झारखंड वर्तमान में लगभग 32 आदिवासी समुदायों का गढ़ है

झारखंड जैसे राज्यो में स्थानीयता सम्बंधित मजबूत कानून असली ख़ातिहानधारियो के हित में इस लिए नही बन पाया क्योकि विधायिका को सलाह देने वाला कार्यपालिका में आधे से ज्यादा गैर झारखंडी लोग है जो यहां रहकर अपना घर मकान दुकान बना लिए है । प्रोपर्टी बना लिए है लेकिन उनकी सोच विचारधारा ,कल्चर झारखंडी संस्कृति से इतर है ऐसे लोग 1985 का डोमिसाइल हासिल करके झारखंडी बन गए और जो असली ख़ातिहानधारी यानी मूल स्थानीय झारखंडी लोगो के हक और अधिकारों को अप्रत्यक्ष रूप से छीनते आ रहे हैं । इसकी शुरुवात तो देश के आजाद होने के 250 वर्ष पूर्व अंग्रेजो के बिहार के दक्षणी क्षेत्र जिसे पहले छोटानागपुर और आज का झारखंड कहते हैं प्रवेश के साथ ही हो गया था ।



झारखंड का इतिहास ही रहा है की स्थानीय आदिवासियों से पहले मैत्रिता बढ़ाओ उनके दिल के करीब जाओ और फिर पीठ में खंजर भोको यानी धोखाधड़ी करके उनसे जमीन हथिया लो । अंग्रेजो ने अपने लाभ (लगान) के जमींदारों ,साहूकारों और अंग्रेज सरकार के अधिनस्त अधिकारियों की मदद से स्थानीय आदिवासीयो का खूब शोषण किया । उन आदिवासियों की जमीन को नीलाम करने के द्वारा बाहरी दिकू मालदारों को झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में प्रवेश करने का रास्ता खोल दिया ।


झारखंड एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है और वर्तमान में लगभग 32 आदिवासी समुदायों का गढ़ है । आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रो में आज जो मिली जुली गैर आदिवासियों का तबका देखते हैं तो यह उन्ही दौर का परिणाम है की आज आदिवासी क्षेत्रों में ब्राह्मण ,राजपूतो ,बनिया ,साहूकारों ,माड़वाड़ी,बिहारी ,बंगाली जैसे गैर आदिवासियों का प्रवेश निश्चित हुआ वरना अंग्रेजो के भारत आगमन से पूर्व मुगलो , मुस्लिम शासकों और मराठियों की हिम्मत नही थी की झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में प्रवेश कर जाए । खैर ये तो अतीत की बात है । अतीत भी हमे बहुत कुछ सीखा देती है कि हमे उन कारकों को जो सामाजिक विघटन का मूल कारण है उसे समझकर फिर निर्णय लिया जाए ।


मैं झारखंड के विषय मे एक ही बात कहना चाहूँगा की झारखंड की सरकार को पूर्व में हुई घटनाओं एवं इतिहास से सबक लेनी चाहिए ना कि उनकी पूर्णावृति में खुद को ब्रिटिश सरकार की तरह स्थापित करके आधुनिक साहूकारों , और कार्यपालिका के अंदर कार्यरत गैर झारखंडियों के मंसूबो को नजरन्दाज करते हुए मूल स्थानीय लोगो के हक अधिकार से मरहूम ना करे।


राजू मुर्मू