जब सारी मशीनरी धार्मिक अंधभक्ति में मशगूल हो तो पेरियार साहब की प्रासंगिकता बढ़ जाती है......

धार्मिक रूढ़ियों में देश जकड़ता जा रहा है,जिम्मेदार ताकतें अस्पताल व स्कूल बनाने की बजाय मंदिर बनाने को अपना मूल कर्तव्य मानकर सक्रिय है,आरक्षण की धज्जियां उड़ रही हैं ऐसे में धार्मिक अंधभक्ति के प्रबल विरोधी,आरक्षण के लिए आजादी से पूर्व ही कांग्रेस से दो-दो हाथ करने वाले पशुपालक(शेफर्ड)जमात के महानतम समाज सुधारक इव्ही पेरियार रामास्वामी नायकर जी की प्रासंगिकता और ज्यादा हो जाती है।
पेरियार रामास्वामी नायकर साहब ने जिस तार्किक ढंग से धार्मिक पाखण्ड को खण्ड-खण्ड किया वह सुप्रीम कोर्ट तक अकाट्य व ग्राह्य रहा।राम के यथार्थ व उनके गुण-दोष पर लिखित पेरियार साहब की पतली सी "सच्ची रामायण" किताब बाल्मीकि व तुलसी दास जी के पोथंगा "रामायण" व "रामचरित मानस" पर भारी रहा।पाखण्डवाद के सहारे जीविकोपार्जन करने वालो के लिए पेरियार साहब का नाम बिजली के करेंट जैसा है जिसका उच्चारण मात्र उन्हें बेसुध कर देता है लेकिन अफसोस यह है कि वह लोग जिनके लिए पेरियार साहब ने पूरे जीवन संघर्ष किया वे ही पाखण्डवाद में आकंठ डूबे हुये हैं।
वर्तमान दौर में देश की बहुजन आबादी पाखण्डवाद की भेंट चढ़ रही है।सारे सरकारी उपकरण देश की जनता के प्रचंड बहुमत का हवाला दे जनता को क्रश करने में प्रयुक्त हो रहे हैं।जनता की आह पर धर्म का धर्मांध लेप उससे अपना दर्द भूल वाह-वाह करवा रहा है।ऐसे समय मे पेरियार साहब जैसे जननेता/समाजसुधारक की प्रबल आवश्यकता हो जाती है जो सीना ठोंक कर कहे कि हमे राम नही काम चाहिए।हमें भगवान नही सँविधान चाहिए।पेरियार साहब आज के दौर में और भी ज्यादा प्रासंगिक हैं जिन्हें आज उनकी जयंती पर सादर नमन है।
-चंद्रभूषण सिंह यादव