जाति है कि जाती नहीं-

प्रोफेसर मारूना मुर्मू को आदिवासी-संताली पहचान के कारण कोलकाता के कथित भद्र अभिजात्य छात्र कर रहे हैं अभद्र टिप्पड़ियां.........
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कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर मारूना मुर्मू अपनी जाति के नाते पीएचडी या एसोसिएट प्रोफेसर होने के बावजूद अभिजात्य सोच के छात्रों द्वारा सोशल मीडिया पर अपमानित की जा रही हैं।
बंगाल को भद्र मतलब सज्जन लोगो का प्रदेश कहा जाता है लेकिन उनकी सज्जनता जाति के सामने काफूर हो जाती है।बंगाल हो या केरल, यूपी हो या आसाम यह जाति बड़ी जालिम है जो गर्भ से लेकर श्मशान तक पीछा करती है।कुछ जाति के कारण अपनी माँ के गर्भ में ही पंडित हो जाते हैं तो कुछ ऊंची पढ़ाई के बाद भी आदिवासी/संताली ही बने रहते हैं।
प्रोफेसर मारूना मुर्मू आदिवासी समाज से संताली जाति से आती हैं जो इतिहास की प्रोफेसर हो जाने के कारण जादवपुर यूनिवर्सिटी के छात्रों के सीने में धंस रही हैं क्योकि आदिवासी महिला पीएचडी कर प्रोफेसर कैसे बन गईं?पीएचडी करने या प्रोफेसर बनने का हक व अधिकार तो केवल बड़ी जातियों को है फिर यह जंगली महिला कैसे उच्च शिक्षा ग्रहण कर ली?
ये अभिजात्य जन बड़े चालाक हैं।ये चाहते हैं कि चित भी इनकी हो और पट भी इनकी ही हो।ये लोग जातिगत श्रेष्ठता भी बनाये रखना चाहते हैं और आरक्षण को जातिगत करार दे इसका प्रतिकार भी करते हैं।
इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर मारूना मुर्मू जी के साथ यूनिवर्सिटी के उच्च जातियों के छात्र लगातार अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुये सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं।उनकी योग्यता पर नही बल्कि उनकी जाति पर सवाल उठा रहे हैं।क्या यही बंगाल की भद्रता है?क्या यही 21 वीं सदी का प्रगतिशील समाज है?
प्रोफेसर मारूना मुर्मू जी से मैं कहूंगा कि प्रोफेसर साहिबा हमें बाबा साहब से सीख लेना होगा कि वे दुनिया के इतने बड़े विद्वान व भारतीय सँविधान निर्माता होने के बावजूद कदम-कदम पर अपमानित हुये लेकिन हार मानने की बजाय मनुवादियों से रार खरीदते रहे।हमें यह मानते हुये कि "जाति है कि जाती नही" निर्द्वन्द्व होकर मनुवाद से लड़ते रहना है।जय भीम!
-चंद्रभूषण सिंह यादव
प्रधान सम्पादक-"यादव शक्ति"/कंट्रीब्यूटिंग एडिटर-"सोशलिस्ट फ़ैक्टर"