हाथरस के बहाने नंगा होता लोकतंत्र !

 



हाथरस की मासूम बिटिया की मर्मांतक मौत ने इस देश के हर संवेदनशील व्यक्ति को हिलाकर रख दिया है। बहुत लोगों की समझ में यह नहीं आ रहा है कि अभी कुछ ही दिनों पहले अपराधियों की गाड़ी पलटकर या भागता दिखाकर उन्हें ठोक देने वाली उत्तर प्रदेश की सरकार और पुलिस एक बेहद बर्बर बलात्कार और जघन्य हत्या के मामले में इतनी असहाय क्यों नज़र आ रही है। और यह कि सवर्ण सेना नाम का कोई संगठन जातीय आधार पर दरिंदों के समर्थन में सड़कों पर कैसे उतर आया है। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं। इस कांड की आड़ में जैसे दलित पार्टियों और संगठनों ने अपने वोट बैंक को संगठित करने के लिए कमर कस ली है, वैसे ही प्रदेश की सरकार को इस प्रकरण में ठाकुर वोट बैंक को खुश करने का एक मौका हाथ लग गया है। मामले को दर्ज करने में अप्रत्याशित विलंब और पोस्टमार्टम के बाद लाश को देखने से भी परिवार को वंचित कर प्रशासन की देखरेख में रातोरात उसे ठिकाने लगाने की जल्दबाजी इसी इरादे का संकेत देती है।एक आशंका यह भी है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बलात्कार के आरोप की पुष्टि भी नहीं हो। जिस तरह इस जघन्य अपराध ने राजनीतिक और जातीय रंग लिया है, उसमें न्याय की उम्मीद बहुत कम दिखती है।



जातिवाद और साम्प्रदायिकता की बुनियाद पर खड़ा हमारा लोकतंत्र अब एक ऐसे मुक़ाम पर पहुंच गया है जहां से दूर-दूर तक मानवीय संवेदनाओं की लाशें ही बिखरी दिखाई देती हैं। हाथरस की बेटी समेत हमारी असंख्य बेटियों को न्याय तब मिलेगा जब सियासी दलों का मुंह ताकने के बज़ाय जाति और धर्म से ऊपर उठकर इस देश के लोग खुद सड़कों पर उतरना सीख जाएंगे। मत भूलिए कि आप और हम किसी भी जाति या धर्म के हों, बेटियां हम सबके घरों में हैं और बलात्कारी जाति या धर्म देखकर बलात्कार नहीं करते !

 


dhruv gupt

retd ips officer