कार्ल मार्क्स : 4 :


(1) आज हम मार्क्स की प्राउधों से लडाई और कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो की रचना किस तरह हुई - ये देखेंगे।


(2) प्राउधों का जन्म फ्रांस में हुआ था। उसे फ्रांसीसी होने पर भी "जर्मन सिर" मिला था। प्राउधों ने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था 'दरिद्रता का दर्शन'। मार्क्स ने उसके जवाब में 'दर्शन की दरिद्रता' नामक पुस्तक लिखी।


(3) यह पुस्तक 1847 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में पहली बार 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' की रुपरेखा मार्क्स द्वारा प्रस्तुत की गयी। इसलिए यह पुस्तक आज भी खास महत्त्व रखती है। डार्विन के विकासवाद ने जिस तरह प्राकृतिक विज्ञान में क्रांति पैदा कर दी थी, उसी तरह ऐतिहासिक विज्ञान के क्षेत्र में ऐतिहासिक भौतिकवाद ने युगांतर उपस्थित कर दिया।


(4) इस पुस्तक के दो भाग हैं। प्रथम भाग में मार्क्स ने अपने को समाजवादी बन गये रिकार्डो के रूप में पेश किया है और दूसरे भाग में अर्थशास्त्र बन गये हेगेल के रूप में। प्राउधों की आलोचना करते हुए मार्क्स ने कहा कि वह अपने को "समन्वय का प्रतीक" साबित करना चाहते हैं, किन्तु बन गया है "भ्रांतियों के प्रतीक"


(5) मार्क्स ने आगे कहा कि सर्वहारा और पूंजीवाद के बीच का युद्ध वर्ग के विरुद्ध वर्ग का युद्ध है। और इसकी परिणति क्रांति के रुप में ही हो सकती है। सामाजिक आंदोलन अपने को राजनीतिक आंदोलन से प्रृथक नहीं रख सकता है, क्योंकि हर राजनीतिक आंदोलन मूलतः सामाजिक आंदोलन है।


(6) अब देखते हैं कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो के बारे में। मार्क्स के ब्रूसेल्स पहुंचने के बाद वहां के समाजवादी केंद्रों में जाग्रति की लहर फैल जाती है। वहां बहुत से समाजवादी एकत्र हुए और "कम्युनिस्ट लीग" की स्थापना हुई।


(7) इस लीग का सम्मेलन 1847 की गर्मियों में हुआ। कम्युनिस्ट लीग का उद्देश्य घोषित किया गया - पूंजीवाद का उच्छेद करना, सर्वहारा की सरकार कायम करना और एक नये समाज का निर्माण करना जिसमें न व्यक्तिगत सम्पत्ति हो, न वर्ग हो।


(8) लीग के सदस्य हफ्ते में दो बार जरूर मिला करते थे। एक दिन राजकीय चर्चाएं होती थी। दूसरे दिन सांस्कृतिक मनोरंजन संगीत आदि हर केंद्र में एक अच्छे पुस्तकालय बनाया गया। सदस्यों की योग्यता बढ़ाने के लिए अध्ययन वर्ग भी खोले गयें।


(9) ब्रूसेल्स में एक संस्था जर्मन मजदूर संघ के नाम से खोली गयी। संघ ने एक अंतर्राष्ट्रीय भोज का आयोजन किया। राजनीति के नाम से किसी सम्मेलन का आयोजन करने से राज्य की ओर से रुकावटें आ सकती थी इसलिए भोज का नाम दिया गया था, मगर इस आयोजन का मूल उद्देश्य पूर्णतः राजनीतिक था।


(10) इस संस्था को आगे बढ़ाने के लिए मार्क्स लंदन गये। लंदन की संस्था ने मार्क्स का हार्दिक स्वागत किया। वहां सब ने मिलकर तय किया कि मार्क्स और एंगेल्स समाजवाद के मूल उद्देश्यों पर एक घोषणापत्र तैयार करे। मार्क्स ने कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो तैयार किया और उसे लंदन भेज दिया गया।


(11) यह मेनिफेस्टो संसार के श्रेष्ठतम साहित्य में गिना जाने लगा। आज भी यह संसार के शोषित और पीड़ित वर्गों का एकमात्र प्रामाणिक घोषणापत्र है। यह घोषणापत्र ही नहीं शोषितों और पीडितों के उनके दुश्मनों के साथ चलनेवाले युद्धों का शंखनाद है जिसकी ध्वनि मात्र से पूंजीवादीओ और सरकारों के ह्रदय विचलित होते हैं। आज सौ साल के बाद भी उसके मौलिक सिद्धांत अपनी जगह पर अचल और अटल है।


(12) "संसार के मजदूरों एक हो जाओ" - इस अंतिम वाक्य से समाप्त होने वाला यह घोषणापत्र अनंत काल तक संसार के शोषितों को उनके जन्मसिद्ध अधिकार की प्राप्ति के लिए संगठित होने और लड़ने की प्रेरणा देता रहेगा।


(13) "कम्युनिस्ट चारों ओर मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक प्रणाली के खिलाफ हर क्रांतिकारी आंदोलन का समर्थन करते हैं। इन तमाम आंदोलनों में वे संपत्ति के सवाल को आंद का प्रमुख सवाल बनाते हैं"।


(14) "कम्युनिस्ट अपने विचारों और उद्देश्यों को छुपाने से परहेज करते हैं। वे स्पष्ट तौर पर घोषणा करते हैं कि तमाम मौजूद सामाजिक परिस्थितियों को बलपूर्वक पलटकर ही वे अपने मकसद को प्राप्त कर सकते हैं। कम्युनिस्ट क्रांति के आगे शासक वर्ग को थरथराने दीजिए। सर्वहारा के पास अपनी जंजीरों के अलावा खोने के लिए कुछ नहीं है। जीतने के लिए पूरी दुनिया है। दुनिया के तमाम मेहनतकशों, एक हो। "


(15) कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र दुनिया की सबसे लोकप्रिय किताबों में से एक है। आधुनिक विश्व के निर्माण में अब तक का कोई राजनीतिक लेखन इस घोषणापत्र से ज्यादा प्रभावशाली नहीं हुआ। क्रांति के आह्वान के लिए इससे पहले शायद ही कभी इतनी असरदार और ताकतवर भाषा का इस्तेमाल किया गया हो। 170 से ज्यादा साल बीत जाने के बाद आज भी कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र उसी जोश, सफाई और स्पष्टता से वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था की पोल खोलता है। इसलिए दुनिया भर के शासक वर्ग इस घोषणापत्र से घबराते हैं।


(16) यह किताब नहीं, हथियार है। दुनिया बदलने का हथियार।


Rationalist Anil