हमारे लिए पितृपक्ष का भावनात्मक पक्ष ज्यादा मूल्यवान है।

                                           कुछ याद उन्हें भी कर लें


!


हिन्दुओं के पितृपक्ष का आरम्भ हो गया है। पितृपक्ष के ये दिन दुनियादारी से थोड़ी फ़ुर्सत निकालकर अपने पूर्वजों को याद करने का अवसर है। धर्म और अध्यात्म कहते हैं कि मृत्यु के बाद देह तो मिट्टी में मिल जाती है, लेकिन आत्माएं अविनाशी हैं। वीतरागी आत्माएं देह की मृत्यु के बाद संसार के बंधनों से मुक्त होकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा या ईश्वर में समाहित हो जाती हैं। राग-विराग, मोह-माया, दुख-सुख और हज़ारों ख्वाहिशों में जकड़े हमारे जैसे लोग मरने के बाद अपने अभौतिक शरीर के साथ अपनी काम्य वस्तुओं और प्रिय लोगों के गिर्द भटकते हुए अगले जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों की तलाश करते हैं। धर्म की इस अवधारणा ने असंख्य कर्मकांडों की रचना की है। मृत्यु के बाद हमारी इच्छाओं, अतृप्तियों, विचारों और संस्कारों से निर्मित हमारी अभौतिक देह को पितृपक्ष में अर्पित की जाने वाली सम्पति, भोजन और कपड़ों की ज़रुरत नहीं होती। मृत्यु के बाद किये जाने वाले ऐसे आयोजन अर्थहीन हैं। हमारे लिए पितृपक्ष का भावनात्मक पक्ष ज्यादा मूल्यवान है। इस अवधि में हम रोज कुछ वक्त निकालकर सपरिवार बैठें और अपने प्रिय दिवंगतों का स्मरण करें। मृत्यु के बाद अगर समय और स्थान से परे किसी दूसरे आयाम में हमारे पूर्वजों की उपस्थिति है तो उन्हें यह देखकर ज़रूर खुशी होगी कि उनके अपने उन्हें अब भी याद करते हैं। अगर मृत्यु के बाद किसी भी रूप में जीवन की मौजूदगी अंधविश्वास है तब भी पूर्वजों को सम्मान देकर हम ख़ुद को भावनात्मक तौर पर ज़रा समृद्ध तो करेंगे ही।



पितृपक्ष में अपने और संसार के सारे पूर्वजों श्रद्धा-निवेदन !


dhruv gupt