के तमाम बंधनों से मुक्त होकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा या ईश्वर में समाहित हो जाती हैं। सवाल यह है कि राग-विराग, मोह-माया, दुख-सुख और हज़ारों ख्वाहिशों में जकड़े हमारे जैसे लोग मरने के बाद अपने सूक्ष्म, अभौतिक शरीर के साथ कहां जाते होंगे ? कमबख्त मुंह को लगी यह दुनिया तो छूटने से रही। ऐसे लोग शायद प्रेत बनकर अपनी काम्य वस्तुओं और प्रिय लोगों के इर्द-गिर्द भटकते हुए अगले जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों की तलाश करते हैं। मृत्यु के बाद हमारी इच्छाओं, अतृप्तियों, विचारों और संस्कारों से निर्मित हमारी सूक्ष्म देह को श्राद्ध या पितृपक्ष में अर्पित की जाने वाली सम्पति, भोजन और कपड़ों की ज़रुरत नहीं होती है। अगर भौतिक देह ही नहीं तो भौतिक उपादानों की क्या ज़रुरत ? तर्क तो कहता है कि मृत्यु के बाद किये जाने वाले पितृपक्ष जैसे तमाम आयोजन व्यर्थ के कर्मकांड के सिवा कुछ नहीं, लेकिन इन कर्मकांडों का एक भावनात्मक सच भी है। अगर ये कर्मकांड भी न हों तो इस व्यस्त जीवन में कौन किसको याद करता है ? हमारा दृष्टिकोण जितना भी वैज्ञानिक हो, संस्कारों से बंधे हमारे मन के किसी कोने में यह बात जरूर दबी होती है कि मृत्यु के बाद हमारे प्रियजन कहीं हमारे आसपास मौजूद होते हैं और उन्हें हमारी चिंता रहती है। पितृपक्ष में बेहतर तो यह होगा कि इसके कर्मकाण्डीय पक्ष खारिज कर परिवार के लोग रोज कुछ वक्त निकालकर साथ बैठें और अपने प्रिय दिवंगतों की स्मृति में दीये जलाकर उन्हें और उनसे जुडी तमाम अच्छी बातों को याद करें। मृत्यु के बाद अगर सब कुछ खत्म नहीं होता और हमारे पूर्वजों की समय और स्थान से परे किसी और आयाम में उपस्थिति है तो उन्हें यह देखकर खुशी जरूर मिलेगी कि पिछले जीवन के उनके अपने अब भी सम्मान के साथ उन्हें याद करते हैं।



पितृपक्ष में अपने और संसार के सारे पूर्वजों को नमन और श्रद्धा-निवेदन !
by - Dhruv Gupt