कारपोरेट पूंजीपतियों के पक्ष में बनाए गए किसान विरोधी कृषि विधेयकों के ख़िलाफ़ हिंद मजदूर किसान पंचायत ने ज्ञापन दिए


विधेयक........


किसानों की मुक्ति का नहीं, किसानों और उपभोक्ताओं की तबाही का रास्ता तैयार करते हैं.- प्रजापति


छिंदवाड़ा -किसान अध्यादेश  को विधेयक के माध्यम से अलोकतांत्रिक तरीके से संसद में पारित करने के विरोध में आज भारत बंद के आव्हान पर छिंदवाड़ा जिले के विभिन्न स्थानों पर हिन्द मज़दूर किसान पंचायत के साथियो ने छिंदवाड़ा मुख्यालय में  डी  के प्रजापति महासचिव हिन्द मज़दूर किसान पंचायत  मध्य प्रदेश के नेतृत्व में आज़ादी बचाओ आंदोलन के रुपेश चौरे ,राष्ट्रवादी कांग्रेस के जिला अध्यक्ष सुनील चौरसिया ,भारतीय पत्रकार संघ के दिनेश बंदेवार ,रजिस्टर्ड कांट्रैक्टर एसोसिएशन के अभय तिवारी एवं  हिन्द मज़दूर किसान पंचायत के जिला अध्यक्ष खूबचंद सनकत ,तामिया में रामचरण भारती एवं शिव प्रसाद धुर्वे के नेतृत्व में साथियो ने तहसीलदार को ज्ञापन सौपा सौसर में दीपक सिंह के नेतृत्व में ज्ञापन सौपा गया बिछुआ में नायब तहसीलदार पूर्णिमा भगत को रवि शंकर झोड़ जिला महासचिव के नेतृत्व में किसान जगदीश पटेल,मनोहर डोंगरे,रामप्रसाद नागरे,सहित अन्य किसानो नेराष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंप कर अपना  विरोध प्रकट किया इस अवसर पर हिन्द मज़दूर किसान पंचायत मध्य प्रदेश के महासचिव डी के प्रजापति ने कहा की इन विधेयकों के अंदर जो प्रावधान किए गए हैं, लोक-लुभावन भाषा में प्रस्तुत इन विधेयकों को 'किसान मुक्ति' का रास्ता बताया जा रहा है, क्योंकि अब किसान कहीं भी, किसी के भी साथ व्यापार कर सकेगा. यह सब 'एक देश, एक बाज़ार' के नाम पर किया जा रहा है.ये विधेयक किसानों की मुक्ति का नहीं, किसानों और उपभोक्ताओं की तबाही का रास्ता तैयार करते हैं. कृषि का क्षेत्र त्रि-आयामी है और उत्पादन, व्यापार व वितरण से इसका सीधा संबंध है. इसके किसी भी आयाम को कमजोर करेंगे, तो कृषि के क्षेत्र पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा. यहां तो अब एक साथ तीनों आयामों पर ही हमला किया जा रहा है. ये तीनों विधेयक मिलकर कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए हमारे देश के किसानों और आम उपभोक्ताओं को लूटने का एक पैकेज तैयार करते हैं. हिन्दुत्ववादी कॉर्पोरेट का यह नंगा चेहरा है. सत्ता के गलियारे में बैठे सामंतों और राजनीतिज्ञों ने किसानों का उतना ही शोषण किया है जितना अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ज़मींदारों ने की थी। परिणाम स्वरूप रात दिन खेतों में काम करने वाला किसान आज भी अपनी जीविका चला पाने में असमर्थ है। रोज़-रोज़ के बढ़ते कर्ज से दबकर आत्महत्या करने को मजबूर है। रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों की बढ़ती कीमत का बोझ किसान उठा नहीं पाता है। उसे बीज, उर्वरक तथा कीटनाशक खरीदने के लिए पैसे उधार लेने पड़ते हैं। कोरोना महामारी के बीच किसान सड़क पर उतरकर कुछ नया नहीं मांग रहे हैं, बल्कि उन्हें डर है कि जो थोड़ा बहुत उनके पास है वो भी नहीं रहेगा. अगर खेती व्यापार बनेगा तो व्यापार का नियम यह है कि जो शक्तिशाली होगा उसका राज चलेगा और इसमें किसान का पिछड़ना और खेती पर कंपनियों का कब्जा होना स्वभाविक है। इसलिए खेती को व्यापार बनाने के बजाय जीविका के साधन के रूप में विकसित और संरक्षित करने की आवश्यकता है।