कभी रिक्शा चलाते थे मनोरंजन आज साहित्य के शिखर पर

मनोरंजन ब्यापारी फिर चर्चा में हैं .हम आज जनादेश पर उनके बारे में दलित साहित्य अकादमी के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं .रात साढ़े आठ बजे से .सुनना न भूले .
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें दलित साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बना दिया है . मनोरंजन ब्यापारी से कुछ समय पहले जब बात हुई तो उन्होंने कहा था कि अभी मेरा सर्वश्रेष्ठ लेखन बाकी है. उसके बाद कलम को आराम दे दूंगा.मनोरंजन ब्यापारी जब यह बात कहते हैं तो उनकी आंखों की चमक अचानक बढ़ जाती है. मनोरंजन का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. देश विभाजन के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के बरीशाल जिले में पैदा होने के बाद शरणार्थी के तौर पर भारत आना, उसके बाद कई शरणार्थी शिविरों में रहना, होटलों में जूठे बर्तन धोना, नक्सल आंदोलन की वजह से 26 महीने जेल में रहना औऱ फिर दो जून की रोटी के लिए रिक्शा चलाने से लेकर अब शीर्ष साहित्यकारों की सूची में शुमार मनोरंजन की जिजीविषा इस उम्र में भी कम नहीं हुई है. इस जिजीविषा शब्द की उनके जीवन में बहुत अहमियत है. यह कहना ज्यादा सही होगा कि यही उनके जीवन का टर्निंग प्वायंट साबित हुआ. मनोरंजन का जीवन सड़क से साहित्य के शिखर तक पहुंचने की अनूठी मिसाल है.
उन्होंने दो दशक से ज्यादा समय तक रसोइए का काम किया है. लेकिन अब जब शरीर थकने लगा तो उन्होंने ममता से किसी दूसरे पद पर तबादले की अपील की थी. उनके लेखन को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इसी सप्ताह उनको उनकी प्रिय शगल यानी पुस्तकों के बीच रहने का मौका दे दिया है. उनकी अपील पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर मनोरंजन का तबादला एक मूक-बधिर स्कूल के रसोइए से जिला पुस्तकालय में लाइब्रेरियन के पद पर कर दिया गया है. खुद गृह सचिव आलापन बनर्जी ने उनको फोन पर इसकी जानकारी दी. इससे मनोरंजन होने की अहमियत का पता चलता है


Ambrish Kumar